Edited By ,Updated: 04 Jan, 2017 02:06 PM
उमर खय्याम अपनी मस्ती में अपने साथियों के साथ देशाटन करते थे। भजन-पूजन करते और अलमस्ती के दिन गुजरते। एक दिन वह एक शिष्य के साथ घने जंगल से होकर जा रहे थे। नमाज का
उमर खय्याम अपनी मस्ती में अपने साथियों के साथ देशाटन करते थे। भजन-पूजन करते और अलमस्ती के दिन गुजरते। एक दिन वह एक शिष्य के साथ घने जंगल से होकर जा रहे थे। नमाज का वक्त हो गया। वह नमाज अदा करने बैठ गए। शिष्य भी नमाज अदा करने लगा। तभी पास के जंगल से एक शेर की गर्जना सुनाई दी। शिष्य घबरा गया और जान बचाने के लिए पेड़ पर चढ़ गया लेकिन खय्याम आराम से एकाग्रचित होकर नमाज अदा करते रहे। शेर वहां आया। उसने खय्याम को देखा। फिर पेड़ पर चढ़े शिष्य को देखा। खय्याम के सामने गर्दन झुकाकर चलता बना लेकिन शिष्य के पेड़ के नीचे इतनी जोर से दहाड़ा कि शिष्य और भी डर गया। उसे डरा कर शेर जंगल में चला गया।
शिष्य को जब शेर के जाने का यकीन हो गया तब वह पेड़ से उतरा। नमाज खत्म करके खय्याम इस दृश्य को मजे से देखते रहे। गुरु और शिष्य ने अपना सामान समेटा और चल दिए। काफी दूर तक दोनों खामोश चलते गए। तभी शिष्य को एक थप्पड़ की आवाज सुनाई दी। खय्याम ने अपने ही गाल पर जोर से चांटा रसीद कर दिया था। चेले ने ताज्जुब में आकर उस्ताद से पूछा, ‘‘आपने अपने ही गाल पर थप्पड़ क्यों मारा?’’
‘‘खय्याम ने जवाब दिया, ‘‘मेरे गाल पर एक मच्छर बैठ गया और उसने मुझे काट लिया। उसे मारने के लिए मैंने चांटा मारा।’’
‘‘जब आपके नमाज पढ़ते वक्त शेर आ गया, तब तो आप एकाग्र होकर नमाज पढ़ते रहे और आप जब मेरे साथ जंगल में जा रहे हैं तो एक मच्छर से इतना डर गए?’’
खय्याम ने जवाब दिया कि दोनों हालात में जमीन-आसमान का अंतर है। उस वक्त मैं खुदा के साथ था। इस वक्त बंदे के साथ हूं। खुदा के साथ होने पर अपनी हालत की कोई खबर नहीं रहती।