Edited By Anil dev,Updated: 28 Jan, 2019 01:10 PM
साल 2018 के पद्म पुरस्कारों की सूची में कुछ ऐसे गुमनाम लोग भी शामिल हैं, जिनके समाजसेवा के कामों के बारे में बेहद सीमित लोग ही जानते हैं। इनमें चाय बेचने वाले से लेकर सेवानिवृत्त आई.पी.एस. अधिकारी तक सब शामिल हैं
नई दिल्ली: साल 2018 के पद्म पुरस्कारों की सूची में कुछ ऐसे गुमनाम लोग भी शामिल हैं, जिनके समाजसेवा के कामों के बारे में बेहद सीमित लोग ही जानते हैं। इनमें चाय बेचने वाले से लेकर सेवानिवृत्त आई.पी.एस. अधिकारी तक सब शामिल हैं लेकिन इस सूची में शामिल एक महिला का नाम आपको चौंका सकता है। खासतौर पर इसलिए भी क्योंकि विदेशी होने के बावजूद वह एक ऐसे काम को अंजाम दे रही हैं, जिसके पीछे देश 2 धड़ों में बंटा हुआ है। हम बात कर रहे हैं गौ माता की आश्रयदात्री नाम से चॢचत जर्मन महिला फ्राइडरीके इरिना ब्रूनिंग की। उन्हें पिछले 23 सालों से उत्तर प्रदेश के मथुरा में अपनी गौशाला में 1200 गायों की देखभाल के लिए अथक कार्य करने के लिए जाना जाता है। वह बॢलन में अपनी संपत्ति के किराए से मिलने वाले पैसों से लावारिस, बीमार और घायल गायों की देखभाल करती हैं।
झुग्गी के बच्चों पर खर्च करते हैं चाय बेचकर मिला मुनाफा
‘चाय बेचने वाले गुरु’ के नाम से चॢचत देवरापल्ली प्रकाशराव चाय बेचने से मिलने वाले पैसे झुग्गी-झोंपडिय़ों के बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर लगा रहे हैं। महज 7 साल की उम्र से ही काम कर रहे और सीने के लकवे से ग्रस्त राव ने कटक में ‘आशा ओ आश्वासन’ नामक स्कूल स्थापित करने और उसे चलाने में अपनी कमाई का आधा हिस्सा लगा दिया। सेवानिवृत्त आई.पी.एस. अधिकारी ज्योति कुमार सिन्हा सेवानिवृत्ति के उपरांत बिहार में मुशहर समुदाय के बच्चों को शिक्षा देने में जुटे हैं। वह राष्ट्रीय सुरक्षा सचिवालय में सचिव रह चुके हैं। मुशहरों में महज 3 फीसदी साक्षरता दर है। सिन्हा ने अंग्रेजी माध्यम आवासी विद्यालय-शोषित समाधान केंद्र खोला जहां 320 मुशहर विद्यार्थी पहली से 12वीं कक्षा में पढ़तेहैं।
‘कैनाल मैन ऑफ ओडिशा’ को भी पद्म सम्मान
दायतारी नाइक को ‘कैनाल मैन ऑफ ओडिशा’ कहा जाता है क्योंकि उन्होंने खेतों की सिंचाई के वास्ते पहाड़ का पानी लाने के लिए अकेले ही नहर खोद डाली। असम के उद्धब कुमार भराली ने अनार से दाने निकालने की मशीन, लहसुन के छिलके हटाने की मशीन जैसे 118 नवोन्मेष किए। महिला किसान मदुरै चिन्ना पिल्लै ने देश का पहला ग्रामीण महिला बचत एवं साख समूह का फैडरेशन खड़ा किया। शब्बीर सैयद महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में 165 गायों की देखभाल कर रहे हैं। 67 वर्षीय मोहम्मद हनीफ दिल्ली के एक संस्कृत विद्वान हैं जो प्राचीन भारतीय श्लोकों पर आधारित अपनी पुस्तकों और कविताओं से हिंदू-मुस्लिम सौहार्द को बढ़ावा देते हैं। कर्नाटक की 106 वर्षीय सालुमारदा थिम्मक्का ने 65 सालों में अकेले ही हजारों पेड़ लगाए। दागली मुक्ताबेन पंकजकुमार गरीब दृष्टिबाधित महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में मदद करती हैं। महाराष्ट्र के मेलघाट जिले में नक्सल प्रभावित बैरागाड में डॉक्टर दंपति स्मिता और रवींद्र कोल्हे गरीब कोरकू आदिवासियों की 3 दशक से सेवा कर रहे हैं। दोनों क्लिनिक चलाते हैं और महज 1-2 रुपए शुल्क लेते हैं।