Teachers Day: शिक्षक का स्थान है भगवान से भी ऊंचा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Sep, 2017 11:25 AM

teachers day teachers place is higher than god

‘गुरुर्बह्मा, गुरुविष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:। गुरुर्साक्षात्परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम:।। गुरु, टीचर, आचार्य, अध्यापक, शिक्षक सभी शब्द एक ऐसे व्यक्ति की व्याख्या करते हैं जो ज्ञान देने के साथ हमें सही राह पर चलने को प्रेरित करता है।

‘गुरुर्बह्मा, गुरुविष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:। गुरुर्साक्षात्परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम:।।

 

गुरु, टीचर, आचार्य, अध्यापक, शिक्षक सभी शब्द एक ऐसे व्यक्ति की व्याख्या करते हैं जो ज्ञान देने के साथ हमें सही राह पर चलने को प्रेरित करता है। पूरे भारत में 5 सितम्बर को ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाने वाला यह दिन एक त्यौहार के समान होता है जो सभी शिक्षकों को गौरवान्वित महसूस कराता है। यह दिन इसलिए भी खास है क्योंकि इस दिन भारत के दूसरे राष्ट्रपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के जन्म दिवस व उनकी स्मृति के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए प्रयासों के उपलक्ष्य में सम्मान देने के लिए उन्हें याद किया जाता है।


शिक्षक होते हैं सम्माननीय : गुरु यानी शिक्षक से शिक्षा कुछ देकर नहीं बल्कि उनके प्रति विश्वास और सम्मान अर्जित करके ही हासिल की जा सकती है। एक छात्र के रूप में आपको अपने टीचर की बातों को ध्यान से सुन कर उन्हें अपने जीवन में धारण करना है। अपने भीतर के हर द्वेष को भूल कर संयमित हो सफलता की ऊंचाइयों को छूना है तभी तो शिक्षक दिवस की सही अर्थ सार्थक होगा। हमें समझना होगा कि शिक्षक एक कुम्हार की तरह होता है जो छात्र रूपी कच्ची मिट्टी को कूट कर, बड़े प्यार से उसे संवारते हुए अपनी रचनात्मकता से एक अनमोल कृति की रचना करता है और जब कृति उसके अनुरूप आकार लेती है तो वह उस पर और स्वयं पर गर्व महसूस करता है। 


हमारे जीवन में हमें दुनिया में लाने के लिए अपने माता-पिता पर गर्व होता है लेकिन अच्छे व्यक्तित्व के विकास के लिए हम अपने शिक्षक के ऋणी होते हैं। कहते हैं शिक्षक चाहे कभी बुलंदियों पर न पहुंचे परंतु बुलंदियों पर पहुंचाने वालों को एक शिक्षक ही तैयार करता है। कहने का अभिप्राय यह है कि शिक्षक दुनिया में सबसे अधिक सम्माननीय तथा असीम ज्ञान का भंडार होते हैं। वे हमें नियमों में बांध कर एक सटीक इंसान बनाते हैं। चाहे वे हमें जैसे भी लगें लेकिन उनकी बातों को मानते-समझते हम कब उनसे दिल से गहरे जुड़ जाते हैं, पता ही नहीं चलता। तभी तो सद्गुरु कबीर जी ने कहा है :

 

‘गुरु गोबिंद दोऊ खड़े काके लागूं पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताए।’

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