‘विश्व के सबसे ऊंचे रेलवे पुल की आर्च का निर्माण कार्य अप्रैल के पहले सप्ताह में होगा पूरा’

Edited By Pardeep,Updated: 25 Mar, 2021 06:42 AM

construction of world s highest railway bridge will be completed by april

जम्मू संभाग के रियासी जिला में चिनाब दरिया पर बन रहे विश्व के सबसे ऊंचे रेलवे पुल की आर्च का निर्माण कार्य लगभग पूरा हो गया है। अप्रैल के पहले सप्ताह आर्च का शत-प्रतिशत काम पूरा हो जाने के दिन को खास बनाने के लिए केंद्र से कु

नई दिल्ली/ रियासी: जम्मू संभाग के रियासी जिला में चिनाब दरिया पर बन रहे विश्व के सबसे ऊंचे रेलवे पुल की आर्च का निर्माण कार्य लगभग पूरा हो गया है। अप्रैल के पहले सप्ताह आर्च का शत-प्रतिशत काम पूरा हो जाने के दिन को खास बनाने के लिए केंद्र से कुछ नेताओं के पहुंचने की भी उम्मीद की जा रही है। यह पुल कटड़ा से बनिहाल रेलवे ट्रैक के बीच रियासी जिला के कौड़ी व बक्कल इलाके में चिनाब दरिया पर बन रहा है। 

यह देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में सबसे ऊंचा रेलवे आर्च पुल होगा जो एफिल टावर से भी 35 मीटर ऊंचा होगा। एफिल टॉवर की ऊंचाई 324 मीटर है, जबकि इस पुल की चिनाब दरिया के जलस्तर से ऊंचाई 359 मीटर होगी। दुनिया में सबसे ऊंचे पुल चीन में बने हैं जिन्हें रियासी जिला के कौड़ी में बन रहा यह पुल बौना कर देगा। इसे बनाने के लिए देश ही नहीं, बल्कि विदेश के इंजीनियर भी जुटे हैं। इसमें जर्मन, स्वीडन और इटली के इंजीनियरों की भी सेवाएं ली जा रही हैं। यह पुल न केवल इंजीनियरिंग की बेजोड़ मिसाल कायम करेगा, बल्कि सबसे ऊंचा आर्च ब्रिज यानि अर्धचंद्राकार मेहराब पर टिका सबसे ऊंचा रेलवे पुल बनाने पर विश्वभर में भारत का भी रुतबा तथा ऊंचा हो जाएगा। 

बड़े भूकंप को भी झेलने में सक्ष्म होगा पुल
भूकंप के लिहाज से यह क्षेत्र सीस्मिक जोन चार में आता है, यहां हर 2 से 3 मिनट में 1 से 3 रिएक्टर स्केल का भूकंप आता रहता है, लेकिन पुल को सीस्मिक जोन 5 के मुताबिक तैयार किया जा रहा है यह बड़े भूकंप को भी झेलने में सक्षम होगा। यही नहीं 278 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से चलने वाली हवा को भी यह पुल झेल सकेगा। क्षेत्र में हवा की गति जब 90 किलोमीटर प्रति घंटा होगी तो अलार्ममिक सिस्टम से पुल के दोनों छोर के गेट अलार्म के साथ बंद हो जाएंगे, ऐसी स्थिति में कोई पैदल भी पुल से नहीं गुजर सकेगा। 

पुल निर्माण बनाएगा कई कीर्तिमान
यह पुल इसीलिए भी कई कीर्तिमान बनाएगा, क्योंकि ऐसी कई तकनीकें यहां बरती गई हैं जिनका विश्वभर में पहली बार कहीं इस्तेमाल हुआ है। जिस क्षेत्र में यह पुल बन रहा है वहां डोलोमाइट रॉक यानि वह चट्टाने हैं जिनमें दरार होती है। वह दबाव के कारण बैठ सकती हैं इस पर पहाड़ों को मजबूती देने के लिए ड्रिल कर उसमें सरिया डालकर ग्राऊटिंग की गई है। जिसमें उस किस्म के सरिए का इस्तेमाल किया गया, जोकि परमाणु, बिजलीघर तथा गैस टैंक के निर्माण में इस्तेमाल होता है। पुल की आर्च में 10.9 ग्रेड हाई फ्रै क्शन बोल्ट लगाए है। जिसका विश्व में किसी पुल की आर्च में पहली बार इस्तेमाल हो रहा है। इसके अलावा पहली बार किसी प्रोजैक्ट साइट पर एन.ए.बी.एल. लैबोरेट्री स्थापित की गई यहां पुल में इस्तेमाल से पहले स्टील, लोहा, एंगल इत्यादि की जांच होती है। रेलवे ने पूरे प्रोजैक्ट में सिर्फ  इसी पुल निर्माण कार्य में 120 टन वजन उठाने वाली दो ई.ओ.टी. क्रेन का भी इस्तेमाल किया है। 

पुल निर्माण में 2400 मीट्रिक टन स्टील का प्रयोग होना अनुमानित
पुल के निर्माण में ब्लास्ट रोधी तकनीक का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। अमेरिका के वल्र्ड ट्रेड सैंटर टावर को गिराने के लिए जितने विस्फोट का इस्तेमाल हुआ था। उससे 10 गुना अधिक क्षमता का शक्तिशाली विस्फोट भी यह पुल झेलने में सक्षम होगा। पुल निर्माण में 2400 मीट्रिक टन स्टील का प्रयोग होना अनुमानित है। 

7 पिल्लर क्षतिग्रस्त हो जाएं तो भी रेल परिचालन नहीं होगा बाधित 
मजबूती के लिहाज से यह पुल अभूतपूर्व होगा। निर्माण कंपनी ने पुल की मजबूती को लेकर 120 साल की गारंटी दी है, जबकि उसका दावा है कि पुल 500 साल तक भी टिका रहेगा। पुल में 120 मीटर से 150 मीटर तक ऊंचे कु ल 18 पिल्लर हैं। किसी कारणवश अगर एक साथ 7 पिल्लर क्षतिग्रस्त भी हो जाएं तो भी पुल पर रेल परिचालन बाधित नहीं होगा। 

निर्माण कार्य लंबा खींचने से अनुमानित लागत भी बढ़ गई
रियासी जिला में बन रहा सबसे ऊंचा रेलवे आर्च ब्रिज का एक छोर कौड़ी तो दूसरा छोर बक्कल इलाके में हैं। जिसके बीच चिनाब दरिया अपनी पूरी मौज में बहता है। इस पुल की लंबाई 1.3 किलोमीटर और चौड़ाई 13 मीटर है। कोंकण रेलवे ने पुल निर्माण का जिम्मा अफ कान कंपनी को सौंपा है। इस पुल का निर्माण कार्य वर्ष 2004 के नवंबर माह में शुरू हुआ था। शुरुआत में इस पुल पर 512 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान तथा काम को 32 माह में पूरा करने का लक्ष्य था, लेकिन बाद की परिस्थितियों में पुल का निर्माण कार्य लंबा खींचने के साथ ही इसकी अनुमानित लागत भी बढ़ गई है।

 

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