पवित्रा एकादशी व्रत कथा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 02 Aug, 2017 07:12 AM

pavitra ekadashi vrat katha in hindi

द्वापर युग के प्रारंभ में राजा महीजित राज्य करते थे, वह प्रजा पालक और धर्म प्रायन थे। ब्राह्मणों की सेवा करना वह अपना कर्तव्य समझते थे, परन्तु

द्वापर युग के प्रारंभ में राजा महीजित राज्य करते थे, वह प्रजा पालक और धर्म प्रायन थे। ब्राह्मणों की सेवा करना वह अपना कर्तव्य समझते थे, परन्तु कोई पुत्र न होने के कारण वह दुखी थे। राजा के दुख से दुखी प्रजा ने मुनि लोमश से भेंट की और उन्हें राजा के पुत्र न होने का कारण पूछा। 


मुनि लोमश ने बताया कि यह राजा पूर्व जन्म में धनहीन वैश्य था और जेठ मास के शुक्ल पक्ष की दसवीं तिथि को जब सूर्य तप रहा था तो वह गावों की सीमा पर बने जलाशय पर पहुंचा, वहां एक गाय बछ्ड़े के साथ जल पीने आई और इस वैश्य ने उस पानी पीती गाय को वहां से हटा दिया और स्वयं जल पीने लगा उसी पाप कर्म के कारण यह राजा पुत्रहीन हुआ। परन्तु किसी अन्य जन्म के पुण्य कर्मों के प्रभाव से इन्हें अकंटक राज्य तो मिला परन्तु पुत्र प्राप्ति नहीं हुई। उन्होंने सावन मास के शुक्ल पक्ष की पवित्रा एकादशी का विधिवत व्रत करने को कहा। 


सारी प्रजा ने मुनि के कहने पर राजा सहित मिलकर पुत्रदा एकादशी के व्रत का अनुष्ठान किया, रात को बड़ी भावना से हरिनाम संकीर्तन करते हुए जागरण किया और उसका पुण्य फल राजा को दिया। उसी के प्रभाव से राजा को पुत्र प्राप्ति हुई थी। 

 

प्रस्तुति: वीना जोशी
veenajoshi23@gmail.com

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