रमानी के खिलाफ अकबर की मानहानि याचिका के स्थानांतरण पर 22 अक्टूबर को फैसला सुनाएगी अदालत

Edited By PTI News Agency,Updated: 14 Oct, 2020 06:43 PM

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नयी दिल्ली, 14 अक्टूबर (भाषा) दिल्ली की एक अदालत ने बुधवार को कहा कि अगर यह पाया जाता है कि पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर द्वारा दायर आपराधिक मानहानि के मुकदमे की सुनवाई करने वाली मजिस्ट्रेट अदालत के पास अधिकार...

नयी दिल्ली, 14 अक्टूबर (भाषा) दिल्ली की एक अदालत ने बुधवार को कहा कि अगर यह पाया जाता है कि पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर द्वारा दायर आपराधिक मानहानि के मुकदमे की सुनवाई करने वाली मजिस्ट्रेट अदालत के पास अधिकार क्षेत्र नहीं है तो न सिर्फ अंतिम दलीलें बल्कि दो साल तक चली पूरी सुनवाई ‘निरर्थक’ हो जाएगी।

अदालत 22 अक्टूबर को आदेश सुनाएगी कि आपराधिक मानहानि की शिकायत अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट (एसीएमएम) की अदालत से किसी अन्य न्यायाधीश के पास स्थानांतरित किया जाए या नहीं।
मामले की सुनवाई कर रहे एसीएमएम ने मंगलवार को यह मामला प्रधान जिला और सत्र न्यायाधीश को भेज दिया था और मामले को दूसरी अदालत में स्थानांतरित करने को कहा था क्योंकि उनकी अदालत विधि निर्माताओं (सांसदों/विधायकों) के खिलाफ दायर मामलों की सुनवाई के लिए नामित की गयी है।

प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुजाता कोहली ने आदेश सुरक्षित रख लिया और कहा कि अधिसूचना संबंधित मजिस्ट्रेट को सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों के अलावा अन्य मामलों की सुनवाई से नहीं रोकती है।

न्यायाधीश ने कहा, "अधिसूचना का मकसद यह है कि कानून निर्माताओं के खिलाफ मामलों में जल्दी फैसला हो।’’
उन्होंने हालांकि कहा कि यदि यह पाया जाता है कि मामले की सुनवाई करने वाली मजिस्ट्रेट अदालत के पास अधिकार क्षेत्र नहीं था तो न सिर्फ अंतिम दलीलें, बल्कि पूरी सुनवाई निरर्थक हो जाएगी।’’
अदालत ने कहा, ‘‘इससे पहले किसी भी वकील ने इस बिंदु को नहीं उठाया...।’’
सुनवाई के दौरान अकबर की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गीता लूथरा ने कहा कि पूरी सुनवाई लगभग समाप्त हो गयी थी और केवल कुछ तारीखें शेष थीं।

उन्होंने कहा कि अगर मामले में और देरी हुयी तो काफी अहित होगा।

रमानी की ओर से पेश वकील ने हालांकि कहा कि अदालत द्वारा पारित किसी भी आदेश पर आरोपी को कोई आपत्ति नहीं है।


लूथरा ने दलीलों की शुरूआत करते हुए अदालत से कहा कि इस मामले को उसी अदालत में वापस भेजने के लिए "संयुक्त अनुरोध" किया जा रहा है जो दो साल से अधिक समय से इसकी सुनवाई कर रही थी।


उन्होंने कहा कि दो साल तक सुनवाई हुयी और दोनों पक्षों ने विस्तार से दलीलें रखीं। अंतिम दलीलों पर फिर से बहस करने का कोई मतलब नहीं है।

रमानी के वकील बी चौहान ने कहा कि यद्यपि इसके ‘‘ संयुक्त बयान’’ होने की बात थी लेकिन उन्होंने निचली अदालत के अधिकार क्षेत्र से संबंधित अधिसूचना पर गौर किया और वह यह फैसला जिला न्यायाधीश के विवेक पर छोड़ देंगे।

एसीएमएम विशाल पाहुजा ने इस साल सात फरवरी को मामले में अंतिम दलीलों की सुनवाई शुरू की थी। उन्होंने यह मामला जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पास भेज दिया और कहा कि यह मामला किसी सांसद या विधायक के खिलाफ दायर नहीं किया गया है तथा इसे ‘सक्षम अधिकार क्षेत्र वाली अदालत’ के पास स्थानांतरित करने की आवश्यकता है।
अकबर ने मार्च 2018 में रमानी के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया था।

रमानी ने ‘‘मी टू’’ आंदोलन के बीच 2018 में अकबर पर करीब 20 साल पहले यौन शोषण करने का आरोप लगाया था।

अकबर ने 17 अक्टूबर, 2018 को केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था।

यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।

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