नेतृत्व संकट से जूझ रहे माओवादी, अब शहरी युवाओं की तलाश

Edited By vasudha,Updated: 10 Sep, 2018 11:22 AM

leadership crisis in maoists

प्रतिबंधित संगठन भाकपा (माओवादी) संगठन इस समय नेतृत्व के संकट से जूझ रहा है। पोलित ब्यूरो के एक सदस्य के अनुसार इस संकट को पाटने के लिए संगठन शहरी और बुद्धिजीवी युवाओं की तलाश में है जो उसके आदिवासी और दलितों समेत जमीनी स्तर के काडर को शिक्षित कर...

नेशनल डेस्क: प्रतिबंधित संगठन भाकपा (माओवादी) संगठन इस समय नेतृत्व के संकट से जूझ रहा है। पोलित ब्यूरो के एक सदस्य के अनुसार इस संकट को पाटने के लिए संगठन शहरी और बुद्धिजीवी युवाओं की तलाश में है जो उसके आदिवासी और दलितों समेत जमीनी स्तर के काडर को शिक्षित कर सके।  पार्टी के मुखपत्र ‘लाल चिंगारी प्रकाशन’ में पोलित ब्यूरो के सदस्य प्रशांत बोस उर्फ किशनदा ने कहा कि पार्टी काडर में शिक्षित युवकों की कमी की वजह से दूसरे स्तर का नेतृत्व तैयार करने में विफल रही है। 

संगठन में नेतृत्व बड़ी चुनौती 
बुद्धिजीवी युवाओं की तलाश ऐसे वक्त में आई है जब शहरी क्षेत्रों में कट्टरपंथी विचारधारा के बढ़ते प्रभाव की रिपोर्टों के बाद ‘शहरी नक्सल’ शब्द पर बहस छिड़ी है। संगठन के प्रतिबंधित पूर्वी क्षेत्रीय ब्यूरो के सचिव ने माना कि अगली पीढ़ी का नेतृत्व करने के संबंध में भाकपा (माओवाद) कामयाबी हासिल करने में विफल रही है। बोस ने संगठन के आंतरिक प्रकाशन को दिए साक्षात्कार में कहा कि अब दूसरे स्तर का नेतृत्व तैयार करना बड़ी चुनौतियों में से एक है।

मार्क्सवाद के सिद्धांतों को समझाना मुश्किल 
भाकपा (माओवादी) ने बुजुर्ग और शारीरिक तौर पर अयोग्य नेताओं को भूमिगत गतिविधियों से मुक्त करने के लिए सेवानिवृत्त योजना शुरू की थी जिसके एक साल बाद बोस की यह स्वीकृति आई है। 72 वर्षीय नेता ने कहा कि पश्चिम बंगाल के अलावा हमने असम, बिहार और झारखंड में दलितों, आदिवासियों और गरीबों के बीच अपना आधार बनाया। इसलिए जहां शिक्षा का स्तर कम है वहां पर लोगों को मार्क्सवाद के सिद्धांतों का असल मतलब समझना मुश्किल काम है। उन्होंने कहा कि आदिवासी, दलित और गरीबों को प्रशिक्षित करने और शिक्षित करने के लिए संगठन को कई क्रांतिक्रारी, शिक्षित और बुद्धिजीवी कॉमरेड की जरूरत है। 

मौजूदा पीढ़ी को नहीं है दिलचस्पी
पश्चिम बंगाल पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि प्रतिबंधित संगठन में नेतृत्व का संकट सच हो सकता है क्योंकि उनके कई शीर्ष नेताओं को या तो मार दिया गया है या गिरफ्त्तार कर लिया गया है। उन्होंने कहा कि यह सच है कि वे नेतृत्व के संकट का सामना कर रहे हैं, लेकिन तथ्य यह है कि पढ़े लिखे युवाओं से उनकी अपील का कोई फायदा नहीं होने वाला है क्योंकि मौजूदा पीढ़ी जंगलों में गुरिल्ला लड़ाके की जिंदगी जीने में दिलचस्पी नहीं रखती है।

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