बीमार पेड़ों का इलाज करता है ये डॉक्टर, जीवनदाता को देते हैं जीवनदान

Edited By Anil dev,Updated: 09 Dec, 2019 01:30 PM

kerala school teacher beenu tree

कोट्टायम के मार्लिचीपारा स्थित सेंट जोसेफ्स.पी. स्कूल में आम का एक छायादार पेड़ कुछ हफ्ते पहले तक हरा-भरा दिख रहा था लेकिन जल्दी ही उसमें एक रहस्यमय बीमारी के लक्षण उभर आए। स्कूल के बच्चे पहले तो चौंक गए, फिर उन्होंने ट्री डॉक्टर नाम से प्रसिद्ध के....

नई दिल्ली: कोट्टायम के मार्लिचीपारा स्थित सेंट जोसेफ्स.पी. स्कूल में आम का एक छायादार पेड़ कुछ हफ्ते पहले तक हरा-भरा दिख रहा था लेकिन जल्दी ही उसमें एक रहस्यमय बीमारी के लक्षण उभर आए। स्कूल के बच्चे पहले तो चौंक गए, फिर उन्होंने ट्री डॉक्टर नाम से प्रसिद्ध के. बीनू को बुलाया। अगले ही दिन वह वहां पहुंच गए और रोगी की जांच की तथा बच्चों से फिर जीवन देने का वायदा किया।

PunjabKesari

एक दुर्लभ बीमारी पाए जाने के बाद रोगी को अब एक सुखदायक थेरैपी से गुजरना पड़ेगा। बीनू के नेतृत्व में एक टीम क्षय वाले हिस्से को साफ करेगी, दवा लगाएगी और अगले कुछ दिनों में लकड़ी को एक निर्धारित आहार देगी। बच्चों को उम्मीद है कि आने वाली गर्मियों में पेड़ एक बार फिर आमों से लद जाएगा। 51 वर्षीय संरक्षणवादी के. बीनू, जो पेशे से एक स्कूली शिक्षक हैं, निश्चित रूप से एक-दो बातें ऐसी जानते हैं कि पेड़ की छाल के नीचे क्या चल रहा है। वृक्ष आयुर्वेद, जो ज्ञान की एक दुर्लभ शाखा है, जिसके बारे में प्राचीन पुस्तकों में उल्लेख है, के चिकित्सक बीनू विभिन्न बीमारियों द्वारा नष्ट हो रहे पेड़ों को बचाने के एक मिशन पर हैं। राज्य वन और वन्यजीव बोर्ड के सदस्य बीनू कहते हैं कि जिस तरह आप एक आदमी को इसलिए मार नहीं सकते कि वह बीमारी से पीड़ित है, आप उसी कारण से एक पेड़ को भी नहीं काट सकते। पेड़ों का भी एक चरित्र होता है, वे दर्द से चीखते हैं, अकेलापन महसूस करते हैं और स्नेह के लिए तरसते हैं। पर्यावरणविद् एस. सीतारमण से प्रेरित बीनू ने लगभग 6 साल पहले पेड़ों का इलाज करना शुरू किया था।

PunjabKesari

पहला मरीज
अलुवा में एक आधा जला हुआ एक पेड़ उनका पहला रोगी था। अपने जुनून का पालन करने को उत्सुक, उन्होंने चरक और सुश्रुुत द्वारा वृक्ष आयुर्वेद पर लिखी कई पुस्तकें पढ़ीं और वृक्षों के विभिन्न प्रकार के रोगों और उनके उपचार के बारे में सीखा। उन्होंने लगभग 23 पेड़ों का इलाज किया है, जिनमें एक सदी से अधिक उम्र के भी  हैं, सभी का उपचार बिल्कुल मुफ्त।

बीनू के अनुसार लगभग 6 दशक पहले तक वृक्ष आयुर्वेद का व्यापक रूप से अभ्यास किया जाता था। यह रोग के साथ-साथ पेड़ों के प्रकार के आधार पर दीमक के टीले और धान के खेतों की मिट्टी, गाय के गोबर, दूध, घी, शहद, केला के मिश्रण को पेड़ के प्रभावित हिस्से पर लगाना और भैंस का दूध  पेड़ को पिलाना निर्धारित करता है। इस दवा का मिश्रण प्रभावित हिस्से पर लगाया जाता है और फिर एक सूती कपड़े से सील कर दिया जाता है।  बीनू ने कहा कि अगले कुछ दिनों तक बंधे हिस्से को भैंस के दूध का उपयोग करके भिगोने की जरूरत होती है और घावों को पूरी तरह से ठीक होने में 6 महीने तक का समय लगता है।

बीनू ने कहा कि पेड़, विशेष रूप से सड़कों के किनारे लगे पेड़ कई बीमारियों और प्रदूषण-संबंधी तनाव के कारण मौन और धीमी मौत की ओर अग्रसर हैं। इस खतरे के खिलाफ जनता को तत्काल जागरूक होने की आवश्यकता है।
—हिरान उन्नीकृष्णन

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!