सेबी ने जताई कर चोरी की आशंका, आयकर विभाग को सौपी सूची

Edited By ,Updated: 16 May, 2017 10:53 AM

sebi raises fears of tax evasion

दीर्घावधि पूंजी प्राप्ति लाभ (एल.टी.सी.जी.) के खत्म होने का डर एक बार फिर दलाल पथ पर हावी हो सकता है ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि क्योंकि चवन्नी शेयरों

नई दिल्लीः दीर्घावधि पूंजी प्राप्ति लाभ (एल.टी.सी.जी.) के खत्म होने का डर एक बार फिर दलाल पथ पर हावी हो सकता है ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि क्योंकि चवन्नी शेयरों में कारोबार के जरिये इसके दुरुपयोग के 11,000 मामले बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के रडार पर हैं।

सूत्रों के अनुसार सेबी ने पिछले हफ्ते इन इकाइयों की नई सूची आयकर विभाग को भेजी है, जिनमें पूंजीगत लाभ के प्रावधानों का कथित दुरुपयोग कर करीब 34,000 करोड़ रुपए की चोरी की आशंका है। इसके साथ ही नियामक ऐसे दुरुपयोग को रोकने के लिए सतर्कता भी बढ़ाएगा क्योंकि इसके मामले बढ़ते प्रतीत हो रहे हैं।

के.वाई.सी. के जरिए की इकाइयों की पहचान
सेबी ने जांच पाया कि पिछले तीन वर्षों में 11,000 इकाइयों ने ऐसी सूचीबद्ध कंपनियों में 5 लाख रुपये से अधिक के शेयर खरीदे हैं, जिनका कोई कारोबार भी नहीं है। सेबी ने इन इकाइयों के आंकड़े कर अधिकारियों को दिए हैं। मामले के जानकार एक सूत्र ने बताया कि शेयर बाजार के ऑपरेटर निवेशकों के हित में कृत्रिम रूप से ऐसी कंपनियों के शेयरों की कीमतें बढ़ाते हैं और निवेशक मुनाफे पर दीर्घावधि पूंजी लाभ के तौर पर दावा करते हैं। सेबी ने उन्नत डेटा विश्लेषण और पिछले तीन साल के ट्रेडिंग एवं निगरानी डेटा के एकीकरण के साथ ही अपने ग्राहक को जानें (केवाईसी) विवरण के जरिए इन इकाइयों की पहचान की है। कर चोरी करने वाली इन इकाइयों में से ज्यादातर कोलकाता, मुंबई, अहमदाबाद, सूरत और दिल्ली की हैं।

ऑपरेटर फर्जी तरीके से बढ़ाते शेयरों की कीमतें 
सेबी के एक अधिकारी ने कहा कि ऐसा देखा गया है कि आकांक्षी शख्स फर्जी एल.टी.सी.जी. रसीद बनाकर सूचीबद्ध कंपनियों के शेयरों, जो आमतौर पर चवन्नी शेयर होते हैं को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नियंत्रित करने वाले शेयर बाजार के ऑपरेटरों से संपर्क करते हैं। उन्होंने कहा कि ऑपरेटर लाभार्थियों को करवंचना के लिए ऐसी सूचीबद्ध फर्मों में निवेश करने की सलाह देता है। ये फर्में लाभार्थियों को मामूली कीमत पर तरजीही शेयर का आवंटन करती हैं। ये शेयर एक साल के लिए लॉक-इन अवधि वाले होते हैं। इस तरह से ऑपरेटर फर्जी तरीके से शेयरों की कीमतें बढ़ाते हैं।

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