ऑफ द रिकॉर्ड: मोदी-शाह टीम की राजनीति का शाहनवाज हुसैन ने ‘स्वाद’ चखा

Edited By Pardeep,Updated: 24 Mar, 2019 04:57 AM

shahnawaz hussain tweeted the politics of modi shah team

भाजपा के वयोवृद्ध नेता एल.के. अडवानी ही मई 2014 के बाद से मोदी-शाह टीम की रणनीति के एकमात्र शिकार नहीं हुए उनके साथ पार्टी के सुन्नी मुस्लिम समुदाय से संबंधित सबसे बड़े नेता शाहनवाज हुसैन भी इस जोड़ी की रणनीति के बड़े शिकार हुए हैं। मई 2014 में...

नेशनल डेस्क: भाजपा के वयोवृद्ध नेता एल.के. अडवानी ही मई 2014 के बाद से मोदी-शाह टीम की रणनीति के एकमात्र शिकार नहीं हुए उनके साथ पार्टी के सुन्नी मुस्लिम समुदाय से संबंधित सबसे बड़े नेता शाहनवाज हुसैन भी इस जोड़ी की रणनीति के बड़े शिकार हुए हैं। मई 2014 में भाजपा को अपने बलबूते पर लोकसभा में स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ था। यद्यपि शाहनवाज को पार्टी की सबसे बड़ी केन्द्रीय चुनाव समिति में बरकरार रखा गया, इसके साथ ही उन्हें वरिष्ठ प्रवक्ता और चुनाव प्रचारक के रूप में भी पद पर बनाए रखा गया। 
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बिहार में भागलपुर सीट पर 8,000 मतों से हारने के बाद मोदी को यह अवसर मिला कि शाहनवाज को उनकी जगह बता दी जाए। भाजपा में केवल वह ही ऐसे नेता नहीं जो चुनाव हारे हैं बल्कि अरुण जेतली, स्मृति ईरानी, मुख्तार अब्बास नकवी जैसे सभी नेता मोदी लहर के दौरान 2014 के लोकसभा चुनावों में पराजित हुए थे। वास्तव में ये सभी नेता अपने विरोधियों के हाथों बड़े अंतर से हारे थे। सबसे बड़ी पराजय जेतली को मिली थी लेकिन मोदी ने इनमें से प्रत्येक को 2014 में उस समय मंत्री पद दिया जब कैबिनेट का गठन किया गया मगर शाहनवाज को पंडित पंथ मार्ग में अपने घर में सुबकने के लिए छोड़ दिया गया। 
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उनके मैंटर और गुरु एल.के. अडवानी को भी उनका बचाव करने के लिए अलग कर दिया गया लेकिन भाजपा में जो भी अडवानी का ‘चेला’ है उसे दरकिनार किया गया। हुसैन इससे अछूते नहीं थे लेकिन मोदी सरकार के 5 वर्ष के कार्यकाल में शाहनवाज को नजरअंदाज किया गया। उन्हें राज्यसभा में नहीं लाया गया और वह गैर-सांसद के नाम पर जाने जाने लगे। उन्हें पार्टी में महासचिव पद की कभी जिम्मेदारी नहीं दी गई। 
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मुस्लिम चेहरा नजमा हेप्तुल्ला भी अडवानी की समर्थक थीं मगर उन्हें कैबिनेट में बनाए रखा गया और बाद में राज्यपाल भी नियुक्त किया गया लेकिन वह बोरा मुस्लिम समुदाय से संबंधित हैं और नकवी शिया समुदाय से हैं। इनमें से किसी का भी सुन्नी समुदाय में दबदबा नहीं। जब 2019 में लोकसभा के टिकट देने का समय आया तो मोदी-शाह टीम ने भागलपुर सीट सौदेबाजी में जनता दल (यू) को दे दी। अब हुसैन लाल-पीले हो रहे हैं क्योंकि वह 2019 में लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे। यह बात भी यकीनी नहीं कि उन्हें राज्यसभा की सीट दी जाएगी या नहीं। यहां यह बात उल्लेखनीय है कि भाजपा ने कश्मीर घाटी को छोड़ कर उत्तर भारत में किसी भी राज्य से एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को चुनावी मैदान में नहीं उतारा।

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