कार्तिक मास का शुभारम्भ, क्रूर मुख वाले यमराज के दर्शन से बचने के लिए करें ये काम

Edited By ,Updated: 26 Oct, 2015 01:11 PM

kartik maas

प्रत्येक मास सूर्य एवं चन्द्रमा के हिसाब से शुरू होता है। जो लोग एकादशी से किसी भी मास के आरम्भ की गणना करते हैं वे अगली एकादशी तक ही पूरा मास मानते हैं और

प्रत्येक मास सूर्य एवं चन्द्रमा के हिसाब से शुरू होता है। जो लोग एकादशी से किसी भी मास के आरम्भ की गणना करते हैं वे अगली एकादशी तक ही पूरा मास मानते हैं और जो लोग संक्रांति के हिसाब से चलते हैं वह सूर्य और जो चन्द्रमा के अनुसार चलते हैं वे पूर्णिमा की गणना के अनुसार मासिक नियम का पालन करते हैं। 

पूर्णिमा के हिसाब से कार्तिक मास 26 अक्तूबर को शरद पूर्णिमा के हिसाब से शुरू होगा जो 25 नवम्बर तक चलेगा जबकि एकादशी तिथि का पालन करने वाले वैष्णवी 24 अक्तूबर को आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पापाकुंशा एकादशी से कार्तिक मास महात्म का नियम शुरू कर 22 नवम्बर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की देवप्रबोधिनी एकादशी तक उसका पालन करेंगे। संक्रांति के हिसाब से कार्तिक मास का पालन 17 अक्तूबर को शुरू हो चुका है जो 16 नवम्बर तक चलेगा। 
 
क्या करें
कार्तिक मास में जो लोग संकल्प लेकर प्रतिदिन प्रात: सूर्योदय से पूर्व उठकर किसी तीर्थ स्थान, किसी नदी अथवा पोखर पर जाकर स्नान करते हैं या घर में ही गंगाजल युक्त जल से स्नान करते हुए भगवान का ध्यान करते हैं, उन पर प्रभु प्रसन्न होते हैं। स्नान के पश्चात पहले भगवान विष्णु और बाद में सूर्य भगवान को अर्ध्य प्रदान करते हुए विधिपूर्वक अन्य दिव्यात्माओं को अर्ध्य देते हुए पितरों का तर्पण करना चाहिए। 
 
पितृ तर्पण के समय हाथ में तिल अवश्य लेने चाहिएं क्योंकि मान्यता है कि जितने तिलों को हाथ में लेकर कोई अपने पितरों का स्मरण करते हुए तर्पण करता है उतने ही वर्षों तक उनके पितर स्वर्गलोक में वास करते हैं। इस मास अधिक से अधिक प्रभु नाम का चिंतन करना चाहिए।
 
स्नान के पश्चात नए एवं पवित्र वस्त्र धारण करें तथा भगवान विष्णु जी का धूप, दीप, नेवैद्य, पुष्प एवं मौसम के फलों के साथ विधिवत सच्चे मन से पूजन करें, भगवान को मस्तक झुकाकर बारम्बार प्रणाम करते हुए किसी भी गलती के लिए क्षमा याचना करें। 
 
कार्तिक मास की कथा स्वयं सुनें तथा दूसरों को भी सुनाएं। कुछ लोग कार्तिक मास में व्रत करने का भी संकल्प करते हैं तथा केवल फलाहार करते हैं जबकि कुछ लोग पूरा मास एक समय भोजन करके कार्तिक मास के नियम का पालन करते हैं। इस मास में श्रीमद्भागवत कथा, श्री रामायण, श्रीमद्भगवदगीता, श्री विष्णुसहस्रनाम आदि स्रोत्रों का पाठ करना उत्तम है। 
 
 दीपदान और जागरण  
वैसे तो भगवान के मंदिर में दीप दान करने वालों के घर सदा खुशहाल रहते हैं परंतु कार्तिक मास में दीपदान की असीम महिमा है। इस मास में वैसे तो किसी भी देव मंदिर में जाकर रात्रि जागरण किया जा सकता है परंतु यदि किसी कारण वश मंदिर में जाना सम्भव न हो तो किसी पीपल व वट वृक्ष के नीचे बैठकर अथवा तुलसी के पास दीपक जलाकर प्रभु नाम की महिमा का गुणगान किया जा सकता है।  इस मास में भूमि पर शयन करना भी उत्तम है। 
 
पितरों के लिए आकाश में दीपदान करने की अत्यधिक महिमा है, जो लोग भगवान विष्णु के लिए आकाश में दीप का दान करते हैं उन्हें कभी क्रूर मुख वाले यमराज का दर्शन नहीं करना पड़ता और जो लोग अपने पितरों के निमित्त आकाश में दीपदान करते हैं उनके नरक में पड़े पितर भी उत्तम गति को प्राप्त करते हैं। जो लोग नदी किनारे, देवालय, सड़क के चौराहे पर दीपदान करते हैं उन्हें सर्वतोमुखी लक्ष्मी प्राप्त होती है।
 
दान की महिमा
कार्तिक मास में दान अति श्रेष्ठ कर्म है। स्कंदपुराण के अनुसार दानों में श्रेष्ठ कन्यादान है। कन्यादान से बड़ा विद्या दान, विद्यादान से बड़ा गौदान, गौदान से बड़ा अन्न दान माना गया है।  अपनी सामर्थ्यानुसार धन, वस्त्र, कंबल, रजाई, जूता, गद्दा, छाता व किसी भी वस्तु का दान करना चाहिए तथा कार्तिक में केला और आंवले के फल का दान करना भी श्रेयस्कर है।
 
प्रस्तुति - वीना जोशी, जालंधर
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