कृष्णावतार

Edited By ,Updated: 28 Aug, 2016 11:36 AM

lord krishna

इसके बाद यक्षराज कुबेर ने भीम से कहा, ‘‘महाबली, तुमने कुछ भूल कर दी। भविष्य में जब कभी तुम्हें राक्षसों के सामने जाना पड़े तो ‘महाराज वरकोदर’ बन

इसके बाद यक्षराज कुबेर ने भीम से कहा, ‘‘महाबली, तुमने कुछ भूल कर दी। भविष्य में जब कभी तुम्हें राक्षसों के सामने जाना पड़े तो ‘महाराज वरकोदर’ बन कर जाया करो। यदि तुम इस रूप में यहां आते तो यह सब राक्षस धरती पर मस्तक रख कर तुम्हारे चरण अपने सिर पर रख कर तुम्हारा स्वागत करते और तुम्हारा सम्मान करते तथा राक्षस राज ‘मणि मान’ भी मित्र भाव से तुम्हें गले लगाते।’’

 

‘‘भूल हो गई लोकपाल महाराज।’’ महाबली भीम सेन ने सिर झुकाए हाथ जोड़ कर कहा। 

 

‘‘हां महाबली पार्थ, तुमसे भूल हुई परन्तु कुछ दोष इन राक्षसों का भी था। तुम्हें तीर्थ यात्री न समझ कर इन्होंने शत्रु समझ लिया। लोक व्यवहार में सब को धैर्य और काल का ध्यान रखने तथा पराक्रम अत्यंत आवश्यकता पडऩे पर ही दिखाना चाहिए। वत्स, तुम्हारी बुद्धि बिल्कुल बालकों जैसी है। मैंने सुना है कि गंधमादन उद्यान में भी तुमने अमर पद प्राप्त सतश्री हनुमान जी की भी पूंछ पकड़ कर उठा कर फैंक देने का विचार किया था जब वह बूढ़े, निर्बल, वानर का रूप धारण करके वहां पड़े थे। ऐसा सोचना भी तुम्हारे जैसे महाबली के लिए अनुचित था। वीर पराक्रमी पुरुष तो बड़े-बूढ़ों का सदा आदर सत्कार किया करते हैं। उनकी सहायता करने में ही गर्व मानते हैं। बजरंग बली को ही देख लो। मेघनाद, कुंभकर्ण और रावण जैसे बलवान योद्धा भी जिनका एक थपेड़ा लगने से चकरा कर गिर पड़ते थे, उन्होंने तुम पर इतनी दया इसलिए की क्योंकि तुम उनसे निर्बल थे।’’ 

 

इसके बाद कुबेर ने, युधिष्ठिर और उनके भाइयों से कहा, ‘‘धर्मराज युधिष्ठिर और अन्य वीरो तुम सब मेरे मेहमान हो। मैं तुम्हारा स्वागत करता हूं। यह कृष्ण पक्ष तुम लोगों को इस प्रदेश में बिताना है। इसलिए यदि तुम्हारी इच्छा हो तो तुम मेरे भवन में चल कर रहो।’’ 

 

‘‘यक्षराज की जय हो।’’ युधिष्ठिर ने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘हम सब भाई राज भोगों का परित्याग करके वनवासी हो गए हैं। प्रतिज्ञा की अवधि पूरी होने तक मेरे विचार में आपके भवन में हम लोगों का रहना उचित नहीं होगा। इसलिए इसे स्वीकार न करने की हमारी धृष्टता के लिए हमें क्षमा करें।’’

(क्रमश:)

 

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