राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ राजनीति में भी नहीं, राजनीति से दूर भी नहीं

Edited By Yaspal,Updated: 07 Jun, 2018 07:27 PM

national self service union not even in politics not far from politics

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के हेडक्वाटर नागपुर में गुरुवार को देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी पहुंचे तो सियासी हंगामा शुरू हो गया। कांग्रेस ने पूर्व राष्ट्रपति के इस फैसले की आलोचना की है तो वहीं बीजेपी इसे देशहित में बता रही है।

नेशनल डेस्कः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के हेडक्वाटर नागपुर में गुरुवार को देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी पहुंचे तो सियासी हंगामा शुरू हो गया। कांग्रेस ने पूर्व राष्ट्रपति के इस फैसले की आलोचना की है तो वहीं बीजेपी इसे देशहित में बता रही है। आरएसएस से जुड़े लोगों का मानना है कि यह संगठन धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में काम करता है।

है क्या आरएसएस, क्या काम करता है, क्या है इसकी शक्ति ?

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) एक गैर-राजनीतिक संगठन है, लेकिन यह भी सच है कि देश की राजनीति में उसका एक बड़ा रोल है। आज देश के तीन सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर आरएसएस से निकले हुए नेता ही काबिज हैं, जिनमें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, ये सब आरएसएस के आंगन से निकले हुए लोग हैं, इतना ही नहीं देश के आधे से ज्यादा राज्यों में आरएसएस से जुड़े लोग ही मुख्यमंत्री पद पर काबिज हैं।

30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बैन कर दिया गया था। 18 महीने बाद संघ पर लगे प्रतिबंध को 11 जुलाई 1949 को तब हटाया, जब तत्कालीन संघ प्रमुख माधवराव सदाशिव गोलवलकर ने देश के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की यह शर्त मान ली, जिसमें कहा गया था कि संघ अपना लिखित संविधान तैयार करेगा, जिसमें लोकतांत्रिक ढंग से चुनाव होंगे और वह राजनीतिक गतिविधियों से पूरी तरह दूर रहेगा।

पर्दे के पीछे से करता है राजनीति
आरएसएस प्रत्यक्ष तौर पर राजनीति में भाग नहीं लेता और न ही चुनाव लड़ता है, लेकिन पर्दे के पीछे से सियासत में उसका दखल बहुत है। संघ मौजूदा दौर में राजनीति की धुरी बना हुआ है। देश के बीस राज्यों में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की सरकारें हैं। इनमें ज्यादातर राज्यों के मुख्यमंत्री संघ से सीधे जुड़े रहे हैं, जिनमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उत्तराखंड के त्रिवेंद्र सिंह रावत, हरियाणा के मनोहर लाल खट्टर, महाराष्ट्र के देवेंद्र फडणवीस, झारखंड के रघुवरदास, त्रिपुरा के विप्लब कुमार देव, हिमाचल प्रदेश के जयराम ठाकुर जैसे नाम शामिल हैं। वहीं केंद्र की मोदी सरकार में भी स्वयंसेवकों मंत्रियों की लंबी लिस्ट है।

आरएसएस बीजेपी सरकारों के कामकाज पर पर्याप्त नजर रखता है, इसके लिए संघ बाकायदा समन्वय बैठक भी करता है। इस बैठक के जरिए संघ पदाधिकारी बीजेपी सरकार के कामकाज की समीक्षा करते हैं। संघ जरूरी होने पर सरकार की दशा और दिशा भी तय करता है। संघ का सरकार पर ही नहीं, भारतीय जनता पार्टी (BJP) पर भी खासा नियंत्रण रखता है। बीजेपी और संघ के बीच समन्वय के तौर पर काम करने के लिए आरएसएस अपने पदाधिकारी को पार्टी में बतौर संगठन मंत्री नियुक्त करता है। राष्ट्रीय संगठन से लेकर जिला स्तर तक पर बीजेपी में संगठन मंत्री की अहम भूमिका होती है।

पीएम नरेंद्र मोदी पहले आरएसएस के संगठन मंत्री थे
बीजेपी में संगठन मंत्री संसदीय बोर्ड की बैठकों में जाता है और आरएसएस की सभी बड़ी बैठकों में आमंत्रित किया जाता है। इसलिए उसे हर ज्वलंत मुद्दे पर उस राजनैतिक संगठन और उसके वैचारिक संचालक की सोच मालूम होती है। आरएसएस अपने तीन दर्जन से अधिक सहयोगी संगठनों में से हरेक के लिए कम से कम एक प्रचारक को संगठन मंत्री बनाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद संगठन मंत्री के रूप में संघ से बीजेपी में आए थे।

अटल-आडवाणी के दौर में बीजेपी में संगठन मंत्री के लिए संघ ने गोविंदाचार्य को नियुक्त किया था। इसी प्रकार मौजूदा दौर में रामलला संगठन मंत्री के तौर पर काम कर रहे हैं। हरियाणा के राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी मध्य प्रदेश में बीजेपी के संगठन मंत्री रह चुके हैं। आज के समय राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के सबसे कद्दावर नेताओं में शुमार पार्टी महासचिव राम माधव भी कुछ साल पहले तक आरएसएस के अखिल भारतीय सह संपर्क प्रमुख रह चुके हैं।

सन् 1951 से की थी राजनीति में दखल की शुरूआत 
जिन राज्यों में चुनाव होते हैं। वहां बीजेपी के लिए राजनीतिक जमीन तैयार करने का काम आरएसएस करता है। वहां स्वयंसेवक पार्टी उम्मीदवार के लिए घर-घर जाकर वोट मांगने का काम करते हैं। 2014 में नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने में संघ ने अहम भूमिका निभाई थी। आरएसएस की राजनीति में दखल की शुरूआत जनसंघ से होती है। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में संघ के कार्यकर्ताओं को लेकर जनसंघ की स्थापना की। 1952 में हुए आम चुनाव में जनसंघ ने राजनीतिक दल के रूप में भाग लिया। उसे इसमें ज्यादा सफलता तो नहीं मिली, लेकिन राजनीति के क्षेत्र में उसकी दस्तक महत्वपूर्ण रही।

जनसंघ को मजबूत करने में संघ के प्रचारक नानाजी देशमुख, बलराज मधोक, भाई महावीर, सुंदरसिंह भंडारी, जगन्नाथराव जोशी, लालकृष्ण आडवाणी, कुशाभाऊ ठाकरे, रामभाऊ गोडबोले, गोपालराव ठाकुर और अटल बिहारी वाजपेयी ने अहम भूमिका निभाई।

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