Edited By PTI News Agency,Updated: 05 Aug, 2020 05:05 PM
नयी दिल्ली, पांच अगस्त (भाषा) औद्योगिक और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) सार्वजनिक खरीद नियम के अनुपालन के लिये सरकारी खरीद इकाइयों की निविदाओं की जांच को लेकर परामर्श एजेंसी की सेवा की सेवा लेगा। सार्वजनिक खरीद नियमन का मकसद भारत में...
नयी दिल्ली, पांच अगस्त (भाषा) औद्योगिक और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) सार्वजनिक खरीद नियम के अनुपालन के लिये सरकारी खरीद इकाइयों की निविदाओं की जांच को लेकर परामर्श एजेंसी की सेवा की सेवा लेगा। सार्वजनिक खरीद नियमन का मकसद भारत में विनिर्मित उत्पादों को बढ़ावा देना है।
डीपीआईआईटी ने नोटिस जारी कर इसमें रूचि रखने वाली एजेंसियों से अनुरोध प्रस्ताव आमंत्रित किया है।
सरकार ने देश में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन को बढ़ावा देने तथा आय एवं रोजगार सृजित करने के इरादे से 15 जून, 2017 को सार्वजनिक खरीद (मेक इन इंडिया को वरीयता) आदेश, 2017 जारी किया था।
आदेश का मकसद उत्पादन को स्थानीय उपकरणों, सामानों के उपयोग से जोड़कर घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करना है। ताकि व्यापार के लिये केवल आयात अथवा एसेंबल करने पर निर्भर व्यापारियों के मुकाबले घरेलू विनिर्माता की भागीदारी को सार्वजनिक खरीद गतिविधियों में प्रोत्साहन मिले।
यह केंद्रीय मंत्रालयों, विभागों, उनके संबद्ध कार्यालयों, केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाले स्वायत्त निकायों, सरकारी कंपनियों, उनके संयुक्त उद्यम और विशेष उद्देश्यीय इकाइयों द्वारा वस्तु एवं सेवाओं की खरीद पर लागू है।
आदेश के तहत कुछ मामलों को छोड़कर सभी वस्तुओं, सेवाओं या अन्य कार्यों की खरीद में जिसका अनुमानित मूल्य 50 लाख रुपये से कम है, केवल स्थानीय आपूर्तिकर्ता ही बोली के लिये पात्र होंगे।
डीपीआईआईटी का मकसद आदेश के अनुपालन को लेकर केंद्र सरकार की खरीद एजेंसियों की निविदाओं की जांच के लिये एक साल के लिये एजेंसी की सेवा लेना है।
डीपीअईआईटी ने कहा, ‘‘ इसमें रूचि रखने वाले आवेदनकर्ताओं से अनुरोध प्रस्ताव पर अपना जवाब केंद्रीय खरीद पोर्टल (ईप्रोक्यूर डॉट गॉव डॉट इन) पर आठ सितंबबर, 2020 को दोपहर 12 बजे तक जमा करने का आग्रह है।’’
विभाग ने कहा, ‘‘परामर्श एजेंसी का चयन कम लागत चयन प्रक्रिया (एलसीएस) के आधार पर होगा।’’
इससे पहले, विभाग भेदभावपूर्ण गतिविधियों के कारण हजारों करोड़ रुपयें की सरकार निविदाएं रद्द कर चुका है। भेदभावपूर्ण और प्रतिबंधात्मक निविदा गतिविधियों से सरकारी खरीद में घरेलू कंपनियां शामिल नहीं हो पाती।
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