Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Oct, 2017 02:28 PM
पैरिस जलवायु समझौते को लेकर वैश्विक मंच पर अमरीका अलग-थलग पड़ा नजर आ रहै। वैसे तो अमरीका और सीरिया में समानता ढूंढना काफी मुश्किल है पर पैरिस जलवायु समझौते को लेकर दोनों देश साथ खड़े दिखते हैं...
वॉशिंगटनः पैरिस जलवायु समझौते को लेकर वैश्विक मंच पर अमरीका अलग-थलग पड़ा नजर आ रहै। वैसे तो अमरीका और सीरिया में समानता ढूंढना काफी मुश्किल है पर पैरिस जलवायु समझौते को लेकर दोनों देश साथ खड़े दिखते हैं। दरअसल, निकारागुआ ने कथित तौर पर इस वैश्विक समझौते पर हाल ही में हस्ताक्षर कर दिया है। इसके बाद अब दुनिया के केवल 2 देश- अमेरिका और सीरिया बचे हैं जिनका नाम इस समझौते से जुड़ा नहीं है।
गौरतलब है कि राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने अमरीका को इस पैक्ट से अलग करने का फैसला किया था जबकि उनसे पहले बराक ओबामा इस समझौते के साथ थे। निकारागुआ की उप राष्ट्रपति रोजारियो मुरिलो ने कहा कि सरकार का मानना है कि 2015 की यह डील ग्लोबल वॉर्मिंग और इसके प्रभावों से निपटने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय प्रयास है। इस समझौते का मकसद ग्रीनहाउस गैसों को कम करने के साथ ही वैश्विक तापमान में औसत बढ़ोतरी 2 डिग्री से ज्यादा न होने देने पर है।
पिछले हफ्ते निकारागुआ के राष्ट्रपति डैनियल ऑर्टेगा ने संकेत दिया था कि उनका देश जल्द ही समझौते पर हस्ताक्षर करेगा, हालांकि कब करेगा, यह उन्होंने नहीं बताया था। इससे पहले यहां की सरकार ने इस डील को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इसमें अमीर देशों की ओर से ज्यादा योगदान नहीं लिया गया है और इसका उद्देश्य भी काफी नहीं है। निकारागुआ में रिन्यूएबल एनर्जी के अपार भंडार हैं।
देश की आधे से ज्यादा ऊर्जा जरूरतें हवा, सूरज की रोशनी और वेव इनर्जी से पूरी होती हैं। यहां की सरकार की कोशिश है कि 2020 तक रिन्यूएबल इनर्जी से ही 90 फीसदी ऊर्जा जरूरतें पूरी हो सकें। ट्रंप ने कहा है कि ओबामा द्वारा स्वीकार किए पैरिस अग्रीमेंट से देश के कोल, स्टील और दूसरे मैन्युफ़ैक्चरिंग इंडस्ट्रीज को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा। गौरतलब है कि अमरीका और चीन दोनों दुनिया में होने वाली 40 प्रतिशत ग्रीनहाउस गैसों के लिए जिम्मेदार हैं। इस करार में वैश्विक तापमान में इजाफे पर अंकुश लगाने और गरीब देशों को खरबों डॉलर देने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किए गए हैं।