राजद्रोह पर आदेश का हवाला देते हुए शरजील ने अंतरिम जमानत के लिए अदालत का रुख किया

Edited By PTI News Agency,Updated: 16 May, 2022 10:58 PM

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नयी दिल्ली, 16 मई (भाषा) जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र शरजील इमाम ने देश में राजद्रोह की सभी कार्यवाहियों पर रोक लगाने के उच्चतम न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए अंतरिम जमानत के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया है।

नयी दिल्ली, 16 मई (भाषा) जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र शरजील इमाम ने देश में राजद्रोह की सभी कार्यवाहियों पर रोक लगाने के उच्चतम न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए अंतरिम जमानत के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया है।

इमाम को 2019 में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने के मामले में गिरफ्तार किया गया था।

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की पीठ मंगलवार को इमाम की अर्जी पर सुनवाई कर सकती है। इमाम ने पहले से लंबित अपनी जमानत याचिका में अंतरिम जमानत के लिए अर्जी दाखिल की है।

अधिवक्ता तालिब मुस्तफा, अहमद इब्राहिम और कार्तिक वेणु के माध्यम से अर्जी दायर की गई है। अर्जी में कहा गया है कि इमाम की जमानत खारिज करने का अदालत का आदेश मुख्य रूप से इस पर आधारित है कि उसके खिलाफ मामला राजद्रोह के आरोप के तहत उपयुक्त पाए जाने के मद्देनजर विशेष अदालत के पास दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 437 के अनुसार वर्णित सीमाओं में जमानत देने की कोई शक्ति नहीं है।

अर्जी में कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के मद्देनजर, विशेष अदालत के आदेश में वर्णित अड़चनें खत्म हो जाती हैं और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124-ए (राजद्रोह) के तहत अपराध के लिए टिप्पणियों को अपीलकर्ता (इमाम) के खिलाफ कार्यवाही में ध्यान में नहीं रखा जा सकता है।

अर्जी में कहा गया कि इमाम लगभग 28 महीने से जेल में है, जबकि अपराधों के लिए अधिकतम सजा, जिसमें 124-ए शामिल नहीं है, सात साल कैद है। अर्जी में कहा गया है कि इमाम की निरंतर कैद न्यायसंगत नहीं है और इस अदालत का हस्तक्षेप अपेक्षित है।

उच्चतम न्यायालय ने 11 मई को एक अभूतपूर्व आदेश के तहत देशभर में राजद्रोह के मामलों में सभी कार्यवाहियों पर तब तक के लिए रोक लगा दी थी जब तक कोई ‘उचित’ सरकारी मंच इस पर पुनर्विचार नहीं कर लेता। शीर्ष अदालत ने केंद्र एवं राज्य सरकारों को आजादी के पहले के इस कानून के तहत कोई नई प्राथमिकी दर्ज नहीं करने के निर्देश भी दिये थे।



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