महज 18 साल की उम्र में गंवाए हाथ, अब पैरों की अंगुलियों से लिख रहे कामयाबी की इबारत

Edited By rajesh kumar,Updated: 28 Mar, 2024 07:39 PM

lost hands at just 18 years of age

महज 18 साल की उम्र में दोनों हाथ गंवाने वाले 58 वर्षीय देवकीनंदन शर्मा ने परिस्थितियों से हार नहीं मानी और पैरों की अंगुलियों से लिखना सीखा। कभी उत्तराखंड में पशु चराने का काम करने वाले शर्मा अपनी मेहनत के बल पर अब राजस्थान में एक एनजीओ में प्रबंधक...

नेशनल डेस्क: महज 18 साल की उम्र में दोनों हाथ गंवाने वाले 58 वर्षीय देवकीनंदन शर्मा ने परिस्थितियों से हार नहीं मानी और पैरों की अंगुलियों से लिखना सीखा। कभी उत्तराखंड में पशु चराने का काम करने वाले शर्मा अपनी मेहनत के बल पर अब राजस्थान में एक एनजीओ में प्रबंधक के पद पर हैं। कोटा में ‘भगवान महावीर विकलांग सहायता समिति' के कार्यालय में शर्मा कागजात संबंधी काम करते हैं और केवल अपने पैर की उंगलियों का उपयोग करके डिजिटल रूप से सभी रिकॉर्ड रखते हैं।

शर्मा ने कहा, ‘‘कागजात पिन करना मेरे लिए एक कठिन काम है क्योंकि इसमें बहुत मशक्कत और समय लगता है।'' पारंपरिक तौर पर डेस्क पर काम करने के विपरीत, शर्मा जमीन पर लकड़ी का एक चौड़ा फट्टा रखकर पैरों की मदद से कागजात संबंधी कार्य करते हैं। इन कर्तव्यों के साथ-साथ वह उसी लकड़ी के बोर्ड पर कंप्यूटर रखकर अपना काम अच्छे से करते हैं। शर्मा अपने पैर की अंगुलियों से माउस और कीबोर्ड का सहजता से उपयोग कर पाते हैं। शर्मा का कहना है कि वह स्कूल में एक प्रतिभाशाली छात्र थे और हमेशा एक ऐसी नौकरी का सपना देखते थे जहां वह कागजात संबंधी कामकाज कर सकें।

नैनीताल के शिलालेख गांव में हुआ था जन्म 
शर्मा का जन्म और पालन-पोषण नैनीताल के शिलालेख गांव में हुआ था। उन्होंने कहा, ‘‘मैं गणित और अंग्रेजी में बहुत तेज था और मेरा सपना था कि मुझे एक ऐसी नौकरी मिले जहां मैं कार्यालय में कागजात पर हस्ताक्षर और लिखने-पढ़ने का काम कर सकूं। मेरा यह सपना तब टूट गया जब 1981 में एक दिन संविदा मजदूर के रूप में काम करते समय मुझे बिजली का जोरदार झटका लगा और मैंने अपने दोनों हाथ खो दिए। तब में आठवीं कक्षा में पढ़ता था।'' शर्मा कहते हैं कि अस्पताल से घर लौटने पर उन्हें ग्रामीणों ने ‘‘बेकार'' कहा, जिसके बाद उन्हें जंगल में मवेशी चराने का काम दिया गया।

पहला पत्र अपने भाई को लिखा 
उन्होंने उस समय का उपयोग अपने पैर के अंगूठे और अंगुली के बीच एक पेड़ की टहनी को पकड़कर लिखने का अभ्यास करने में किया। छह महीने के नियमित अभ्यास के बाद, एक दिन उन्होंने जमीन पर एक कमल का फूल बनाया और हिंदी में उसे लिखा, ‘‘कमल''। इससे शर्मा को अपने पैर की अंगुलियों के बीच पेन पकड़कर कागज पर अभ्यास करने का आत्मविश्वास मिला। आखिरकार अपने पैर की अंगुलियों से कागज पर लिखने की इस कला में महारत हासिल करने में उन्हें आठ महीने का समय लगा, जिसके लिए उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ी। शर्मा ने कहा, ‘‘मैंने पैर की अंगुलियों के बीच कलम पकड़कर सबसे पहला पत्र अपने भाई को लिखा था, जो उस समय उत्तराखंड के अल्मोड़ा में तैनात थे।

जानें कैसे मिली नौकरी?
इससे आश्चर्यचकित होकर भाई ने मुझे पढ़ाई फिर से शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया।'' उन्होंने अपने भाई की सलाह मानी और 1986 में अपनी उच्चतर माध्यमिक शिक्षा पूरी की। उसी वर्ष, उत्तराखंड के रानीखेत में दिव्यांग लोगों के लिए एक शिविर आयोजित किया गया था, जहां शर्मा ने सामाजिक कार्यकर्ता प्रसन्ना और उनके पति एम.सी. भंडारी से मुलाकात की। भंडारी कोटा स्थित भगवान महावीर विकलांग सहायता समिति के संस्थापक थे। दंपति शर्मा की पैर की अंगुलियों से लिखने की क्षमता से बेहद प्रभावित हुए और उन्हें अपने साथ कोटा चलने के लिए कहा। शर्मा को शुरुआत में यहां एनजीओ में स्टोरकीपर की नौकरी की पेशकश की गई थी और 2001 में उन्हें प्रबंधक के पद पर पदोन्नत किया गया।

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