कलगीधर ट्रस्ट बड़ू साहिब के प्रमुख बाबा इकबाल सिंह से खास बातचीत

Edited By Jyoti,Updated: 25 May, 2019 10:48 AM

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बड़ू साहिब दे रहा है बच्चें को अच्छी शिक्षा के साथ धार्मिक शिक्षा प्र.: श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाशोत्सव की तैयारियां दुनिया भर में बसते नानक नामलेवा द्वारा बड़े उत्साह से की जा रही हैं। आपके द्वारा क्या प्रयत्न किए जा रहे हैं?

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बड़ू साहिब दे रहा है बच्चें को अच्छी शिक्षा के साथ धार्मिक शिक्षा

प्र.: श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाशोत्सव की तैयारियां दुनिया भर में बसते नानक नामलेवा द्वारा बड़े उत्साह से की जा रही हैं। आपके द्वारा क्या प्रयत्न किए जा रहे हैं?

उत्तर: श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाशोत्सव को समर्पित कलगीधर ट्रस्ट बड़ू साहिब द्वारा आरंभ किए गए प्रयत्नों बारे बताया कि उनके द्वारा 550वें प्रकाशोत्सव को समर्पित श्री अखंड पाठ साहिब की शृंखला आरंभ की गई है, जिसकी खास बात यह है कि पाठ करने की सेवा निष्काम तौर पर बड़ू साहिब के विद्यार्थियों की ओर से की जा रही है। इन विद्यार्थियों को अच्छी शिक्षा के साथ अच्छी धार्मिक शिक्षा भी बड़ू साहिब में दी गई है।

प्र.: श्री गुरु नानक देव जी के सिद्धांतों को दृढ़ करवाने का कौन-सा ढंग बढिय़ा है, जिससे युवा पीढ़ी को नशों से बचाकर अच्छे समाज की सृजना की जा सके?
उत्तर: नशों से बचाव के लिए अपनी युवा पीढ़ी को संभालने की अधिक जरूरत है। अपने बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए उन्हें अच्छी शिक्षा दें। शिक्षा 3 प्रकार की होती है-पहली पढ़ाई है जो किताबें पढ़ कर आती है, जिस बारे गुरबाणी फरमान है-पढिय़ा मूर्खू आखिए जिसु लभु लोभू अहंकार।। दूसरी है विद्या, जिस बारे गुरबाणी वाक है-विद्या वीचारी तां पर उपकारी। तीसरी है ब्रह्म विद्या जिसे प्राप्त करने के लिए किसी स्कूल जाने की आवश्यकता नहीं। बड़े-बड़े महापुरुषों ने किसी भी स्कूल में जाकर यह शिक्षा हासिल नहीं की। इस दौरान बच्चे नास्तिक हो रहे हैं, नशों में पड़ रहे हैं, सही रास्ते से भटक रहे हैं, ये अच्छे इंसान कैसे बनें, कैसे मानवता की सेवा करें। इन्हें सही रास्ते पर लाने के लिए हमने विद्या का माध्यम अपनाया है, क्योंकि सीधे तरीके से बच्चे धर्म में रुचि नहीं लेते, इसलिए हम इन्हें पहले स्कूली पढ़ाई करवाते हैं एवं साथ-साथ धार्मिक शिक्षा देते हैं, जिससे ये अच्छे इंसान बन सकें। बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए सी.बी.एस.ई. की मान्यता लेकर हमने 5 बच्चों से अकाल एकैडमी प्रारंभ की थी। इस समय बड़ू साहिब में कै ब्रिज स्कूल एवं आई.बी. स्कूल भी चल रहा है। स त मेहनत, अच्छी खुराक, सादा पहनावा एवं फैशनप्रस्ती के माहौल से दूर रह कर बच्चे पढ़ाई का लाभ उठा रहे हैं। यहां की अच्छी शिक्षा को देख कर विदेशों से मां-बाप ने अपने बच्चे बड़ू साहिब के स्कूलों में पढऩे के लिए भेजे हैं। यहां शिक्षा हासिल करके बच्चे अपने मां-बाप को सीधे रास्ते पर डाल देते हैं एवं नशों से हटा देते हैं।
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प्र.: बाबा जी आपने सांसारिक विद्या कहां से प्राप्त की?

