Edited By ,Updated: 10 Jan, 2017 11:11 AM
जिसके मन को राग और द्वेष हिलाते रहते हों, समय-समय अहंकार बाहर आ जाता हो, जिसको काम, क्रोध, लोभ, मोह और भय परेशान करता हो, ऐसे इंसान द्वारा किया गया काम कर्म कहलाता है।
जिसके मन को राग और द्वेष हिलाते रहते हों, समय-समय अहंकार बाहर आ जाता हो, जिसको काम, क्रोध, लोभ, मोह और भय परेशान करता हो, ऐसे इंसान द्वारा किया गया काम कर्म कहलाता है। इसमें पाप और पुण्य मिला-जुला होता है। जब इंसान इनसे ऊपर उठकर मन और इंद्रियों को अपने वश में कर लेता है, तब वह योगी हो जाता है। अब उसके द्वारा किया गया हर कर्म निष्काम होता है, फलरहित होता है और इसे अकर्म कहते हैं। जो कर्म समाज की व्यवस्था को गड़बड़ा दे, दूसरों को पीड़ा पहुंचाए या खुद को नीचे की ओर ले जाए, वह विकर्म या उलटे कर्म कहलाते हैं। ऐसे कर्म पाप फल देते हैं।
अब आप स्वयं निर्णय करें की आपके जीवन की दिशा किस ओर रूख कर रही है। किसी भी व्यक्ति के साथ सौभाग्य और प्रगति तब तक रहती हैं, जब तक दैवीय कृपा अपना शुभ प्रभाव देती हैं। नारद पुराण में महर्षि बताते हैं की कुछ ऐसी चीजें हैं जो मनुष्य के शुभ फलों का हरण कर लेती हैं। आपके साथ भी ऐसा घटित हो जाएं तो स्नान करके अशुभता को समाप्त किया जा सकता है। संभव हो तो नहाने के पानी में गंगा जल मिला लें।
* हड्डियों से जाने-अनजाने हुआ स्पर्श अशुभ फल देता है।
* मान्यता है की जूठन से स्पर्श होना अथवा चरण लग जाना शुभ फलों को हर लेता है।
* कुत्ते का स्पर्श करना, उसे हाथों से पुचकारना अथवा अनजाने में शरीर से संपर्क में आना अशुभता लाता है।
* झाड़ू से उड़कर पड़ने वाले पानी के छींटे जब मनुष्य के शरीर को छूते हैं तो बैड लक बढ़ता है।
* शव दाह के धुएं का शरीर से संयोग गुड लग खत्म करता है।
* मृत व्यक्ति को छूना भी अशुभ फल देता है।
* किसी की अर्थी को कंधा देना अथवा चिता पर लकड़ी डालना पुण्य का भागी बनाता है। इसके बाद स्नान अवश्य करना चाहिए अन्यथा कामाया गया अच्छा कर्म अभाग्य में बदल जाता है।
* चटाई से टपकने वाला पानी या उड़कर शरीर पर पड़ने वाला जल सौभाग्य में कटौती करता है। स्नान करने से दुर्भाग्य नष्ट हो जाता है।