अपने करियर में इस शख्स के योगदान को सचिन तेंदुलकर ने किया याद

Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Sep, 2017 07:02 PM

sachin tendulkar

महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने आज अपने करियर में बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष राज सिंह डुंगरपुर के योगदान को याद...

मुंबईः महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने आज अपने करियर में बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष राज सिंह डुंगरपुर के योगदान को याद करते हुए कहा कि उन्होंने उनकी काफी मदद की। तेंदुलकर ने यहां क्रिकेट क्लब आफ इंडिया (सीसीआई) में डुंगरपुर के नाम पर गेट का उद्घाटन किया जो चयन समिति के पूर्व अध्यक्ष थे। उन्होंने कहा, ‘‘सीसीआई में आना अच्छा लगता है। जब राज भाई की बात होती है तो मुझे पता नहीं चलता कि कहां से शुरूआत करूं क्योंकि मैं मुश्किल में पड़ जाता हूं। हमारा रिश्ता इसी तरह का ही था, उन्होंने हर जगह मेरा मार्गदर्शन किया था। ’’  

उनके खिलाफ खेलना मेरे लिए सम्मान की बात
मास्टर ब्लास्टर ने उस समय को याद किया जब डुंगरपुर ने उन्हें पहली बार देखा था। उन्होंने कहा, ‘‘पहली बार जब मुझे राज भाई ने देखा तो मैं 13-14 साल का था, मैंने सीसीआई के खिलाफ कुछ रन बनाये थे, मैं शिवाजी पार्क यंगस्टर के लिए खेल रहा था। मैंने कुछ रन बनाये थे, माधव आप्टे सर उस समय सीसीआई की कीपिंग कर रहे थे और उनके खिलाफ खेलना सम्मान की बात थी।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जब एक बार मेरे नाम की सिफारिश राज भाई से की गयी तो उन्होंने मुझे सीसीआई के लिए खेलने के लिये कहा और उन्होंने मुझे 14 साल की उम्र में ड्रेसिंग रूम में प्रवेश करने की अनुमति दिलाने के लिये सभी नियमों को ताक पर रख दिया। मैं धीरे धीरे सीसीआई के साथ सहज होने लगा और नतीजे निकलने लगे। ’’  

विदेश में ट्रेनिंग करने में मदद की
तेंदुलकर ने यह भी याद किया कि दिवंगत राज सिंह डुंगरपुर 2004-05 में पाकिस्तान के दौरे के लिये भारतीय टीम के मैनेजर के रूप में अपने अंतिम दौरे पर कितने उत्साहित थे। उन्होंने कहा, ‘‘जब राज भाई 2005-06 में पाकिस्तान में टीम के मैनेजर के तौर पर अपने अंतिम दौरे पर थे तो उनके उम्रदराज होने के बावजूद मैं खेल के प्रति उनके जुनून को महसूस कर सकता था।’’ तेंदुलकर ने कहा कि बीसीसीआई के पूर्व प्रमुख ने उन्हें प्रायोजक दिलाकर विदेश में ट्रेनिंग करने में मदद की। उन्होंने कहा, ‘‘राज भाई हमेशा युवाओं की मदद करते थे, मैं भाग्यशाली रहा कि उन्होंने मेरी काफी मदद की। ऐसे भी मौके आये जब मुझे विदेशी दौरों पर जाना पड़ा और किसी के पास तब इतने ज्यादा पैसे नहीं होते थे। तब राज भाई प्रायोजकों को मेरे पास लाने में काफी अहम रहे जिन्होंने सुनिश्चित किया कि मुझे वो अनुभव मिले।’’  

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