खुद में भूलकर भी न पालें ऐसी आदत, बन सकती है अभिशाप

Edited By ,Updated: 05 Feb, 2017 03:25 PM

forgetting himself not nursed habit can become a curse

एक बार की बात है कि एक शिष्य अपने गुरु का बहुत आदर-सम्मान किया करता था। गुरु भी अपने इस शिष्य से बहुत स्नेह करते थे लेकिन वह शिष्य अपने अध्ययन के

एक बार की बात है कि एक शिष्य अपने गुरु का बहुत आदर-सम्मान किया करता था। गुरु भी अपने इस शिष्य से बहुत स्नेह करते थे लेकिन वह शिष्य अपने अध्ययन के प्रति आलसी और स्वभाव से दीर्घसूत्री था। अब गुरु जी कुछ चिंतित रहने लगे कि कहीं उनका यह शिष्य जीवन संग्राम में पराजित न हो जाए। उन्होंने मन ही मन अपने शिष्य के कल्याण के लिए एक योजना बना ली। 

 

एक दिन एक काले पत्थर का एक टुकड़ा उसके हाथ में देते हुए गुरु जी ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें यह जादुई पत्थर का टुकड़ा 2 दिन के लिए देकर कहीं दूसरे गांव जा रहा हूं। जिस भी लोहे की वस्तु को तुम इससे स्पर्श करोगे, वह स्वर्ण में परिवर्तित हो जाएगी, पर याद रहे कि दूसरे दिन सूर्यास्त के पश्चात मैं इसे तुमसे वापस ले लूंगा।’’  

 

शिष्य इस सुअवसर को पाकर बड़ा प्रसन्न हुआ लेकिन आलसी होने के कारण उसने अपना पहला दिन यह कल्पना करते-करते बिता दिया कि जब उसके पास बहुत सारा स्वर्ण होगा तब वह कितना प्रसन्न, सुखी, समृद्ध और संतुष्ट रहेगा, इतने नौकर-चाकर होंगे कि उसे पानी पीने के लिए भी नहीं उठना पड़ेगा। फिर दूसरे दिन जब वह प्रात:काल जागा, उसे अच्छी तरह से स्मरण था कि आज स्वर्ण पाने का दूसरा और अंतिम दिन है। उसने मन में पक्का विचार किया कि आज वह गुरु जी द्वारा दिए गए काले पत्थर का लाभ जरूर उठाएगा। उसने निश्चय किया कि वह बाजार से लोहे के बड़े-बड़े सामान खरीद कर लाएगा और उन्हें स्वर्ण में परिवर्तित कर देगा। दिन बीतता गया, पर वह इसी सोच में बैठा रहा कि अभी तो बहुत समय है, कभी भी बाजार जाकर सामान लेता आएगा। 

 

उसने सोचा कि अब तो दोपहर का भोजन करने के पश्चात ही सामान लेने निकलूंगा, पर भोजन करने के बाद उसे विश्राम करने की आदत थी और उसने बजाय उठकर मेहनत करने के थोड़ी देर आराम करना उचित समझा लेकिन आलस्य से परिपूर्ण उसका शरीर नींद की गहराइयों में खो गया और जब वह उठा तो सूर्यास्त होने को था। 

 

अब वह जल्दी-जल्दी बाजार की तरफ भागने लगा, पर रास्ते में ही उसे गुरु जी मिल गए, उनको देखते ही वह उनके चरणों पर गिरकर उस जादुई पत्थर को एक दिन और अपने पास रखने के लिए याचना करने लगा लेकिन गुरु जी नहीं माने और उस शिष्य का धनी होने का सपना चूर-चूर हो गया लेकिन इस घटना की वजह से शिष्य को एक बहुत बड़ी सीख मिल गई। उसे अपने आलस्य पर पछतावा होने लगा। वह समझ गया कि आलस्य उसके जीवन के लिए एक अभिशाप है।  
 

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