PGI में हुआ इस वर्ष का 23वां ऑर्गन ट्रांसप्लांट

Edited By ,Updated: 22 Oct, 2016 08:22 AM

organ transplant at pgi

शहरों के मुकाबले गांवों के लोगों में ओर्गन डोनेशन को लेकर काफी अंधविश्वास है।

चंडीगढ़(रवि) : शहरों के मुकाबले गांवों के लोगों में ओर्गन डोनेशन को लेकर काफी अंधविश्वास है। लेकिन पिछले कुछ वक्त से अब गांवों के लोगों में भी ओर्गन ट्रांसप्लांट को लेकर अवेयरनैस आ रही है। यह कहना है पी.जी.आई ओर्गन ट्रांसप्लांट के नोडल ऑफिसर (रोटो) डाक्टर विपिन कौशल का। शुक्रवार को पी.जी.आई. में ब्रेन डेड हुए एक युवक की बदौलत दो लोगों को नया जीवन मिला है। डा. कौशल की मानें तो लोगों की मानसिकता अब बदल रही है। 


17 अक्तूबर की रात को पटियाला के रहने वाले 26 साल के मनोज (बदला हुआ नाम) का जीरकपुर-पटियाला रोड पर एक्सीडैंट हो गया था। उसे गंभीर अवस्था में परिजन एक निजी अस्पताल में ले गए लेकिन दिमाग में लगी चोट के कारण मनोज की हालत ज्यादा खराब हो गई, जिसे बाद में पी.जी.आई. रैफर कर दिया गया। मनोज को 18 अक्तूबर को गंभीर हालत में पी.जी.आई. लाया गया था। डाक्टरों की लाख कोशिशों के बावजूद उसे 19 अक्तूबर को ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया। ब्रेन डेड घोषित होने के बाद ट्रॉसप्लांट कोर्डिनेटर्स ने परिजनों की काऊंसलिंग की, जिसके बाद परिवार वालों ने मनोज के अंगदान करने की सहमति दी। परिजनों की एक हां की बदौलत पी.जी.आई. में अपनी जिंदगी की लड़ाई लड़ रहे दो मरीजों को एक-एक किडनी ट्रांसप्लांट की गई, जिसकी बदौलत दो लोगों को नई जिंदगी मिल पाई। 

हमेशा दूसरों की मदद करता था :
मनोज के पिता ने बताया कि वह हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहता था और अपनी मौत के बाद भी उसने दूसरों की मदद की है। मैंने अपना बेटा तो खो दिया लेकिन इस बात की संतुष्टि है कि किसी और की औलाद को नया जीवन देने में मेरे बेटे ने सहयोग दिया है। पी.जी.आई. ट्रांसप्लांट कोर्डिनेटर्स की मुहिम रंग लाती दिख रही है। कोर्डिनेटर्स की माने अब पहले के मुकाबले अब लोगों में काफी जागरुकता आ रही है। यह इसी का नतीजा है कि पी.जी.आई. अब तक इस साल में 23 ट्रांसप्लांट कर चुका है।
 

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