Edited By Punjab Kesari,Updated: 27 Jul, 2017 11:13 PM
डाउरी केसों में आईपीसी धारा 498ए के बेजा हो रहे दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फकदम उठाया है।
नई दिल्ली: डाउरी केसों में आईपीसी धारा 498ए के बेजा हो रहे दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फकदम उठाया है। कोर्ट ने आदेश जारी करते हुए साफ किया है कि एेसे केसों मामला दर्ज होते ही पति या ससुराल पक्ष की तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने हर जिले में कम से एक परिवार कल्याण समिति का गठन करने का निर्देश जारी किया है। कोर्ट ने साफ कहा है कि समिति की रिपोर्ट आने तक आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए। साथ ही इसके लिए सिविल सोसायटी को शामिल करने के लिए कहा गया है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि यदि महिला घायल होती है या फिर उसकी मौत होती है तो यह नियम लागू नहीं होंगे। धारा 498ए के हो रहे दुरुपयोग के मद्देनजर जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यूयू ललित ने गुरुवार को गाइडलाइन जारी की।
बेंच ने कहा कि पति या ससुरालियों के हाथों प्रताडऩा झेलने वाली महिलाओं को ध्यान में रखते हुए धारा 498 ए को कानून के दायरे में लाया गया था। प्रताडऩा के कारण महिलाएं खुदकुशी भी कर लेती थीं या उनकी हत्या भी हो जाती थी।
कोर्ट ने कहा है कि यह बेहद गंभीर बात है कि शादीशुदा महिलाओं को प्रताडि़त करने के आरोप को लेकर धारा 498 ए के तहत बड़ी संख्या में मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं। बेंच ने कहा कि इस स्थिति से निपटने के लिए सिविल सोसायटी को इससे जोड़ा जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एएस नादकरणी और वरिष्ठ वकील वी गिरी की दलीलों पर विचार करते हुए कई निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट ने कहा कि देश के हर जिले में कम से कम एक परिवार कल्याण समिति बनाई जानी चाहिए।
हर जिले की लीगल सर्विस अथारिटी द्वारा यह समिति बनाई जाए और समिति में तीन सदस्य होने चाहिए। समय-समय पर जिला जज द्वारा इस समिति के कार्यों का रिव्यू किया जाना चाहिए।
समिति में कानूनी स्वयंसेवी, सामाजिक कार्यकर्ता, सेवानिवृत्त व्यक्ति, अधिकारियों की पत्नियों आदि को शामिल किया जा सकता है।