GMCH-32 : बायोमैडीकल वेस्ट ट्रांसपोर्टेशन पर उठे सवाल

Edited By Punjab Kesari,Updated: 10 Oct, 2017 08:56 AM

question on biomedical west transportation

चंडीगढ़ में बाओमैडीकल वेस्ट को लेकर कंट्रोवर्सी थमने का नाम नहीं ले रही है।

चंडीगढ़ (अर्चना): चंडीगढ़ में बाओमैडीकल वेस्ट को लेकर कंट्रोवर्सी थमने का नाम नहीं ले रही है। पी.जी.आई. के बाओमैडीकल वेस्ट के चोरी होने का मामला उजागर होने के बाद अब गवर्नमैंट मैडीकल कालेज एंड हॉस्पिटल-32 (जी.एम.सी.एच.) के बाओमैडीकल वेस्ट की ट्रांसपोर्टेशन ने सवाल खड़ा कर दिया है। हॉस्पिटल द्वारा बाओमैडीकल वेस्ट की ट्रांसपोर्टेशन एक कंपनी से लगातार तीन सालों तक करवाए जाने पर ऑडिट ने आपत्ति जता दी है। ऑडिट ने सीधे-सीधे हॉस्पिटल प्रबंधन को एक ही कंपनी को फायदा पहुंचाने पर ऐतराज जताया है। यह भी कहा गया है कि पंजाब, हरियाणा, दिल्ली में ऐसी कंपनियां भी मौजूद हैं जो रजिस्ट्रड हैं फिर सिर्फ एक ही कंपनी को लगातार तीन सालों 2014 से लेकर 2017 तक बाओमैडीकल वेस्ट उठाने का काम क्यों सौंपा गया? 


 

वित्तीय नियमों का क्यों किया उल्लंघन?
ऑडिट रिपोर्ट कहती है कि जनरल फाइनैंशियल रूल्स के मुताबिक टैंडर कॉल करने के लिए निकाले जाने वाले नोटिस में लिखे जाने वाले सामान्य किस्म के होने चाहिए। नोटिस में सर्विस की जरूरतों के बारे में विस्तार से जानकारी होनी चाहिए। ऐसी शर्ते नहीं लिखी जानी चाहिए जिसकी वजह से सर्विसेज के दाम बढ़ जाएं। हॉस्पिटल के बाओमैडीकल वेस्ट मैनेजमैंट से संबंधित रिकाड्र्स की मानें जी.एम.सी.एच. कई सालों से एलायंस इनवायरोकेयर कंपनी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को काफी समय में बाओमैडीकल वेस्ट ट्रांसपोर्टेशन का कांटै्रक्ट दे रखा है। वर्ष 2014-15, 2015-16 और 2016-17 के दौरान हॉस्पिटल ने इसी कंपनी को बाओमैडीकल वेस्ट ट्रांसपोर्ट करने का काम दिया हुआ है। टैंडर से संबंधित खंगाले गए रिकार्ड कहते हैं कि टेंडर के साथ जिस चैकलिस्ट को अटैच किया जाता है, उस लिस्ट के प्वाइंट नंबर 7,8 और 9 जनरल नेचर के होने चाहिए थे जबकि वह सामान्य होने की बजाय इस किस्म के थे जिसकी वजह से एक विशेष कंपनी को ही टैंडर मिल सकता था। 

 

यह जानते हुए कि प्वाइंट नंबर 7,8,9 के साथ सारी कंपनी फिट नहीं बैठेंगी सिर्फ एक कंपनी को ही काम मिल सकेगा हॉस्पिटल ने बाओमैडीकल वेस्ट उठाने और ले जाने का काम एक ही कंपनी को दिया। ऑडिट में कहा गया है कि जी.एम.सी.एच. ने यह जानते हुए कि पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में ऐसी कोई भी कंपनी नहीं है जो टैंडर के नियमों व शर्तों पर खरी उतरेगी तब भी प्वाइंट 7,8 और 9 को टैंडर का हिस्सा क्यों बनाया? ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि आसपास के राज्यों में ऐसी कंपनी मौजूद हैं जो सैंट्रल गवर्नमैंट द्वारा बनाए गए बाओमैडीकल वेस्ट मैनेजमेंट के अंतर्गत पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड के अंतर्गत रजिस्ट्रड और आथोराइज्ड हैं। 


 

हाऊसकीपिंग सर्विसेज के कांट्रैक्ट पर भी उठाए सवाल
हॉस्पिटल की हाऊसकीपिंग और सेनिटेशन सर्विेसज पर भी ऑडिट ने सवाल खड़े किए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि जी.एम.सी.एच.-32 ने कांटै्रक्टर को लाभ पहुंचाने की कोशिश की है। केशव सिक्योरिटी को हॉस्पिटल ने छह महीनों के लिए हाऊसकीपिंग व सेनिटेशन का कांटै्रक्ट दिया था। कंपनी को 24 दिसम्बर 2013  को केशव सिक्योरिटी फर्म को एक दिसबंर 2013 से लेकर 31 मई 2014 तक काम दे दिया गया। कांटै्रक्ट के मुताबिक कंपनी का काम सही पाए जाने और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से अनुमति मिलने के बाद कांटै्रक्ट को तीन सालों के लिए आगे बढ़ाया भी जा सकता है, ऐसा कहा गया था। 

 

हॉस्पिटल के डायरैक्टर प्रिंसीपल का रिकार्ड कहता है कि वर्ष 2016-17 के दौरान 5 अप्रैल 2015 को सारे सफाई कर्मचारी (364)को हड़ताल पर चले गए थे। कर्मचारियों के हड़ताल पर जाने की वजह से हॉस्पिटल को काफी परेशानी का सामना भी करना पड़ा। कर्मचारियों के हड़ताल पर जाने की वजह से हॉस्पिटल को अप्रैल 2015 में ही कांट्रैक्टर पर जुर्माना लगाया जाना चाहिए था लेकिन हॉस्पिटल ने सिर्फ 1000 रुपये का जुर्माना ही लगाया। हॉस्पिटल ने यह जुर्माना भी 3 मई 2016 को लगाया जबकि ऐसा करना कांटै्रक्ट का उल्लंघन था। रिपोर्ट कहती है कि हॉस्पिटल ने इसका जवाब दिया है कि कांटै्रक्टर पर जुर्माना ठोका गया था परंतु ऑडिट का कहना है कि सारे कर्मचारियों के हड़ताल पर चले जाने पर सिर्फ 1000 रुपये का जुर्माना क्यों लगाया गया और वो भी एक साल बीत जाने के बाद ही हॉस्पिटल को जुर्माने की क्यों याद आई? 


 

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