बृहस्पति ग्रह और उसके विशिष्ट योगों द्वारा पाया जाता है धन, संतान, भाग्य, जीविका और शक्ति

Edited By ,Updated: 23 Jul, 2015 01:13 PM

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ज्योतिष मतानुसार शुभ ग्रहों में बृहस्पति का स्थान सर्वोच्च माना गया है। महर्षि पराशर का मत है ‘किं कुर्वन्ति सर्वग्रह यस्य केंद्रे बृहस्पति’ इसी कारण हमारे आचार्यों ने ग्रहरूपी समुदाय में बृहस्पति को सिंह की संज्ञा दी है।

ज्योतिष मतानुसार शुभ ग्रहों में बृहस्पति का स्थान सर्वोच्च माना गया है। महर्षि पराशर का मत है

‘किं कुर्वन्ति सर्वग्रह यस्य केंद्रे बृहस्पति’

इसी कारण हमारे आचार्यों ने ग्रहरूपी समुदाय में बृहस्पति को सिंह की संज्ञा दी है। यह एक ही ऐसा ग्रह है जो देव-कृपा एवं मोक्ष कराने के समर्थ है। यह धन, संतान, भाग्य, जीविका, शक्ति और लाभ का कारक है। जन्म कुंडली में गुरु की स्थिति प्रबल होने पर जातक को वाहन व भवन आदि अनेक सुखों की प्राप्ति होती है। केंद्र त्रिकोण, तृतीय तथा एकादश भाव में अति शुभ रहता है। इसकी शुभ स्थिति से बनने वाले योग निम्र हैं-

हंस योग : यह  पंच महापुरुष योगों में प्रमुख है। गुरु स्वराशि, उच्च राशि या मूल त्रिकोण में न होकर केंद्र स्थित होने पर हंस योग होता है। ऐसा जातक सुंदर व्यक्तित्व, उच्च चरित्र व पद प्राप्त करता है तथा बात का धनी होने के साथ-साथ निष्पक्ष निर्णय करने की क्षमता रखता है।

गजकेसरी योग : चंद्रमा से केंद्र में (1,4, 7, 10) बृहस्पति स्थित हो तो गजकेसरी योग होता है। यदि बुध या शुक्र नीच राशि में स्थित न होकर या अस्त न होकर सम्पूर्ण दृष्टि से देखें तो प्रबल गजकेसरी योग होता है। यह सामान्य व्यक्तियों की कुंडली में भी देखा जा सकता है। किंतु ग्रहों के प्रबल न होने के कारण प्रभावयुक्त नहीं होता।

सरस्वती योग : गुरु चंद्रमा के घर में चंद्रमा गुरु के घर में हो और चंद्रमा पर गुरु की दृष्टि हो तो यह योग होता है। ऐसा जातक सरस्वती का वरद पुत्र होता है और वह सर्वत्र प्रसिद्धि व धन प्राप्त करता है। विश्व प्रसिद्ध कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर की कुंडली में यह योग देखिए-मीन  लग्र में चंद्रमा, मेष में सूर्य, बुध, शुक्र, वृष में मंगल, मिथुन में केतु, कर्क में गुरु, सिंह में शनि, धनु में राहु।

कलानिधि योग : जातक परिजात के अनुसार बृहस्पति द्वितीय या पंचम भाव में बुध या शुक्र की राशि में अथवा उनमें से किसी से युक्त अथवा दृष्ट हो तो कलानिधि योग होता है। इस योग वाला जातक अनेक गुणों से सम्पन्न, राज्य से भी सम्मान प्राप्त तथा रोगमुक्त होगा।

राजयोग : द्वितीय भाव में बृहस्पति के साथ शुक्र होने पर तथा कर्क लग्र में भी चंद्र व गुरु होने पर राजयोग होता है।

—आचार्य डा. मूलवद्र्धन राजवंशी

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