मोदी सरकार का सबसे खराब सत्र, लोकसभा में हुआ महज 4 % काम

Edited By Naresh Kumar,Updated: 07 Apr, 2018 03:17 PM

just 4 work done in lok sabha

आपके पैसे पर तमाम सुख-सुविधाओं का आनंद उठाने वाले आपके ही चुने हुए नुमाइंदे संसद के मौजूदा सत्र में फेल साबित हुए हैं। संसद में पहले 67 अहम विधेयक लंबित थे लेकिन संसद के ठप्प पडऩे से लंबित विधेयकों की संख्या अब 68 हो गई है। इनमें देश में मैडीकल...

जालंधर(नरेश कुमार): आपके पैसे पर तमाम सुख-सुविधाओं का आनंद उठाने वाले आपके ही चुने हुए नुमाइंदे संसद के मौजूदा सत्र में फेल साबित हुए हैं। संसद में पहले 67 अहम विधेयक लंबित थे लेकिन संसद के ठप्प पडऩे से लंबित विधेयकों की संख्या अब 68 हो गई है। इनमें देश में मैडीकल शिक्षा की निगरानी करने के लिए बनाया जाने वाला नैशनल मैडीकल कमीशन बिल 2017, खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए बनाया जाने वाला नैशनल स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी बिल 2017 और केंद्रीय व राज्यों की यूनिवर्सिटीज को शिक्षकों की ट्रेनिंग के लिए कार्यक्रम को मान्यता दिलाने वाला नैशनल कौंसिल फॉर टीचर एजुकेशन अमैंडमैंट बिल 2017 भी शामिल हैं। यदि ये बिल पास हो जाते तो स्वास्थ्य, शिक्षा और खेल के क्षेत्र में बड़े सुधारों का रास्ता खुल सकता था लेकिन सदन की कार्रवाई में लगातार पड़ रही बाधा के चलते पूरे सत्र के दौरान संसद नहीं चल सकी। 

राज्यसभा में महज 9 प्रतिशत काम 
बजट सत्र के दूसरे भाग से पहले सरकार सदन में सामान्य से अधिक काम होने का अपनी उपलब्धि के तौर पर बखान कर रही थी लेकिन इस सत्र के दौरान सरकार के संसदीय प्रबंध बुरी तरह फेल हुए और लोकसभा में महज 4 तथा राज्यसभा में महज 9 प्रतिशत काम हो सका। बजट सत्र के पहले भाग में लोकसभा में 89 और राज्यसभा में 96 प्रतिशत काम हुआ था। पूरे बजट सत्र के दौरान लोकसभा में औसत 21 और राज्यसभा में औसत 27 प्रतिशत काम हुआ है। इससे पहले 16वीं लोकसभा ने अब तक औसतन 85 और राज्यसभा ने औसतन 68 प्रतिशत काम किया। 


यह बिल पास हुए 
-पेमैंट आफ  ग्रैच्यूटी बिल 2017 
-फाइनांस बिल 2018 
-द एप्रोप्रिएशन बिल 2018; नंबर (2)
-द एप्रोप्रिएशन बिल 2018; नंबर (3)

30 साल से संसद में लटके बिल 
देश की संसदीय कार्यप्रणाली का आलम यह है कि पिछले &0 सालों से कई बिल लटके पड़े हैं। द  मैडीकल कौंसिल अमैंडमैंट बिल 1987 26,अगस्त 1987 को लाया गया था लेकिन यह अभी भी लंबित है। इसी प्रकार दिल्ली रेंट एमैंडमैंट बिल 28 जुलाई, 1997 को सदन के पटल पर रखा गया था लेकिन यह बिल अभी भी लंबित है। कृषि क्षेत्र में कीटनाशकों को नियंत्रित करने के लिए 2008 में लाया गया पैस्टीसाइड मैनेजमैंट बिल 2008 पिछले 10 साल से संसद में लटका हुआ है। यह बिल 21 अक्तूबर 2008 को पेश हुआ था और 18 फरवरी, 2009 को संसद की स्थाई समिति ने इस पर अपनी रिपोर्ट दी थी लेकिन उसके बाद यह बिल लंबित पड़ा है। इसी प्रकार देश के टैलीकॉम की निगरानी करने वाली टैलीकॉम रैगुलेटरी अथारिटी यानी ट्राई में संशोधन का बिल भी 15 दिसम्बर, 2018 को लोकसभा में पेश हुआ लेकिन यह बिल भी कानून नहीं बन सका है। 

यह बिल हुए पेश 
-वित्तीय धोखाधड़ी करके विदेश भागने वालों की सम्पत्ति जब्त करने वाला द फ्यूजिटिव इकोनॉमिक ऑफैंडर बिल 2018। 
-चिट फंड के निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए लाया गया चिट फंड बिल 2018। 

सांसदों पर भरी-भरकम खर्च 
सरकार संसद के सदस्यों को 50 हजार रुपए महीना वेतन के अलावा 45 हजार रुपए महीना लोकसभा क्षेत्र के भत्ते के रूप में देती है। इसके अलावा 15 हजार रुपए प्रति माह आफिस का खर्च और 30 हजार रुपए प्रति माह निजी सचिव के वेतन के लिए मिलते हैं। इसके अलावा संसद के सदस्यों को 2000 रुपए रोजाना भत्ता और यात्रा भत्ता मिलता है। यात्रा का यह भत्ता संसद सदस्यों द्वारा तय की जाने वाली यात्रा पर आधारित होता है लेकिन संसद की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक कई संसद सदस्यों का प्रति माह यात्रा भत्ता लाखों में पहुंच जाता है।

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