सुरा और सुंदरी सब थीं पास, फिर भी पूरी हो न सकी आस

Edited By Punjab Kesari,Updated: 12 Nov, 2017 09:31 AM

sura and sundari were all nearby yet could not be fulfilled

म्यांमार के राजा थिबा महान ज्ञानयोगी थे। जितना गहरा उनका ज्ञान था उतने ही वे सरल और निरहंकारी थे। उनके जीवन का लक्ष्य ही प्रजा की सेवा करना एवं प्रभु भक्ति में संलग्र रहना था। प्रजा एवं परमात्मा की भक्ति एवं सेवा में निश्छलता एवं पवित्रता ही उनकी...

म्यांमार के राजा थिबा महान ज्ञानयोगी थे। जितना गहरा उनका ज्ञान था उतने ही वे सरल और निरहंकारी थे। उनके जीवन का लक्ष्य ही प्रजा की सेवा करना एवं प्रभु भक्ति में संलग्र रहना था। प्रजा एवं परमात्मा की भक्ति एवं सेवा में निश्छलता एवं पवित्रता ही उनकी अतुल्य उपलब्धियों का कारण थीं। एक बार एक अहंकारी भिक्षुक उनके पास आया और बोला, ‘‘राजन! मैं वर्षों से अखंड जप-तप करता आ रहा हूं, कठोर साधना करता रहा हूं लेकिन आज तक मुझे ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई, जबकि आप राजवैभव में लिप्त होने के बावजूद परमात्मा के मार्ग पर बहुत आगे बढ़ चुके हैं।’’

 

 

मैंने सुना है, आपको ज्ञानयोग की प्राप्ति हुई है, क्या वजह है। राजा बोले, ‘भिक्षुक, तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मैं उचित समय पर दूंगा। अभी तो तुम यह दीपक लेकर मेरे महल में नि:संकोच प्रवेश करो। मनचाही चीज ले सकते हो, महल के सारे सुख भोग सकते हो। तुम्हारे लिए कोई रोक-टोक नहीं है। पर यह ध्यान रहे कि दीपक हरगिज न बुझे। अगर दीपक बुझ गया तो तुम्हें कठोर दंड भोगना होगा।’’ भिक्षुक पूरे महल में दीपक लेकर घूमा, सुख-भोग के साधन देखे, राजवैभव देखा, सब कुछ देख-घूमकर वापस आया। राजा थिबा ने उससे पूछा, ‘‘कहो बंधु, तुम्हें मेरे महल में क्या चीज पसंद आई।’ राजन, मेरा अहोभाग्य जो आपने मेरे लिए राजवैभव के सारे द्वार खुले रख छोड़े। पर छप्पन भोग, सुरा-सुंदरी, नृत्य-संगीत इन सारी चीजों का आस्वाद लेने के बावजूद मेरे मन को कुछ भी अच्छा नहीं लगा।’’

 

 

चाहकर भी सारे सुखों का आनंद नहीं ले पाया क्योंकि मेरा सारा ध्यान आपके दिए हुए इस दीपक की ओर था। भिक्षुक की बात सुनकर राजा ने कहा, ‘‘बस यही वजह है कि मैं राजा होकर भी राजवैभव, ऐशो-आराम से अलग हूं। मेरा ध्यान या तो प्रजा पर रहता है या फिर परमात्मा में।’’

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