'सांस थमती रही...फिर भी पाकिस्तानियों के छक्के छुड़ाते रहे 'शेरशाह', बोले थे-चाहे तिरंगे में आऊं पर घर आऊंगा जरूर

Edited By Seema Sharma,Updated: 07 Jul, 2023 02:07 PM

salute to param vir chakra captain vikram batra

परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा 7 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों से लड़ते हुए देश के लिए शहीद हो गए थे। शहीद कैप्टन बत्रा ने करगिल युद्ध में अदम्य शौर्य दिखाया था।

नेशनल डेस्क: परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा 7 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों से लड़ते हुए देश के लिए शहीद हो गए थे। शहीद कैप्टन बत्रा ने करगिल युद्ध में अदम्य शौर्य दिखाया था। उन्होंने कारगिल की पॉइंट 4875 से दुश्मनों को खदेड़कर तिरंगा लहराया था। कैप्टन विक्रम बत्रा के नाम से दुश्मन भी थर-थर कांपते थे। पाकिस्तानी सेना ने तो विक्रम बत्रा को शेरशाह नाम दिया था। कैप्टन बत्रा को मरणोपरांत वीरता सम्मान परमवीर चक्र से समान्नित किया गया था। उनके अदम्य साहस और बहादुरी के चर्चे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में भी थे।

 

 'ये दिल मांगे मोर...'


हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में 9 सितंबर 1974 को विक्रम बत्रा का जन्म हुआ था। 19 जून 1999 को कैप्टन विक्रम बत्रा की लीडरशिप में इंडियन आर्मी ने घुसपैठियों से प्वाइंट 5140 छीन लिया था। ये रणनीति के हिसाब से बड़ा महत्वपूर्ण प्वाइंट था क्योंकि यह एक ऊंची, सीधी चढ़ाई पर पड़ता था। वहां छिपे पाकिस्तानी घुसपैठिए भारतीय सैनिकों पर ऊंचाई से गोलियां बरसा रहे थे। इसे जीतते ही विक्रम बत्रा अगले प्वाइंट 4875 को जीतने के लिए चल दिए, जोकि सी-लेवल से 17 हजार फीट की ऊंचाई पर था और 80 डिग्री पर पड़ता था। कारगिल युद्ध के शेरशाह को देश हमेशा याद रखेगा, क्योंकि इस जवान ने हमेशा युवाओं से कहा कि कुछ भी हो जाए, कितनी भी विपरीत परिस्थिति हो, हम बस ये कहें कि 'ये दिल मांगे मोर। लेफ्टिनेंट जनरल वीके जोशी ने एक बार बताया था कि कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा कब्जे में लिए गए एक और चोटी 5140 को फतह करने का जब निर्देश आया तो मैंने विक्रम से पूछा था कि कोड वर्ड क्या होगा, तब विक्रम ने कहा था, 'ये दिल मांगे मोर...'। लेफ्टिनेंट जनरल जोशी ने कहा कि हालांकि मैंने यह मजाक में लिया और पूछा कि यह शब्द क्यों, तब विक्रम ने कहा था कि मैं सिर्फ एक नहीं बल्कि अधिक से अधिक पाकिस्तानी बंकरों पर कब्जा करना चाहता हूं। इसलिए जब भी वह सफल होता था, हर बार यह दोहराता था...ये दिल मांगे मोर..।'

 

'घर जरूर आऊंगा'

7 जुलाई 1999 को अपने साथी जख्मी ऑफिसर को बचाते हुए बिक्रम बत्रा शहीद हो गए थे। ऑफिसर को बचाते हुए कैप्टन बत्रा ने कहा था, ‘तुम हट जाओ, तुम्हारे बीवी-बच्चे हैं। तभी अचानक एक बम उनके पैर के पास आकर फटा, नवीन बुरी तरह घायल हो गए। विक्रम बत्रा ने तुरंत उन्हें वहां से हटाया, जिससे नवीन की जान बच गई लेकिन कैप्टन ने देश के लिए शहादत दे दी। पाकिस्तानी सेना ने कोड नेम में विक्रम बत्रा को शेरशाह नाम दिया था। पाकिस्तानों ने कैप्टन बत्रा को बंकरों पर कब्जा करते हुई पहाड़ी की चढ़ाई न करने की चेतावनी दी, इस पर बत्रा गुस्से में आ गए कि उनको कैसे चुनौती दी गई। इसके बाद ये दिल मांगे मोर का नारा देते हुए कैप्टन बत्रा ने पाकिस्तानियों की चुनौती का जवाब दिया। इसी ऑप्रेशन में पाकिस्तानी सेना ने उन्हें शेरशाह का नाम दिया। कारगिल युद्ध के दौरान अपनी शहादत से पहले, होली के त्यौहार के दौरान सेना से छुट्टी पर अपने घर आए, यहां अपने सबसे अच्छे दोस्त और मंगेतर डिंपल चीमा से मिले, इस दौरान युद्ध पर भी चर्चा हुई, जिस पर कैप्‍टन ने कहा कि था कि ‘‘या तो मैं जीत के बाद तिरंगा लहरा कर आऊंगा या फिर उसी तिरंगे में लिपट कर आऊंगा। लेकिन आऊंगा जरूर।

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