मां दुर्गा का पंचम रूप स्कंदमाता: एक पूजन से मिलेगा दोहरा लाभ

Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Sep, 2017 11:45 AM

the fifth form of mother durga skamanata a poojan will get double benefits

नवरात्र के पांचवें दिन नवदुर्गा के पंचम स्वरूप देवी स्कंदमाता का पूजन किया जाता है।

नवरात्र के पांचवें दिन नवदुर्गा के पंचम स्वरूप देवी स्कंदमाता का पूजन किया जाता है। यह बुद्ध ग्रह पर अपना आधिपत्य रखती हैं। स्कंदमाता का स्वरुप उस महिला या पुरुष का है जो माता-पिता बनकर अपने बच्चों का लालन-पोषण करते हैं। इनका पूजन करने से भगवान कार्तिकेय के पूजन का भी लाभ प्राप्त होता है। शास्त्रनुसार देवी अपनी ऊपर वाली दाईं भुजा में बाल कार्तिकेय को गोद में उठाए हैं। नीचे वाली दाईं भुजा में कमल पुष्प लिए हुए हैं। ऊपर वाली बाईं भुजा से इन्होंने जगत तारण वरदमुद्रा बना रखी है व नीचे वाली बाईं भुजा में कमल पुष्प है। देवी स्कंदमाता का वर्ण पूर्णत: शुभ्र है अर्थात मिश्रित है। यह कमल पर विराजमान हैं, इसी कारण इन्हें “पद्मासना विद्यावाहिनी दुर्गा” भी कहते हैं।

शास्त्रनुसार इनकी सवारी सिंह है। देवी स्कंदमाता की साधना का संबंध बुद्ध ग्रह से है। कालपुरूष सिद्धांत के अनुसार कुण्डली में बुद्ध ग्रह का संबंध तीसरे व छठे घर से होता है अतः देवी स्कंदमाता की साधना का संबंध व्यक्ति के सेहत, बुद्धिमत्ता, चेतना, तंत्रिका-तंत्र व रोगमुक्ति से है। 

वास्तुपुरुष सिद्धांत के अनुसार देवी स्कंदमाता की दिशा उत्तर है, निवास में वो स्थान जहां पर उपवन या हरियाली हो। स्कंदमाता का अर्थ है स्कंद अर्थात भगवान कार्तिकेय की माता। इन्हें दुर्गा सप्तसती शास्त्र में “चेतान्सी” कहकर संबोधित किया गया है। देवी स्कंदमाता विद्वानों व सेवकों को पैदा करने वाली शक्ति हैं। 

स्कंदमाता की पूजा का श्रेष्ठ समय है दिन का दूसरा पहर। इनकी पूजा चंपा के फूलों से करनी चाहिए। इन्हें मूंग से बने मिष्ठान का भोग लगाएं। श्रृंगार में इन्हें हरे रंग की चूडियां चढ़ानी चाहिए। इनकी उपासना से मंदबुद्धि व्यक्ति को बुद्धि व चेतना प्राप्त होती है, पारिवारिक शांति मिलती है, इनकी कृपा से ही रोगियों को रोगों से मुक्ति मिलती है तथा समस्त व्याधियों का अंत होता है। देवी स्कंदमाता की साधना उन लोगों के लिए सर्वश्रेष्ठ है जिनकी आजीविका का संबंध मैनेजमेंट, वाणिज्य, बैंकिंग अथवा व्यापार से है।

मां स्कंदमाता की आराधना के मंत्र हैं:
या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:


सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

इन मंत्रों का जाप करने के बाद केले का भोग लगाएं। 


आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com

 

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