Edited By shukdev,Updated: 27 Sep, 2018 08:35 PM
सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से 158 साल पुरानी व्यभिचार (एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर) से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक करार हुए इस दंडात्मक प्रावधान को निरस्त...
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से 158 साल पुरानी व्यभिचार (एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर) से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक करार हुए इस दंडात्मक प्रावधान को निरस्त कर दिया।
भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के के अनुसार यदि कोई पुरुष यह जानते हुए भी कि महिला किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी है और उस व्यक्ति की सहमति या मिलीभगत के बगैर ही महिला के साथ यौनाचार करता है तो वह परस्त्रीगमन के अपराध का दोषी होगा। यह बलात्कार के अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा। इस अपराध के लिए पुरुष को पांच साल की कैद या जुर्माना अथवा दोनों की सजा का प्रावधान था। आईए देखे किन देशो में एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर अपराध की श्रेणी से बाहर हैं।
वे देश जहां व्यभिचार अपराध है-
- 1- अफगानिस्तान
- 2-बांग्लादेश
- 3-इंडोनेशिया
- 4-ईरान
- 5-मालदीव
- 6-नेपाल
- 7-पाकिस्तान
- 8- फिलीपीन
- 9- संयुक्त अरब अमीरात
- 10-अमेरिका के कुछ राज्य
- 11-अल्जीरिया
- 12-कांगो गणराज्य
- 13-मिस्र
- 14-मोरक्को
- 15-नाइजीरिया के कुछ हिस्से
वे देश जहां व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है-
- 1-चीन
- 2-जापान
- 3-ब्राजील
- 4-न्यूजीलैंड
- 5-ऑस्ट्रेलिया
- 6-स्कॉटलैंड
- 7-नीदरलैंड
- 8-डेनमार्क
- 9-फ्रांस
- 10-जर्मनी
- 11-ऑस्ट्रिया
- 12-आयरलैंड
- 13-बारबाडोस
- 14-बरमूडा
- 15-जमैका
- 16-त्रिनिदाद और टोबैगो
- 17-सेशल्स
- 18-दक्षिण कोरिया
- 19-ग्वाटेमाला
फैसले का हो रहा विरोध
दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्लयू) प्रमुख स्वाति मालीवाल ने कहा कि व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर करने से देश में महिलाओं की पीड़ा और बढऩे वाली है। उन्होंने कहा,‘व्यभिचार पर उच्चतम न्यायालय के फैसले से पूरी तरह से असमत हूं। फैसला महिला - विरोधी है। एक तरह से, आपने इस देश के लोगों को शादीशुदा रहते हुए अवैध संबंध रखने का एक खुला लाइसेंस दे दिया है।’
शीर्ष न्यायालय के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता वृंदा अडिगे ने इसे स्पष्ट करने की मांग करते हुए पूछा कि क्या यह फैसला बहुविवाह की भी इजाजत देता है? उन्होंने कहा, ‘चूंकि हम जानते हैं कि पुरुष अक्सर ही दो - तीन शादियां कर लेते हैं और तब बहुत ज्यादा समस्या पैदा हो जाती है जब पहली, दूसरी या तीसरी पत्नी को छोड़ दिया जाता है।’
कांग्रेस नेता रेणुका चौधरी ने भी इस मुद्दे पर और अधिक स्पष्टता लाने की मांग करते हुए कहा, ‘यह तीन तलाक को अपराध की श्रेणी में डालने जैसा है। उन्होंने ऐसा किया लेकिन अब पुरुष हमें महज छोड़ देंगे या हमें तलाक नहीं देंगे। वे बहुविवाह या निकाह हलाला करेंगे, जो महिला के तौर पर हमारे लिए नारकीय स्थिति पैदा करेगा। मुझे यह नहीं दिखता कि यह कैसे मदद करेगा। न्यायालय को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।’