हैदराबाद मुठभेड़ को लेकर सोशल मीडिया पर मिली-जुली प्रतिक्रिया

Edited By Anil dev,Updated: 06 Dec, 2019 05:37 PM

hyderabad twitter users social media hashtags

हैदराबाद में पशु चिकित्सक से सामूहिक बलात्कार और हत्या के आरोपियों की शुक्रवार को कथित मुठभेड़ में मौत के बाद कुछ ही घंटों में चार लाख से अधिक ट्वीट किये गए। एक ओर जहां कुछ ट्विटर यूजर्स ने घटना पर खुशी प्रकट की, वहीं कुछ लोग चिंतित दिखाई दिए।

नई दिल्ली: हैदराबाद में पशु चिकित्सक से सामूहिक बलात्कार और हत्या के आरोपियों की शुक्रवार को कथित मुठभेड़ में मौत के बाद कुछ ही घंटों में चार लाख से अधिक ट्वीट किये गए। एक ओर जहां कुछ ट्विटर यूजर्स ने घटना पर खुशी प्रकट की, वहीं कुछ लोग चिंतित दिखाई दिए। ट्विटर के अलावा अन्य सोशल मीडिया साइटों पर भी लोगों ने अपने विचार साझा किये। इस दौरान लोगों के बीच 2008 में भी ऐसी ही घटना में मुठभेड़ को अंजाम देने में शामिल रहे साइबराबाद पुलिस आयुक्त वी सी सज्जनर को लेकर चर्चा शुरू हो गई। 


इस दौरान जस्टिस फॉर दिशा, एनकाउंटर, और हैदाराबाद हॉरर जैसे हैशटैग ट्रेंड करना शुरू हो गए। कई लोगों ने दूसरी बार न्याय दिलाने वाले पुलिस अधिकारी सज्जनर को धन्यवाद देते हुए जश्न मनाया। गौरतलब है कि 2008 में जब सज्जनर वारंगल में पुलिस अधीक्षक थे तो उन्होंने तेजाब हमले में गिरफ्तार तीन युवकों को अगले ही दिन गोली मारकर ढेर कर दिया था। एक ट्विटर उपभोक्ता ने लिखा, 2008 वारंगल तेजाब हमले के अपराधियों की मुठभेड़ में मौत। 2019: हैदराबाद में दिशा मामले के अपराधियों की मुठभेड़ में मौत। नाम: वीसी सज्जनर। काम: न्याय दिलाना।


 उल्लेखनीय है कि तेलंगाना के सामूहिक दुष्कर्म और हत्या मामले के चार आरोपियों को हैदराबाद पुलिस ने शुक्रवार तड़के कथित मुठभेड़ में मार गिराया। पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार आरोपियों ने पुलिस से हथियार छीनकर उन पर गोली चलाई और भागने की कोशिश की। पुलिस ने जवाब में गोली चलाई, जिसमें चारों की मौत हो गई। चारों को 29 नवंबर को गिरफ्तार किया गया था। वहीं ट्विटर पर इस घटना की चर्चा के दौरान ह्यूमन राइट्स (मानवाधिकार) हैशटैग भी ट्रेंड पर रहा और दोपहर देर तक 20 हजार से अधिक लोग इस हैशटैग के साथ ट्वीट कर चुके थे। अधिकतर लोगों ने कहा कि बलात्कारियों के लिये मानवाधिकारों का कोई मतलब नहीं है। एक उपभोक्ता ने लिखा, जब आतंकवादियों और माओवादियों को बिना अदालती सुनवाई के मौत के घाट उतार दिया जाता है तो बलात्कारियों को क्यों बख्शा जाए।


एक अन्य उपभोक्ता ने ट्वीट किया, मानवाधिकार केवल मनुष्यों के लिए है राक्षसों के लिए नहीं। बलात्कारी राक्षसों के समान हैं। उन्हें मुठभेड़ में मार गिराना चाहिये। इस दौरान कुछ लोग पुलिस की कार्रवाई की आलोचना करते दिखे। वकील-कार्यकर्ता वृंदा ग्रोवर ने आरोपियों को मुठभेड़ में मार गिराने को पूरी तरह अस्वीकार्य करार देते हुए कहा कि यह कार्रवाई केवल महिलाओं के लिए समानता के नाम पर राज्य की असीमित मनमानी हिंसा का हिस्सा है। उन्होंने फेसबुक पर लिखा, भारत के उच्चतम न्यायालय का निर्देश है कि मुठभेड़ के हर मामले में पुलिस के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर जांच की जानी जरूरी है। इस मुठभेड़ की स्वतंत्र न्यायिक जांच हो। कोई जांच, कोई अभियोग नहीं होने से ये हत्याएं जनता को विचलित करती हैं और पुलिस तथा राज्य को किसी भी जवाबदेही से बचाती हैं। महिलाओं के नाम पर कोई मुठभेड़ न हो। 


वहीं महिला अधिकार कार्यकर्ता कविता कृष्णन ने ट्विटर और फेसबुक पर अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संघ का बयान साझा किया, हैदराबाद फर्जी मुठभेड़: हमारे नाम पर हिरासत में हत्याएं न की जाएं। बयान में कहा गया है कि इसमें हिरासत में की गई हत्या के संकेत मिले हैं, जिसे पूरी तरह से मुठभेड़ का रूप दिया गया। उच्चतम न्यायालय की वकील करुणा नंदी ने पूछा कि क्या चारों व्यक्ति मासूम हैं? अगर हैं, तो असली अपराधियों का क्या? उन्होंने लिखा, अब कोई यह नहीं जान पाएगा कि पुलिस ने जिन चार लोगों को मार गिराया वे मासूम थे या नहीं, क्या कार्रवाई दिखाने के लिये उन्हें जल्दबाजी में गिरफ्तार किया गया। और क्या सबसे क्रूर बलात्कार के असली चार दोषी और अधिक महिलाओं का बलात्कार तथा हत्या करने के लिये खुले घूम रहे हैं। 

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