आज से आरंभ हो रहे हैं शक्तिपीठों में सावन मेले

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 01 Aug, 2019 07:56 AM

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सावन का महीना आरंभ हो गया है। भोले बाबा को प्रसन्न करने के लिए भक्त हर संभव प्रयास कर रहे हैं। वहीं भगवान शिव की अर्द्धांगिनी मां भगवती के शक्तिपीठों में 1 अगस्त से लेकर 9 अगस्त तक मेले आरंभ होने जा रहे हैं।

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सावन का महीना आरंभ हो गया है। भोले बाबा को प्रसन्न करने के लिए भक्त हर संभव प्रयास कर रहे हैं। वहीं भगवान शिव की अर्द्धांगिनी मां भगवती के शक्तिपीठों में 1 अगस्त से लेकर 9 अगस्त तक मेले आरंभ होने जा रहे हैं। पौराणिक कथा के अनुसार देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति द्वारा अपनी राजधानी में किए गए यज्ञ में उन्हें न बुलाने पर माता ने इसे अपना और भोलेनाथ का अपमान समझा और उसी हवन कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे। तब भोलेनाथ ने देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाया। उसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 52 हिस्सों में विभाजित कर दिया और उनके शरीर के हिस्से धरती पर जहां-जहां गिरे, वहां-वहां एक शक्तिपीठ बन गए। 52 स्थानों पर जहां-जहां सती के अंग गिरे थे वहां पर शक्तिपीठ स्थापित हुए।

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हिमाचल में मुख्यत: चामुंडा देवी नंदीकेश्वर में, माता ब्रजेश्वरी देवी कांगड़ा में, मां ज्वाला जी ज्वालामुखी में, मां नयना देवी आनंदपुर साहब में और मां छिन्नमस्तिका धाम चिंतपूर्णी में हैं जहां सावन में भारी मेला लगता है। 

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चामुंडा देवी: माता सती का वाम वक्षस्थल कांगड़ा में इस स्थान पर गिरा था जिसे माता बज्रेश्वरी या कांगड़े वाली माता के नाम से पूजा जाता है। मां बज्रेश्वरी देवी के इस शक्तिपीठ में प्रतिदिन सुबह-शाम माता की आरती होती है। सुबह मंदिर के कपाट खुलते ही सबसे पहले मां की शैय्या को उठाया जाता है। उसके बाद रात्रि के शृंगार में ही मां की मंगला आरती की जाती है। इसमें खास बात यह है कि मंदिर में दोपहर की आरती और मां का भोग लगाने की रस्म को गुप्त रखा जाता है।

ब्रजेश्वरी देवी (नगरकोट कांगड़ा वाली) 
यह स्थान जनसाधारण में नगरकोट कांगड़ा वाली देवी के नाम से विख्यात है। यहां दर्शन किए बिना यात्रा सफल नहीं मानी जाती। कांगड़ा में सती के वक्ष गिरे थे। मान्यता है कि यहां माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था इसलिए ब्रजरेश्वरी शक्तिपीठ में मां के वक्ष की पूजा होती है। माता बज्रेश्वरी का यह शक्तिपीठ अपने आप में अनूठा और विशेष है क्योंकि यहां मात्र हिन्दू भक्त ही शीश नहीं झुकाते बल्कि मुस्लिम और सिख धर्म के श्रद्धालु भी इस धाम में आकर अपनी आस्था के फूल चढ़ाते हैं। कहते हैं ब्रजेश्वरी देवी मंदिर के तीन गुंबद इन तीन धर्मों के प्रतीक हैं। पहला हिन्दू धर्म का प्रतीक है, जिसकी आकृति मंदिर जैसी है तो दूसरा मुस्लिम समाज का और तीसरा गुंबद सिख संप्रदाय का प्रतीक है। मंदिर परिसर में भगवान लाल भैरव का मंदिर भी है। मंदिर में विराजित लाल भैरव की प्रतिमा लगभग पांच हजार वर्ष पुरानी बताई गई है। कहा जाता है कि जब भी कांगड़ा पर कोई मुसीबत आने वाली होती है तो इस प्रतिमा की आंखों से आंसू और शरीर से पसीना आने लगता है। उसके बाद पुजारी विशाल हवन का आयोजन करते हैं और मां से इस विपदा को टालने के लिए प्रार्थना करते हैं। मां के आशीर्वाद से आने वाली आपदा टल जाती है।

मां ज्वाला जी ज्वालामुखी
मां ज्वाला जी ज्वालामुखी में यह धूमा देवी का स्थान है। इनकी मान्यता 52 शक्ति पीठों में सर्वोपरि है। कहा जाता है कि यहां भगवती सती की महाजिह्वा गिरी थी तथा यहां शिव उन्मत भैरव रूप में स्थित हैं। इस तीर्थ पर देवी के दर्शन ज्योति के रूप में किए जाते हैं। ज्वालामुखी मंदिर कांगड़ा घाटी से 30 कि.मी. दक्षिण में हिमाचल प्रदेश में स्थित है। यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में शामिल है। ज्वालामुखी मंदिर को ‘जोतां वाली का मंदिर भी कहा जाता है। ज्वालामुखी मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवों को जाता है। इसकी गिनती माता के प्रमुख शक्ति पीठों में होती है। मान्यता है कि यहां देवी सती की जीभ गिरी थी।

यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहां किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है। यहां पृथ्वी के गर्भ से नौ अलग-अलग जगह से ज्वाला निकल रही है जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया है। इन नौ ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका, अंजी देवी के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का प्राथमिक निर्माण महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निर्माण कराया।

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मां नयना देवी
इस स्थान पर सती के दोनों नेत्र गिरे थे। नैना देवी की गणना प्रमुख शक्ति पीठों में होती है। हिमाचल प्रदेश स्थित यह स्थान पंजाब की सीमा के समीप है। मंदिर में भगवती नैना देवी के दर्शन पिंडी के रूप में होते हैं।

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चिंतपूर्णी 
यह छिन्नमस्तिका देवी का स्थान है। इन्हें चिंतपूर्णी अर्थात चिंता को दूर करने वाली देवी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस स्थान पर सती के चरणों के कुछ अंश गिरे थे। इनके दर्शन पिंडी के रूप में होते हैं।

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