Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Aug, 2017 06:07 AM
मंगलवार दिनांक 22.081.7 को भाद्रपद शुक्ल एकम को सिंदूरी विनायक अर्थात मंगलमूर्ति गणेश पूजन किया जाएगा। भारत के कई प्रांतों में मंगल को श्री गणेश का दिन माना गया है। इसी कारण गणपती को मंगलमूर्ति कहा जाता है।
मंगलवार दिनांक 22.081.7 को भाद्रपद शुक्ल एकम को सिंदूरी विनायक अर्थात मंगलमूर्ति गणेश पूजन किया जाएगा। भारत के कई प्रांतों में मंगल को श्री गणेश का दिन माना गया है। इसी कारण गणपती को मंगलमूर्ति कहा जाता है। गणेश पूजन से सारे विघ्न व बाधाएं दूर हो जाती हैं। शास्त्रों में गणेश जी की उपासना संतान, शिक्षा व भाग्य हेतु सर्वोत्तम मानी गई है। मान्यतानुसार मंगलवार पर गणेश पूजन से घर में सुख-समृद्धि और संतान सुख की प्राप्ति होती है। शास्त्र नारदपुराण के अनुसार गणेश उपासना के साथ इनके 12 नाम के स्तोत्र अर्थात संकष्टनाशनं गणेशस्तोत्रं का पाठ करने से सारे बिगड़े काम बन जाते हैं।
विशेष पूजन: सिंदूरी गणेश का विधिवत पूजन करें। चमेली के तेल का दीपक करें, गूगल धूप करें, लाल फूल चढ़ाएं, सिंदूर चढ़ाएं, गुड का भोग लगाएं व लाल चंदन की माला से यह विशिष्ट मंत्र जपने के बाद संकष्टनाशनं गणेशस्तोत्रं के 8 पाठ करें। पूजन उपरांत गुड़ लाल गाय को खिलाएं।
विशेष मंत्र: ॐ वं विघ्न-नायकाय नमः॥
पूजन मुहूर्त: दिन 11:46 से दिन 12:26 तक अथवा शाम 17:30 से शाम 18:30 तक।
महूर्त विशेष
अभिजीत मुहूर्त: दिन 11:57 से दिन 12:49 तक।
अमृत काल: दिन 12:26 से दिन 13:57 तक।
वर्जित महूर्त: दिशाशूल - उत्तर। राहुकाल वास - पश्चिम। अतः उत्तर व पश्चिम दिशा की यात्रा टालें।
आज का गुडलक ज्ञान
गुडलक कलर: सिंदूरी।
गुडलक दिशा: ईशान।
गुडलक टाइम: शाम 16:45 से शाम 18:45 तक।
गुडलक मंत्र: वं वक्रतुण्डाय हुं॥
गुडलक टिप: संकटों के नाश हेतु गणेश मंदिर में लौंग लगा लड्डू चढ़ाएं।
गुडलक फॉर बर्थडे: शुद्ध घी में सिंदूर मिलाकर गणपती पर चढ़ाने से सफलता मिलेगी।
गुडलक फॉर एनिवर्सरी: दंपति द्वारा गणेश मंदिर में दो मोदक चढ़ाने से आपसी संबंध मधुर होंगे।
नारद पुराण अंतर्गत संकष्टनाशनं गणेश स्तोत्रं
प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम। भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये ॥1॥
प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम। तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम ॥2॥
लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च। सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ॥3॥
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम। एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम ॥4॥
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:। न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो ॥5॥
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्। पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥6॥
जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्। संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ॥7॥
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत। तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत: ॥8॥
आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com