Edited By ,Updated: 28 Mar, 2015 11:27 PM
फैज अहमद फैज की उपरोक्त पंक्तियां बहुत हद तक आम आदमी पार्टी (आप) की आंतरिक कलह की तस्वीर दिखाती हैं। ‘आप’ के कामकाज में गवर्नैंस पृष्ठभूमि में चली गई है।
वो बात सारे फसाने में जिसका जिक्र न था, वो बात उनको बहुत नागवार गुजरी है।
फैज अहमद फैज की उपरोक्त पंक्तियां बहुत हद तक आम आदमी पार्टी (आप) की आंतरिक कलह की तस्वीर दिखाती हैं। ‘आप’ के कामकाज में गवर्नैंस पृष्ठभूमि में चली गई है। पिछली बार उन्होंने जनादेश की उपेक्षा करने में 49 दिन लगाए थे लेकिन इस बार तो 48वें दिन में ही जनता के दिए हुए उस प्रचंड जनादेश का तिरस्कार कर दिया जो उन्हें बेहतर दिल्ली बनाने के उद्देश्य से काम करने के लिए दिया गया था। आंतरिक राजनीतिबाजी में उलझ कर उन्होंने आदर्शों का वह ताना-बाना ही तोड़ डाला जिनकी कसम खाकर इस पार्टी को जन्म दिया गया था।
हालांकि ‘आप’ द्वारा चुनावों में विजय से पूर्व ही कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने कह दिया था कि केजरीवाल के साथ प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव चल नहीं पाएंगे और जब से केजरीवाल अपने इलाज के लिए दिल्ली से बाहर बेंगलूर गए तो पार्टी के लोगों ने अपनी ऊर्जा दिल्ली के शासन पर खर्च करने की बजाय आपसी लड़ाई-झगड़ों में बर्बाद करनी शुरू कर दी जो हर बीतने वाले दिन के साथ गंभीर रूप धारण करती गई।
एक-दूसरे की देखादेखी आनन-फानन में प्रैस कांफ्रैंसिंग करने, अरविंद केजरीवाल के सिंटग आप्रेशन करने, विधायकों द्वारा उन्हें संयोजक पद से हटाने की याचिका पर हस्ताक्षर करने और एक-दूसरे के विरुद्ध आरोप-प्रत्यारोप लगाने में ही दोनों पक्षों ने देशवासियों और चैनलों को व्यस्त रखा।
इस सारे नाटक में दिल्ली के आम आदमी की सारी आशाएं और आकांक्षाएं बलि चढ़ गईं। जहां हर व्यक्ति ‘आप’ से एक सुशिक्षित, धर्मनिरपेक्ष और स्वच्छ शासन की आशा लगाए था, उन्होंने सोचा तक नहीं था कि ये लोग ‘अहं’ की ऐसी लड़ाई में उलझ कर रह जाएंगे।
लोगों ने तो ‘आप’ को सुशिक्षित और विचारवान लोगों की पार्टी समझा था, अत: यह सवाल बरबस ही मन में कौंध जाता है कि आखिर अपने ‘अहं’ को संतुष्ट करने की खातिर प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव तथा अरविंद केजरीवाल एक-दूसरे के विरुद्ध क्यों खड़े हो गए?
इस सारे झगड़े और महानाटक के बीच जो बात स्पष्टत: उभर कर सामने आई वह यह है कि दोनों ही पक्षों में एक-दूसरे के विरुद्ध जुबानदराजी की जितनी इच्छा है उतनी इच्छा एक-दूसरे के साथ कदम मिलाकर चलने की नहीं।
यह कोई पहला या आखिरी मौका नहीं है जब किसी राजनीतिक दल के सदस्यों में मतभेद पैदा हुए हों या जब निजी महत्वाकांक्षाएं पार्टी पर भारी पड़ गई हों, लेकिन इस सारे घटनाक्रम के बीच जो बात बिल्कुल स्पष्टï है वह है दोनों पक्षों में एक साथ मिल कर काम करने की इच्छा का अभाव।
एक नेता के रूप में केजरीवाल को अधिक कूटनीति का इस्तेमाल करके पार्टी के अंदर उबल रहे उस असंतोष को बाहर आने से रोकने की कोशिश करनी चाहिए थी जो अब सारी दुनिया के सामने है। मार्गदर्शक अथवा दिशा सूचक के रूप में देखे जाने वाले प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव से भी अधिक परिपक्वता और संवेदनशीलता की उम्मीद की जाती थी।
दिल्ली विधानसभा के चुनावों में अपनी ऐतिहासिक सफलता से पूर्व पार्टी ने नीति संबंधी जो महत्वपूर्ण घोषणाएं की थीं, उनमें से मंत्रिमंडल केवल पानी और बिजली पर सबसिडी देने संबंधी 2 मुद्दों पर ही निर्णय ले सका है जबकि एक लम्बी अवधि के लिए ये सबसिडियां जारी रखने संबंधी ठोस कार्य नीति का अभाव है।
उस स्थिति में जबकि दिल्ली का बिजली का उत्पादन इसकी कुल आवश्यकताओं का 10 से 15 प्रतिशत ही है, यह सरकार सस्ती बिजली के नए स्रोत ढूंढने में असफल रही है। राजधानी में ग्रीष्मकालीन महीनों के दौरान पानी की कमी की समस्या का समाधान मुख्यमंत्री ने यह निकाला है कि इस स्थिति में वी.आई.पी. कालोनियों को भी पानी की आपूर्ति में कटौती कर दी जाएगी। यह एक अल्पकालिक समाधान है, सुनियोजित रणनीति नहीं है।
बजट तैयार करने की कठिन समस्या से जूझ रहे अरविंद केजरीवाल ने केन्द्र सरकार पर दिल्ली की ‘आप’ सरकार को 4000 करोड़ रुपए का घाटा पहुंचाने का आरोप लगाया है जबकि ‘आप’ सरकार अपने चुनावी वायदों को पूरा करने संबंधी ठोस पग उठाने में असफल रही है जिनमें दिल्ली को शिक्षा, पर्यटन, व्यवसाय, स्वास्थ्य सुविधाओं का केन्द्र बनाने की बात कही गई थी लेकिन इसकी बजाय ‘आप’ के नेताओं में धरनों और आरोप-प्रत्यारोपों में उलझ कर अपनी ऊर्जा व्यर्थ गंवाने की अधिक चाहत है।
यद्यपि प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव पार्टी के लोकतंत्रीकरण की अपनी मांगें स्वीकार किए जाने पर जोर दे रहे थे, वे पार्टी में काम करने या सम्मानजनक ढंग से पार्टी से त्यागपत्र देने को तैयार नहीं थे। केजरीवाल को भी अपनी पार्टी के सदस्यों को मनाने के लिए शिष्ट भाषा और तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए था। कुल मिला कर इसी तरह के नाटक के लिए शेक्सपियर ने लिखा था, 'Much ado about nothing' (तिल का ताड़ बनाना)।