Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Jun, 2017 09:27 AM
‘अतिथि देवो भव:’ अर्थात- घर आया अतिथि देव समान है।
संस्कृत की यह पंक्ति हमारी संस्कृति है जिसे आजकल
‘अतिथि देवो भव:’ अर्थात- घर आया अतिथि देव समान है।
संस्कृत की यह पंक्ति हमारी संस्कृति है जिसे आजकल लोग बोझ समझने लगे हैं। यहां बदलाव की जरूरत है या यूं कहें कि अतिथि सत्कार में हमें पीछे मुड़ कर वहीं रुक जाना चाहिए। अतिथि आता है और जाता है। जब अतिथि जाता है तो अपने साथ पाप भी ले जाता है और पुण्य दे जाता है। ध्यान रखो, मेहमान का आदर करो। हमारे संस्कार भी यही हैं और सत्य भी यही है।
भारत में मेहमान को भगवान का रूप मानकर उनका आदर-सत्कार करने की पंरपरा प्राचीनकाल से ही चली आ रही है। घर आए अतिथि को भोजन करवाना भी उसी पंरपरा का एक अहम हिस्सा है। मेहमान के आदर-सत्कार को लेकर शिवपुराण में कुछ ऐसी बातों का वर्णन किया गया है जिनका पालन करने से मनुष्य को शुभ फल जरूर मिलता है। ध्यान रखें कुछ बातों का-
घर आए अतिथि को देखकर मुस्करा कर उनका स्वागत करें। उन्हें बैठने के लिए उचित स्थान दें। उन्हें जल-पान करवाते समय मन में जलन, क्रोध, हिंसा जैसे विचार न लाएं। मेहमान के आने से पूर्व आपके घर का माहौल जैसा भी हो लेकिन मेहमान के आने के बाद खुशनुमा माहौल बनाएं। अपने गुस्से को दबा कर रखें, मेहमानों के सामने उसे जाहिर न होने दें।
मधुर भाषा में उनसे बात करें उनकी कोई बात आपके कितनी भी बुरी क्यों न लगे किसी भी हालत में उनका अपमान न करें। शुद्ध तन और मन से मेहमान की सेवा करें। अशुद्ध अवस्था में की गई सेवा का फल प्राप्त नहीं होता। जब मेहमान आपसे विदा लें तो जाते समय उन्हें कोई न कोई उपहार अवश्य दें।