Edited By PTI News Agency,Updated: 08 Sep, 2021 09:59 PM
नयी दिल्ली, आठ सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने एक अहम आदेश में कहा है कि हर एक यात्री का समय "कीमती" है और जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि ट्रेनों में देरी होने का कारण उसके नियंत्रण से बाहर था, रेलवे मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी...
नयी दिल्ली, आठ सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने एक अहम आदेश में कहा है कि हर एक यात्री का समय "कीमती" है और जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि ट्रेनों में देरी होने का कारण उसके नियंत्रण से बाहर था, रेलवे मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है।
न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के आदेश के खिलाफ उत्तर पश्चिम रेलवे की अपील को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
एनसीडीआरसी ने निचली उपभोक्ता अदालतों द्वारा पारित मुआवजे के आदेश को बरकरार रखा था जिसमें संजय शुक्ला की शिकायत को मंजूरी किया गया था। शुक्ला तीन अन्य लोगों के साथ 2016 में श्रीनगर के लिए संपर्क उड़ान नहीं पकड़ पाए थे क्योंकि उनकी ट्रेन जम्मू तवी स्टेशन पर निर्धारित समय से चार घंटे की देरी से पहुंची थी। वे राजस्थान के अलवर में ट्रेन में सवार हुए थे।
उच्चतम न्यायालय ने एनसीडीआरसी के फैसले को कायम रखा जिसमें उत्तर पश्चिम रेलवे को टैक्सी खर्च के लिए 15,000 रुपये, बुकिंग खर्च के लिए 10,000 रुपये और मानसिक पीड़ा तथा मुकदमे में खर्च के लिए 5,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया था।
न्यायालय इस तर्क से सहमत नहीं था कि ट्रेन के देर से चलने को रेलवे की सेवाओं में कमी नहीं कहा जा सकता है और कुछ नियमों में कहा गया है कि ट्रेन के देर से चलने की स्थिति में मुआवजे का भुगतान करने का कोई दायित्व नहीं होगा क्योंकि ट्रेनों के देर से चलने के कई कारण हो सकते हैं।
पीठ ने सोमवार को अपलोड किए गए आदेश में कहा कि रेलवे को ट्रेन के देर से चलने की व्याख्या करने और यह साबित करने की जरूरत थी कि देरी ऐसे कारणों से हुई जिन पर उसका नियंत्रण नहीं था। लेकिन रेलवे ऐसा करने में विफल रहा। इस संबंध में कोई विवाद नहीं हो सकता है कि हर यात्री का समय कीमती है।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।