उत्तर: मेरे पिता जी अंग्रेजों के समय बड़े जागीरदार थे एवं बहुत अमीर भी, मैंने 5वीं कक्षा गांव के स्कूल से की, मैं प्रारंभ से ही अपना जन्म परमात्मा के नाम पर लगाना चाहता था। मेरी मां मुझे भक्त ध्रुव, प्रह्लाद से छोटे साहिबजादों की साखियां सुनाती थी, जिसके कारण मेरी सोच धर्म अनुरूप थी। शिक्षा तो मेरे लिए दूसरे नंबर पर थी। पहले नंबर पर परमात्मा का प्रेम था, इसलिए मैं 5वीं कक्षा में ही साधु हो गया था, मेरे परिवार वाले मुझे पकड़ कर वापस ले आए। फिर दीनानगर से 8वीं कक्षा तथा गुरदासपुर से 10वीं कक्षा पास की, उसके बाद इंजीनियर बनने का सोचा, फिर मैडीकल में दाखिला लेकर डाक्टर बनने के बारे में सोचा, आखिरकार एग्रीकल्चर की लाइन को चुना क्योंकि इससे किसानों का भी फायदा किया जा सकता था, खाने वालों को भी अच्छी चीजें उपलब्ध करवाई जा सकती थीं। उस समय एकमात्र कालेज लायलपुर एग्रीकल्चर कालेज था, जिसमें कठिन मुकाबले के बावजूद मुझे दाखिला मिल गया। एफ.एस.सी. वहीं से की। फिर देश का बंटवारा हो गया एवं पाकिस्तान बन गया, जिस कारण लुधियाना कालेज में आ गया, वहीं से एम.एससी. की। मेरे पिता जी मुझे कैलिफोर्निया यूनिवॢसटी में दाखिल करवाना चाहते थे एवं मैं दाखिल हो गया पर विदेश नहीं गया। मेरे माता-पिता बहुत गुस्सा हुए पर मैं फिर भी विदेश नहीं गया क्योंकि संत तेजा सिंह जी की संगत मिल गई थी। संत तेजा सिंह के जीवन से मैं बहुत प्रभावित रहा। 

प्र.: संत तेजा सिंह की संगत कैसे प्राप्त हुई?

उत्तर: संत तेजा सिंह से मुलाकात देश बंटवारे के बाद खालसा कालेज अमृतसर में हुई। तेजा सिंह खालसा कालेज के प्रिंसिपल भी रहे थे। संत तेजा सिंह चाहते थे कि हिमाचल प्रदेश में एक ऐसा केंद्र बनाएं जहां बच्चों को शिक्षा दी जा सके। संत जी के आदेशानुसार मैं बड़ू साहिब के स्थान पर आया। इस धरती का मालिक जोगिन्द्र सिंह था, जिससे जमीन खरीद कर बड़े कालेजों को आरंभ किया गया।

प्र.: आप कौन-से सरकारी पद पर तैनात रहे?

उत्तर: मैंने हिमाचल प्रदेश में नौकरी कर ली। मैंने इतनी मेहनत से काम किया कि उन्नति करके डायरैक्टर ऑफ एग्रीकल्चर बन गया। सभी मुझे बाबा जी कहते थे क्योंकि मैं कार्यालय में बिल्कुल सादे कपड़े पहनता था। बाहर विदेशों में कार्य समय भी मैं सादे पहरावे में ही रहता था। उस समय डायरैक्टर ऑफ एग्रीकल्चर के पास बहुत शक्ति होती थी एवं बड़ी फर्में कार्य के बदले बड़ी राशि देने के लिए तैयार रहती थीं। यदि मैं उनसे पैसे लेता तो रिटायरमैंट के समय करोड़पति होता, पर मैं तो अपना वेतन भी सेवा में खर्च कर देता था। जब रिटायर हुआ तो उस समय मेरे खाते में केवल 10 हजार रुपए थे।

प्र.: बड़ू साहिब के अतिरिक्त पंजाब एवं अन्य प्रदेशों में एकैडमियां कैसे स्थापित कीं?
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उत्तर: बड़ू साहिब में 5 बच्चों से स्कूल प्रारंभ किया गया था। उस समय 30 हजार खर्च हुए थे एवं मेरी मांगने की आदत नहीं थी क्योंकि कार्यालय में उच्च पदवी पर काम किया था एवं बड़े-बड़े लोग मुझसे काम करवाने आते थे पर जब स्कूल में बच्चे बढऩे लगे तो खर्च भी बढ़ गया। संत तेजा सिंह के दिल्ली एवं मु बई के पुराने सेवादारों ने मुझे उगाही करने की सलाह दी। वे स्वयं उगाही करने साथ गए। बच्चों के भविष्य ने मुझे मांगने वाला बना दिया। जैसे-जैसे स्कूल में बच्चे बढ़े, मैं बड़ा मांगने वाला बन गया, फिर मैंने कोई शहर एवं कोई देश नहीं छोड़ा। 5 बच्चों से कार्य प्रारंभ हुआ था एवं आज 2 यूनिवर्सिटियां एक बड़ू साहिब एवं एक साबो की तलवंडी दमदमा साहिब बन गई हैं एवं 125 के आसपास विभिन्न गांवों एवं शहरों में अकाल एकैडमियां एवं अन्य अदारे खुल गए हैं।

प्र.: बाबा जी क्या आप ग्रंथी, रागी, प्रचारकों एवं गरीबों के बच्चों को भी नि:शुल्क पढ़ाते हैं?

उत्तर: मेरा लक्ष्य है 10 हजार बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दूं एवं 10 हजार बच्चों को आधी फीस पर पढ़ाऊं पर इस कार्य के लिए सबसे सहयोग की आवश्यकता है। मैं गुरु नानक देव जी के जीवन से शिक्षा लेकर सोचता हूं कि गुरु नानक देव जी ने जो उपदेश दिया है, उसे किस तरह बच्चों तक पहुंचाया जाए। इसके अतिरिक्त सामाजिक बुराइयां जैसे नशे से बचाव, किसानों की आत्महत्याओं की रोकथाम के लिए सिख पंथ की विभिन्न जत्थेबंदियों को मिलजुल कर मोर्चा संभालना चाहिए।
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