Edited By Pardeep,Updated: 06 Apr, 2021 06:41 AM
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के 2 मई को आने वाले परिणाम भाजपा के लिए कई मायनों में निर्णायक मोड़ होंगे। इससे न केवल भाजपा के लिए पूरे भारत में अपनी पहुंच बनाने के लिए द्वार खुल जाएंगे बल्कि आने वाले वर्षों में संपूर्ण राजनीतिक
नई दिल्लीः पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के 2 मई को आने वाले परिणाम भाजपा के लिए कई मायनों में निर्णायक मोड़ होंगे। इससे न केवल भाजपा के लिए पूरे भारत में अपनी पहुंच बनाने के लिए द्वार खुल जाएंगे बल्कि आने वाले वर्षों में संपूर्ण राजनीतिक परिदृश्य पर मोदी-शाह की पकड़ और मजबूत होगी।
ऐसा नहीं है कि केरल, असम, तमिलनाडु और पुड्डुचेरी में होने वाले विधानसभा चुनाव भाजपा की रणनीति में महत्वपूर्ण नहीं हैं, उसका सबसे अधिक फोकस तृणमूल कांग्रेस से प. बंगाल छीनना तथा असम को अपने पास बरकरार रखना है। केरल में भाजपा की प्राथमिकता कांग्रेस को हराना है। इसके बदले अगर वहां माकपा दोबारा सत्ता में आती है तो वह यह सौदा महंगा नहीं मानेगी। भाजपा ने कांग्रेसजन के लिए अपने द्वार पूरी तरह खोल दिए हैं। दिल्ली में सत्ता के गलियारों के जानकारों का कहना है कि वाम दल से भाजपा की मौन सहमति बन चुकी है।
वाम दल इसके बदले प. बंगाल में भाजपा की मदद कर रहे हैं जबकि उनका गठबंधन कांग्रेस से है। दोनों की एक ही शत्रु है और वह है तृणमूल कांग्रेस। प. बंगाल में अब नया नारा चल रहा है-‘आगे राम-पूरे बाम’ यानी पहले राम-फिर वाम। इसका अर्थ हुआ कि पहले ममता को हटाया जाए और भाजपा को इस बार जीतने दिया जाए।
भाजपा ने 2017 में पंजाब में इसी तरह का खेल खेला था जब आम आदमी पार्टी को सत्ता से दूर रखने के लिए उसने कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की जीत सुनिश्चित की थी। इन बातों को देखते हुए अब सवाल यह उठता है कि कैसे राहुल गांधी प. बंगाल में वाम दलों के जाल में फंस गए जिन्होंने उन्हें तृणमूल कांग्रेस से हाथ नहीं मिलाने दिया तो क्या राहुल गांधी अब तक प्रचार करने प. बंगाल इसलिए ही नहीं गए?