सुभाष चंद्र बोस जन्मदिन आज: करोड़ों बार नमन्, पढ़ें कुछ रोचक बातें

Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Jan, 2018 08:26 AM

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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता सुभाष चंद्र बोस की निडर देश भक्ति ने उन्हें देश का ‘नायक’ बना दिया। 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में एक नामचीन वकील जानकीदास बोस के घर एक ऐसे महापुरुष ने जन्म लिया, जो बाद में हरेक के हृदय में ‘नेताजी’...

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता सुभाष चंद्र बोस की निडर देश भक्ति ने उन्हें देश का ‘नायक’ बना दिया। 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में एक नामचीन वकील जानकीदास बोस के घर एक ऐसे महापुरुष ने जन्म लिया, जो बाद में हरेक के हृदय में ‘नेताजी’ के नाम से बस गया।


बचपन से ही निडर सुभाष ने 1913 में कलकत्ता के प्रैसीडैंसी कालेज से मैट्रिक की परीक्षा पास की और 1919 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वह आई.सी.एस. की परीक्षा के लिए इंगलैंड चले गए। अगस्त 1920 में प्रथम श्रेणी में परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात उन्होंने शाही नौकरी को लात मार कर ब्रिटिश सरकार की जी हुजूरी की बजाय देश सेवा को प्राथमिकता दी।


भारत लौटने के बाद बंगाल में देशबंधु चितरंजनदास से प्रभावित होकर उन्होंने उन्हें अपना राजनीतिक गुरु बना लिया और 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्यता ले ली। दिसम्बर 1921 में भारत में जब ब्रिटिश युवराज प्रिंस ऑफ वेल्स के स्वागत की तैयारियां चल रही थीं तो चितरंजनदास और सुभाष ने इसका घोर विरोध किया, जिसके फलस्वरूप दोनों को जेल में डाल दिया गया। 


इसके पश्चात 1930 में वह कलकत्ता नगर निगम के महापौर निर्वाचित हुए और 1938 में पहली बार कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन में पार्टी के अध्यक्ष चुने गए। 1939 में महात्मा गांधी से विवाद के बावजूद वह पुन: कांग्रेस के अध्यक्ष चुन लिए गए लेकिन मतभेद बढ़ जाने के कारण अप्रैल 1939 में अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर उन्होंने 5 मई 1939 को ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ नाम का एक नया दल बनाया। 


1940 में रामगढ़ अधिवेशन (कांग्रेस) के अवसर पर सुभाष ने ‘समझौता विरोधी कांफ्रैंस’  का आयोजन करते हुए एक बहुत ही जोशीला भाषण दिया जिससे नाराज होकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। वहां पर उन्होंने भूख हड़ताल शुरू कर दी, जिस वजह से अंग्रेजों को उन्हें छोडऩा पड़ा।


1941 में वह जब कलकत्ता की अदालत में मुकद्दमे के लिए पेश होने वाले थे तो वे उससे पहले ही वेश बदल कर भारत से निकल कर काबुल पहुंच गए थे और बाद में वह जर्मनी में हिटलर से मिले। जर्मनी में ‘भारतीय स्वतंत्रता संगठन’ और ‘आजाद हिन्द रेडियो’ की स्थापना के पश्चात वह एक गोताखोर नाव द्वारा जापान पहुंचे थे। अंग्रेजों के विरुद्ध लडऩे के लिए उन्होंने जापान के सहयोग से आजाद हिंद फौज की स्थापना की और युवाओं को प्रोत्साहित करते हुए कहा, ‘‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।’’


इसके तहत 1943 में ‘आजाद हिंद फौज’ का विधिवत रूप से गठन हुआ जिसमें हर जाति, धर्म, सम्प्रदाय के सैनिक थे। सुभाष की बातों और भाषणों से देशवासी इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनके साथ एक बहुत बड़ा काफिला खड़ा हो गया। 


18 अगस्त 1945 को हवाईजहाज से सिंगापुर से टोक्यो जाते समय उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और स्वतंत्रता की लड़ाई का एक बहुत ही महत्वपूर्ण अध्याय का अंत हो गया। स्वाधीनता के पुजारी सुभाष ने भारत माता की आजादी के लिए अपना सर्वस्व अपनी मातृभूमि के चरणों में अर्पित कर दिया। त्याग और बलिदान की इस प्रतिमूर्ति को करोड़ों बार नमन् है।

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