कोरेगांव-भीमा हिंसाः सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 8 दिसंबर तक आरोप पत्र दायर करे महाराष्ट्र सरकार

Edited By Seema Sharma,Updated: 03 Dec, 2018 04:05 PM

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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार को कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में गिरफ्तार मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं के खिलाफ पुणे की एक अदालत में दाखिल आरोपपत्र उसके समक्ष पेश करने का निर्देश दिया। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार को कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में गिरफ्तार मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं के खिलाफ पुणे की एक अदालत में दाखिल आरोपपत्र उसके समक्ष पेश करने का निर्देश दिया। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस के.एम. जोसेफ की पीठ ने कहा कि वह आरोपियों के खिलाफ आरोपों को देखना चाहती है। पीठ ने महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी को पुणे की विशेष अदालत में राज्य पुलिस द्वारा दाखिल आरोपपत्र आठ दिसंबर तक उसके समक्ष पेश करने का निर्देश दिया।

पीठ बंबई हाईकोर्ट के एक आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की अपील पर सुनवाई कर रही थी। हाईकोर्ट ने मामले में जांच रिपोर्ट दाखिल करने के लिए 90 दिन की समय सीमा बढ़ाने से इनकार कर दिया था। पीठ ने अब अगली सुनवाई के लिए 11 दिसंबर की तारीख तय की है। इससे पहले शीर्ष अदालत ने बंबई हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी। बंबई हाईकोर्ट ने हाल ही में निचली अदालत के उस आदेश को खारिज कर दिया था जिसमें पुलिस को आरोपियों के खिलाफ जांच रिपोर्ट दायर करने के लिये अतिरिक्त समय दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले महाराष्ट्र पुलिस द्वारा कोरेगांव-भीमा हिंसा के सिलसिले में गिरफ्तार किए गए पांच कार्यकर्त्ताओं के मामले में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया था और उनकी गिरफ्तारी के मामले में एसआईटी की नियुक्ति से इनकार कर दिया था।

पुणे पुलिस ने माओवादियों के साथ कथित संपर्कों को लेकर वकील सुरेंद्र गाडलिंग, नागपुर विश्वविद्यालय की प्रोफेसर शोमा सेन, दलित कार्यकर्त्ता सुधीर धवले, कार्यकर्त्ता महेश राउत और केरल निवासी रोना विल्सन को जून में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया था। पुणे में पिछले साल 31 दिसंबर को एलगार परिषद सम्मेलन के सिलसिले में इन कार्यकर्ताओं के दफ्तरों और घरों पर छापेमारी के बाद यह गिरफ्तारी हुई थी। पुलिस का दावा था कि इसकी वजह से अगले दिन भीमा-कोरेगांव हिंसा हुई। महाराष्ट्र सरकार ने 25 अक्टूबर को बंबई हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इससे पहले, महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश हुए वकील निशांत काटनेश्वर ने सर्वोच्च अदालत को बताया था कि अगर हाईकोर्ट के आदेश पर स्थगन नहीं दिया गया तो हिंसा के मामले में आरोपी तय वक्त में आरोप पत्र दायर न हो पाने के चलते जमानत के हकदार होंगे। गैरकानूनी गतिविधियां निरोधक अधिनियम के तहत गिरफ्तारी के 90 दिनों के अंदर आरोप पत्र दायर करना जरूरी होता है। अभियोजन हालांकि निचली अदालत में विलंब की वजह बताते हुए अतिरिक्त समय मांग सकता है। अगर अदालत संतुष्ट होती है तो वह आरोप पत्र दायर करने के लिए 90 दिन का अतिरिक्त समय दे सकती है।

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