Edited By ,Updated: 05 Mar, 2015 09:50 AM
धूलिवंदन अर्थात् धूल की वंदना। राख को भी धूल कहते हैं। होलिका की आग से बनी राख को माथे से लगाने के बाद ही होली खेलना प्रारंभ किया जाता है।
धूलिवंदन अर्थात् धूल की वंदना। राख को भी धूल कहते हैं। होलिका की आग से बनी राख को माथे से लगाने के बाद ही होली खेलना प्रारंभ किया जाता है। अतः इस पर्व को धूलि वंदन कहते हैं। होली के दूसरे दिन अर्थात् धूलिवंदन के दिन अनेक स्थानों पर एक-दूसरे के शरीर पर गुलाल डालकर रंग खेला जाता है।
होली के दिन प्रदीप्त हुई अग्नि से वायुमंडल के रज-तम कणों का विघटन होता है। इस दिन खेला जाने वाला रंगोत्सव व विजयोत्सव रज-तम के विघटन के कारण अनिष्ट शक्तियों को नष्ट करने का प्रतीक है।
होली पर गलियां देने का कारण: होली के त्यौहार पर एवं इसके अगले दिन लोग प्रायः गंदी गालियां देते हैं। यह एक तरह से मनुष्य की विकृतियों का रेचन है। इस तरह से व्यक्ति के अंदर दबी कुंठा और पूर्वाग्रह नष्ट हो जाते हैं, यह एक तरह से मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। शब्दों का मन पर जो एक प्रकार का अशिष्ट तनाव होता है, उसके निकलने से मन स्वच्छ हो जाता है। जैसे हम गंदे व मैले पानी को मार्ग देकर निकाल देते हैं उसी प्रकार मनुष्य में विद्यमान पशु प्रवृत्ति को धर्मशास्त्रों ने होली के माध्यम से रेचन करने की छूट दी है।
भारत में बरसाने की लट्ठमार, फूलों की व लड्डूमार होली, तो रोहतक की पत्थर मार होली व पंजाब की होला महल्ला होली का अपना खास महत्व है। जब नंदगांव के गोप गोपियों पर रंग डालते, तो नंदगांव की गोपियां उन्हें ऐसा करने से रोकती थीं और न मानने पर लाठी मारना शुरू करती थीं। पंजाब में गुरु गोबिंद सिंह ने होली को एक क्रांतिकारी स्वरूप देते हुए होली का पुल्लिंग होला शब्द का प्रयोग किया व ऐसे होली होला महल्ला अर्थात शस्त्र प्रदर्शन के रूप में मनाई जाने लगी।
आचार्य कमल नंदलाल
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