नजरिया: भारत-अमरीका रिश्तों में मोदी का ट्रम्प कार्ड होंगे तरणजीत सिंह संधू

Edited By Anil dev,Updated: 15 Jan, 2020 03:42 PM

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आपने वो मुहावरा तो  सुना ही होगा .. सौ मर्ज़ों की एक दवा।... लगातार अपनी विदेश नीति को लेकर आलोचनाओं के घेरे में चल रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वो दवा ढूंढ ली है। यह दवा न सिर्फ विदेश नीति के मोर्चे पर मिल रहे घाव ठीक करेगी बल्कि आर्थिक लाभ की...

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा ): आपने वो मुहावरा तो  सुना ही होगा .. सौ मर्ज़ों की एक दवा।... लगातार अपनी विदेश नीति को लेकर आलोचनाओं के घेरे में चल रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वो दवा ढूंढ ली है। यह दवा न सिर्फ विदेश नीति के मोर्चे पर मिल रहे घाव ठीक करेगी बल्कि आर्थिक लाभ की नयी वाहनियां भी खोलेगी।  इस दवा का नाम है तरणजीत सिंह संधू। तरणजीत सिंह संधू भारतीय विदेश सेवा में 1988 बैच के अफसर हैं और विदेश नीति के मोर्चे का जाना-माना हस्ताक्षर हैं।  उनके पास संयुक्त राष्ट्र में काम करने का लम्बा अनुभव है  और वे लगातार चार साल तक अमेरिका में  भारत की तरफ से चीफ ऑफ़ मिशन रह चुके हैं। वाशिंगटन में एक मिशन अधिकारी के रूप में उनका कुल आठ साल का तज़र्बा है। इसके अतिरिक्त संधू श्रीलंका में राजदूत के तौर पर अपनी पारी के दौरान दोनों देशों खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और श्रीलंकाई राष्ट्रपति राजपक्षे गोटाबाया के रिश्तों के बीच भी मिश्री घोल चुके हैं।  हालांकि उनके नाम की आधिकारिक घोषणा अभी बाकी है लेकिन तमाम औरचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं और मौजूदा राजदूत हर्षवर्धन श्रृंगला का स्थान लेंगे। श्रृंगाला अगले विदेश सचिव बनाए जा सकते हैं।  


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ट्रम्प के दौरे से पहले मोदी का ट्रम्प कार्ड
तेज़ तर्रार अधिकारी तरणजीत संधू को अमीरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के भारत दौरे से पहले भारत की तरफ से खेला गया ट्रम्प कार्ड भी माना जा रहा है। उनके अमरीका में कार्यकाल के दौरान से ही जिन अधिकारीयों के साथ सम्बन्ध रहे हैं वे अब ट्रम्प प्रशासन में अहम् पदों पर हैं। इसी केमिस्ट्री का लाभ उठाने  के उदेश्य से पीएम मोदी ने उनको यह जिम्मेदारी सौंपी है। माना जा रहा है कि ट्रम्प के भारत दौरे के दौरान दोनों देशों में महत्वपूर्ण मसलों पर कई एमओयू  हो सकते हैं। वर्तमान की स्थिति यह है कि दोस्त होते हुए भी भारत अमरीका के बीच एक अदृश्य रेखा खिंची हुई  है। अमरीका में बसे भारतीयों की नौकरियों का मसला हो , बी-वन वीजा वाला मामला हो या फिर भारतीय उत्पादों पर अमरीकी बंदिशें और बदले में भारत के  ऐसे ही कदम ... इन सब चीज़ों के चलते दोनों देशों के बीच खिंचाव है जिसका असर भारतीय आर्थिकी पर भी पड़ ही रहा है। यह रार और न बढ़े और दरार मिटाई जाए उस लिहाज़ से ट्रम्प का प्रस्तावित दौरा काफी अहम् है। भारतीय  शासन भी इसे एक बेहतर मौके के रूप में देख रहा है। उधर  ईरान-अमरीका के बीच ताज़ा तनाव और  खाड़ी में युद्ध की आशंकाओं के चलते भारत पहले से ही बिना किसी  भूमिका के प्रभावित हो रहा है।  हम अपना 86 फीसदी तेल ईंधन  ईरान से मंगवाते हैं।

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अमरीकी प्रतिबंधों और भारत को दिए गए  डोजियर के चलते पहले ही भारत ने यह निर्यात काफी घटा दिया है। ऐसे में अगर अमरीका और प्रतिबंध ईरान पर लगता है तो भारत जैसे देश में जहां प्रति दिन 12 अरब लीटर पेट्रोल और 27 अरब लेटर डीजल की खपत है , वहां हालात संवेदनशील हो सकते हैं।  तेल के दाम बढ़ेंगे और  यह भारत के लिए  कहीं अधिक मुहकिल होगा। ऐसे में भारत को ईरान से तेल का आयात जारी रखने के लिए अमरीका से बेहतर सामंजस्य की जरूरत है। हालांकि हालात अमरीका के भी कुछ ऐसे ही हैं। ईरान के साथ अगर उसे  किसी समझौते या हल पर पहुंचना है तो ट्रम्प को मोदी की जरूरत  होगी। दोनों देशों के बीच मोदी /भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जो मामले में सर्वसम्मत मध्यस्थता और हल निकालने की कूव्वत रखता है। 

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यानी ईरान-इराक विवाद के लिहाज से भी तरणजीत सिंह संधू दोनों देशों के बीच सौहार्द की नई इबारत लिख सकते हैं। जैसा कि ऊपर वर्णन किया जा चुका  है संधू के टीम ट्रम्प से घने निजी और आधिकारिक रिश्ते हैं। उधर ननकाना साहब घटना को जिस तरह पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय मंचों खासकर अमरीका में संघ/बीजेपी जनित प्रकरण बताने का प्रयास करके  सिख समुदाय को भ्रमित करने की चाल चल  रहा है यह नियुक्ति उस लिहाज़ से भी अहम किरदार निभाएगी। और यही वो असली वजह है जिसके चलते मोदी सरकार ने उनका चयन किया है। अब देखना यह है कि कसौली की शांत वादियों में सेंट सनावर से पढ़कर निकला यह कूटनयिक अफसर  कितनी जल्दी और कैसे भारतीय  विदेश नीति की तस्वीर में नए रंग भरता है।  
 

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