सोनिया गांधी का ‘पुत्र मोह’ डुबा गया कांग्रेस की लुटिया!

Edited By Priyanka rana,Updated: 14 Mar, 2020 03:07 PM

sonia gandhi

लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की लगातार दूसरी बार हुई दुर्दशा के बाद से ही पार्टी में बिखराव शुरू हो गया था, जिसके बाद पार्टी लगातार कमजोर हो रही है और लगता है कि कांग्रेस का जहाज निरंतर डूब रहा है।

जालंधर(चोपड़ा) : लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की लगातार दूसरी बार हुई दुर्दशा के बाद से ही पार्टी में बिखराव शुरू हो गया था, जिसके बाद पार्टी लगातार कमजोर हो रही है और लगता है कि कांग्रेस का जहाज निरंतर डूब रहा है। वास्तव में पार्टी की दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का पुत्र मोह है जो चाहती है कि उनका बेटा राहुल गांधी पार्टी का नेतृत्व करे। 

उनके कई फैसलों से पार्टी कमजोर हुई है और वह वरिष्ठ नेताओं व युवा ब्रिगेड में सामंजस्य बैठा पाने में भी पूरी तरह से नाकाम साबित हुए। कुछ असंतुष्ट कांग्रेसी सोनिया गांधी के ‘पुत्र मोह’ को पार्टी में पैदा हुए संकट और कांग्रेस की लुटिया डुबोने का जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। आज पार्टी पर नियंत्रण के लिए वरिष्ठ नेताओं और युवा ब्रिगेड के बीच एक स्थायी युद्ध छिड़ा हुआ है। असंतुष्ट ज्योतिरादित्य सिंधिया का पार्टी का छोडऩा इसी का एक उदाहरण है। 

सिंधिया कांग्रेस में कोई साधारण कांग्रेसी नेता नहीं रहे, वह राहुल गांधी के विश्वासपात्रों व नजदीकियों में सबसे अग्रणी थे, जिसको लेकर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने दावा किया था कि ज्योतिरादित्य ही एक ऐसे शख्स थे, जिनके लिए उनके घर के दरवाजे हमेशा खुले रहते थे। इसके अलावा जब राहुल गांधी ने कांग्रेस प्रधान के पद से इस्तीफा दिया था उस दौरान सिंधिया पार्टी के नए अध्यक्ष के दावेदारों की सूची में शामिल थे। 

असंतुष्ट सिंधिया ने स्पष्ट रूप से हरियाली चरण-भूमि का चुनाव किया क्योंकि भाजपा ने उन्हें न केवल राज्यसभा सांसद बनाया है, बल्कि मोदी मंत्रिमंडल में भी जगह देना निश्चित हुआ है। दरअसल, कांग्रेस में खुद को कमजोर महसूस कर रहे सिंधिया के लिए यह एक पुरस्कार के मिलने की भांति है। इस बीच, कांग्रेस नेतृत्व सिंधिया के पार्टी को छोडऩे के बाद सदमे में है। 

अपने समर्थकों में ‘महाराज’ के रूप में जाना जाने वाले सिंधिया ने मध्य प्रदेश सरकार को संकट में डालते हुए कांग्रेस को 22 विधायकों के साथ छोडऩे पर अपना दबदबा साबित कर दिखाया है जिसके बाद अब भाजपा भी मध्य प्रदेश की सत्ता की बागडोर कमलनाथ के हाथों से छीनने के लिए तैयार हो गई है, वहीं कमलनाथ अपनी सरकार को बचाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। 

कुछ ऐसे भी राजनीतिज्ञ हैं जोकि अभी भी आशावान हैं कि कमलनाथ अपनी सरकार को बचा लेंगे। उदाहरण के लिए एन.सी.पी. सुप्रीमो शरद पवार ने कहा कि कुछ लोगों को कमलनाथ की क्षमता पर भरोसा है और लगता है कि चमत्कार हो सकता है। वर्णनीय है कि मध्य प्रदेश अपनी गुटबाजी के लिए भी जाना जाता है। 

सिंधिया इस बात से नाराज थे कि पहले तो पार्टी आलाकमान ने उनके स्थान पर कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया जिसके बाद से उनके समर्थकों को उनकी सिफारिश के बावजूद सरकार व पार्टी में कोई महत्व नहीं मिल रहा था क्योंकि शक्तिशाली दिग्विजय सिंह-कमलनाथ की जोड़ी ने उनके खिलाफ मिलकर उन्हें हाशिए पर डाल दिया था। 

ऐसे हालात के चलते ही सिंधिया ने स्पष्ट रूप से कांग्रेस में अपना कोई भविष्य नहीं देखा। वह अपने गृह राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर भी अलग-थलग महसूस कर रहे थे। राज्यसभा चुनावों ने उनके पार्टी छोडऩे के फैसले को और मजबूत किया। भाजपा के लिए सिंधिया वास्तव में एक बड़ी पकड़ हैं। उनकी दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया अस्सी और नब्बे के दशक में पार्टी की मुख्य संरक्षक थीं। 

जैसा कि एक भाजपा नेता ने दावा किया, सिंधिया भाजपा के लिए केवल पुरस्कार नहीं थे बल्कि वह अपने साथ मध्य प्रदेश सरकार का बोनस भी लेकर आए हैं। अब जब सिंधिया ने पद छोड़ दिया है तो कांग्रेस को तय करना है कि आगे क्या करना है क्योंकि खतरा सिर्फ सिंधिया का नहीं है बल्कि कई और अन्य असंतुष्ट भी डूबते जहाज को छोडऩे को तैयार हैं। 

यूं तो कांग्रेस ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं, जिनमें बेहद खराब चरण भी शामिल है लेकिन नेतृत्व हमेशा संकट से उभर कर इसे पटरी पर लाने में कामयाब रहा परंतु वर्तमान विकट स्थिति को संभाल पाने में नेतृत्व विफल हो गया है। 1997 में पार्टी में बिखराव को रोकने के लिए सोनिया गांधी के कमान संभालने से पहले जैसी स्थिति अब एक बार फिर से पैदा हो गई है। कांग्रेस को बचाना है तो पार्टी नेतृत्व को युवा ब्रिगेड के पार्टी छोडऩे की प्रवृत्ति को रोकना और हो रहे डैमेज को कंट्रोल करना ही होगा।  

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