हिमालय के इस क्षेत्र में शिव शंकर ने किया था मां पार्वती से विवाह

Edited By Punjab Kesari,Updated: 31 Jan, 2018 03:41 PM

triyuginarayan temple in rudraprayag

मान्यता अनुसार शिवरात्री एक पावन दिन माना जाता है जिस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। भगवान शिव-पार्वती तो लेकर देशभर में अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं।

मान्यता अनुसार शिवरात्री एक पावन दिन माना जाता है जिस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। भगवान शिव-पार्वती तो लेकर देशभर में अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं। उनमें से एक मान्यता के अनुसार भगवान शंकर ने हिमालय के मंदाकिनी क्षेत्र त्रियुगीनारायण मंदिर में मा पार्वती से विवाह किया था। केदारनाथ से 19 किमी पहले गंगोतरी, बूढ़ाकेदार सोनप्रयाग के रास्ते के निकट ये मंदिर स्थित है। इसका प्रमाण यहां जलने वाली ज्योति है, जो त्रेतायुग से निरंतर जल रही है। माना जाता है कि शंकर-पार्वती ने इसी ज्योति के समक्ष ही फेरे ले विवाह के बंधन में बंधें थे।

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हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार पार्वती के रूप में माता सती का पुनर्जन्म हुआ था। पार्वती ने अपने कठिन ध्यान और साधना से भगवान शिव का मन जीता। जिस स्थान पर मां पार्वती ने साधना की उस स्थान को गौरी कुंड कहा जाता है। जो श्रद्धालु त्रियुगीनारायण जाते हैं वे गौरीकुंड के दर्शन भी अवश्य करते हैं। पौराणिक ग्रंथ बताते हैं कि शिव जी ने गुप्त काशी में माता पार्वती के सामने विवाह प्रस्ताव रखा था।

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इसके बाद उन दोनों का विवाह त्रियुगीनारायण गांव में मंदाकिनी सोन आैर गंगा के मिलन स्थल पर संपन्न हुआ। यहां शिव पार्वती के विवाह में श्री विष्णु ने पार्वती के भाई के रूप में सभी रीतियों का पालन किया था। जबकि ब्रह्मा इस विवाह में पुरोहित बने थे। उस समय सभी संत-मुनियों ने इस समारोह में भाग लिया था। 

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यहां तीन कुंड स्थापित हैं जिन्हें रुद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड कहते हैं। इस कुंड में विवाह से पूर्व सभी देवताओं ने यहां स्नान किया था। इन तीनों कुंड में जल सरस्वती कुंड से आता है, सरस्वती कुंड का निर्माण श्री विष्णु की नासिका से हुआ था और इसलिए ऐसी मान्यता है कि इन कुंड में स्नान से संतानहीन को संतान प्राप्त होती है।

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