Edited By Punjab Kesari,Updated: 17 Nov, 2017 10:49 AM
पिछले चुनावों की तुलना में मोदी-शाह के नेतृत्व वाली भाजपा के सामने गुजरात में चुनौतियां बदल गई हैं। इस बार के हालात का अनुमान आरक्षित सीट साबरकांठा जिले की इदर विधानसभा से लगाया जा सकता है। जहां इस बार पिछले चुनाव की तरह दलित वोटों को लेकर जंग नहीं...
नई दिल्ली: पिछले चुनावों की तुलना में मोदी-शाह के नेतृत्व वाली भाजपा के सामने गुजरात में चुनौतियां बदल गई हैं। इस बार के हालात का अनुमान आरक्षित सीट साबरकांठा जिले की इदर विधानसभा से लगाया जा सकता है। जहां इस बार पिछले चुनाव की तरह दलित वोटों को लेकर जंग नहीं है, बल्कि लड़ाई असली जनरल कास्ट के वोटों के लिए छिडऩे जा रही है। पिछले कई चुनाव से यहां भाजपा को सीट दिलाने वाले रामलाल बोहरा के सामने इस बार पाटीदार और दलित आंदोलनकारियों को साथ लाकर कड़ी चुनौती पेश कर दी है।
भाजपा को करना पड़ सकता है चुनौतियों का सामना
कमोबेश ऐसी ही चुनौतियां का सामना भाजपा को पूरे राज्य में अन्य अन्य आरक्षित सीटों पर करना पड़ सकता है। दक्षिण गुजरात के इस क्षेत्र में भाजपा का मजबूत आधार माना जा रहा है। हालांकि इस बार पाटीदार, ओबीसी और दलित आंदोलन के चलते भाजपा के सामने चुनौतियां बदल गई हैं। ऐसे में इन जातियों के मतदाताओं का बंटवारा होने की वजह से विधानसभा क्षेत्र में जनरल वोटों को एकजुट करने को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच लड़ाई छिड़ गई है। चुनावी रणनीतिकार मान रहे हैं कि अब जीत हार का आधार यहां पर सामान्य जाति के मतदाताओं के रुख से ही तय होगा।
इदर विधानसभा का चुनावी गणित
आरक्षित विधानसभा इदर के चुनावी गणित की बात करें तो यहां करीब 7000 हजार ठाकोर मतदाता, 26000 मुस्लिम , 36000 दलित के अलावा महत्वपूर्ण माने जा रहे पटेल समुदाय के करीब 60000 वोट है। इसके अलावा ओबीसी और अन्य जातियों के मतदाता अलग हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में रामलाल बोहरा को 90000 वोट मिले थे। जिसके बाद करीब 11380 वोटों से उन्होंने जीत हासिल की थी। ऐसे में आंदोलनकारियों के साथ ही जीएसटी और नोटबंदी के प्रति मतदाताओं में आक्रोश पैदा कर भाजपा की चुनौती को कठिन करने की कांंग्रेस पूरी कोशिश कर रही है।