Papmochani ekadashi katha: पढ़ने और सुनने से मिलेगा 100 गोदान का पुण्य

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 28 Mar, 2022 07:55 AM

papmochani ekadashi fast story

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 भी हो जाती है। हिंदू धर्म के अनुसार संसार में उत्पन्न होने वाला कोई भी ऐसा मनुष्य नहीं है जिसने जाने-अनजाने में...

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Papmochani Ekadashi 2022: हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 भी हो जाती है। हिंदू धर्म के अनुसार संसार में उत्पन्न होने वाला कोई भी ऐसा मनुष्य नहीं है, जिसने जाने-अनजाने में कोई पाप न किया हो। पाप एक प्रकार की गलती है जिसके लिए हमें दंड भोगना होता है। ईश्वरीय विधान के अनुसार पापमोचिनी एकादशी का व्रत करने से पाप के दंड से बचा जा सकता है। 

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Papmochani ekadashi vrat katha पापमोचनी एकादशी व्रत कथा
पुराणों के अनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी पाप मोचिनी है अर्थात पाप को नष्ट करने वाली है। स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि राजा मान्धाता ने एक समय में लोमश ऋषि से जब पूछा कि प्रभु यह बताएं कि मनुष्य जो जाने-अनजाने पाप कर्म करता है, उससे कैसे मुक्त हो सकता है। तब राजा मान्धाता के इस प्रश्न के जवाब में लोमश ऋषि ने राजा को एक कहानी सुनाई जो इस प्रकार है-

पद्मपुराण के अनुसार प्राचीन काल में धनपति कुबेर का चैत्ररथ नामक एक बड़ा सुन्दर फूलों का बगीचा था, जहां सदा बसंत ऋतु ही रहती थी। वहां गन्धर्व कन्याएं विहार करती और इन्द्रादि देवता भी वहां आकर क्रीड़ा किया करते थे। उसी बाग में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि कैलाशपति भगवान शिव के परम भक्त थे जो वहां तपस्या किया करते थे। देवराज इन्द्र ने जब ऋषि को तपस्या करते देखा तो अपना इन्द्र लोक छिन जाने के भय से ऋषि की तपस्या भंग करने के लिए कामदेव और मंजूघोषा नामक अप्सरा को वहां भेजा। ऋषि के श्राप के भय से वह उनके पास तो नहीं गए परंतु वहीं पास में कुटिया बनाकर रहने लगे तथा वीणा बजाकर मधुर स्वर में गीत गाने लगे। ऋषि पर इन सब का कोई प्रभाव नहीं पड़ा तो एक दिन कामदेव मेधावी ऋषि के शरीर में प्रवेश कर गए जिससे वह कामदेव की तरह रूपवान दिखने लगे और मंजूघोषा अप्सरा भी कामासक्त होकर ऋषि के निकट आकर गाना सुनाने लगी।

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अप्सरा के रूप को देखकर और मधुर संगीत के वशीभूत होकर ऋषि भी भजन, साधन, तपस्या और ब्रह्मचर्य को छोड़कर अपना समय उसी के साथ हास-परिहास और विहार में बिताने लगे। अप्सरा ने जब देवराज इन्द्र के आदेश को पूरा होता देखा तो उसने एक दिन ऋषि से कहा कि अब वह उनके पास से जाना चाहती है। ऐसा सुनकर ही ऋषि दीन भावना से प्रार्थना करने लगे कि अपने जीवन साथी को छोड़कर मत जाओ। फिर काफी समय बीत गया और अंत में मंजूघोषा ने ऋषि से पुन: जाने की आज्ञा मांगी और कहा कि अब तो कितनी प्रात: और कितनी संध्या बीत चुकी हैं, इसका अनुमान तो करो। 

ऋषि ने जब बीते हुए समय का हिसाब लगाया तो जाना कि वह 57 वर्ष तक ऋषि के साथ रही। अपनी तपस्या भंग करने के क्रोध में आकर ऋषि ने उसे पिशाचिनी होने का श्राप दे दिया। तब मंजूघोषा ने हाथ जोड़कर नतमस्तक होते हुए उनसे विनय पूर्वक अपना श्राप वापिस लेने को कहा तो ऋषि ने कहा कि श्राप तो वापिस नहीं लिया जा सकता परंतु उन्होंने पिशाचिनी शरीर से मुक्ति पाने के लिए उसे चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। ऋषि जब अपने पिता च्यवन के आश्रम में आए और उन्हें तपस्या भंग होने के बारे में बताया तो पिता ने उन्हें भी पापमोचनी एकादशी व्रत करने के लिए कहा। अप्सरा मंजूघोषा और ऋषि मेधावी ने यह व्रत किया और अपने अनजाने में किए पापों से मुक्ति प्राप्त की। इस कथा के श्रवण करने और नियम से व्रत का पालन करने वाले को सहस्त्र गोदान के बराबर पुण्यफल की प्राप्ति होती है। 

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