Vikat Sankashti Chaturthi: आज है विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत, जानें शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि

Edited By Updated: 16 Apr, 2025 07:10 AM

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Vikat Sankashti Chaturthi 2025: वैशाख माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी तिथि को विकट संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस माह में स्नान, दान, जप और तप के कार्य बहुत ही शुभ माने जाते हैं। इस दिन गणेश जी की पूजा करने से विशेष कृपा बरसती...

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Vikat Sankashti Chaturthi 2025: वैशाख माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी तिथि को विकट संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस माह में स्नान, दान, जप और तप के कार्य बहुत ही शुभ माने जाते हैं। इस दिन गणेश जी की पूजा करने से विशेष कृपा बरसती है और जीवन में आने वाली हर परेशानी से छुटकारा मिलता है। आज 16 अप्रैल को विकट संकष्टी चतुर्थी मनाई जाएगी। तो आइए जानते हैं कि वैशाख के महीने में विकट संकष्टी चतुर्थी पूजा मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि।  

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Vikat Sankashti Chaturthi auspicious time and moonrise time विकट संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त और चंद्रोदय का समय

6 अप्रैल बुधवार के ब्रह्म मुहूर्त में यानी सुबह 4 बजकर 26 मिनट से 5 बजकर 10 मिनट के बीच स्वच्छ होकर स्नान आदि कर लें और मन ही मन गणेश जी की पूजा का संकल्प लेकर उनसे प्रार्थना करें की व्रत पूरा करने की सामर्थ्य प्रदान करें। सूर्योदय के बाद शास्त्रीय विधि अनुसार पूजा करें। इस दिन कोई भी अभिजीत मुहूर्त नहीं है। विजय मुहूर्त दोपहर 2 बजकर 30 मिनट से 3 बजकर 21 मिनट तक रहेगा और अमृत काल का शुभ समय शाम 6 बजकर 20 मिनट से रात 8 बजकर 6 मिनट तक रहने वाला है। विकट संकष्टी चतुर्थी की रात जब तक चंद्रमा को अर्घ्य न दिया जाए तब तक व्रत पूरा नहीं होता। इस रोज चंद्रमा रात्रि 10:00 बजे दर्शन देंगे।

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Importance of Vikat Sankashti Chaturthi fast विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व
सनातन धर्म में विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत का बहुत महत्व है। माना जाता है कि इस दिन पूरे विधि-विधान से गणपति जी की पूजा करने से सभी संकटों से छुटकारा मिलता है और जीवन में सुख-सृमद्धि बनी रहती है। इस दिन विशेष रूप से चंद्रमा की पूजा करने का विधान है। विकट संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्रमा की पूजा करने से चंद्र दोष समाप्त होता है।

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Vikat Sankashti Chaturthi Puja Method विकट संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि
विकट संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लें।
फिर गणपित जी का गंगा जल से अभिषेक करें।
अब गणेश जी को फूल, फल और दूर्वा घास चढ़ाएं। फिर पीला तिलक और सिंदूर लगाएं।
बप्पा को तिल के लड्डू या मोदक का भोग लगाएं।
भोग लगाने के बाद गणेश जी के मंत्रों का जाप करें।
इसके बाद गणेश जी की आरती करें और चंद्रमा को देखकर प्रार्थना करें।
अंत में चंद्रमा को देखकर अपना व्रत खोलें और अपनी गलती के लिए माफी मांगे।

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