Parshuram Jayanti 2022- कल्कि पुराण के अनुसार ‘भगवान परशुराम’ कलयुग में करेंगे ये काम

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 May, 2022 07:46 AM

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जमदग्नि नंदन रेणुका पुत्र भगवान श्री हरि विष्णु जी के छठे अवतार समस्त शस्त्रों एवं शास्त्रों के ज्ञाता भगवान परशुराम जी का प्राकट्य वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की अक्षय तृतीया के दिन हुआ।

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Parshuram Jayanti 2022- जमदग्नि नंदन रेणुका पुत्र भगवान श्री हरि विष्णु जी के छठे अवतार समस्त शस्त्रों एवं शास्त्रों के ज्ञाता भगवान परशुराम जी का प्राकट्य वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की अक्षय तृतीया के दिन हुआ। अत्याचारी राजा के राज्य में प्रजा कभी सुखी नहीं रह सकती। न्यायपूर्वक धर्म के मार्ग पर चल कर अगर राजा सुख संसाधनों का उपभोग करता है तो उसमें कोई अनीति नहीं है, परंतु अगर कोई राजा अपनी प्रजा को कष्ट देकर अन्यायपूर्ण ढंग से उनके संसाधनों को बलपूर्वक छीन कर उनका प्रयोग अपने स्वार्थ के लिए करता है उससे बड़ा कोई अधर्म नहीं है।

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Parshuram Jayanti Importance- भगवान श्री हरि विष्णु जी ने ऐसे ही अहंकार और घमंड में चूर अत्याचारी राजाओं के मानमर्दन के लिए भगवान परशुराम जी के रूप में अवतार लिया तथा भगवान शिव द्वारा प्रदान अमोघ फरसे के साथ उनसे युद्ध करके उन अधर्मी राजाओं को दंडित कर प्रजा को भय मुक्त किया। धर्म से द्वेष करने वाले अन्यायियों का दमन करने के लिए तथा जगत की रक्षा के लिए सनातन मर्यादा के रक्षक भगवान परशुराम जी ने परशु को धारण किया। 

जब सीता जी के स्वयंवर के समय मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी ने शिव धनुष तोड़ा तब भृगुकुल नंदन भगवान परशुराम जी राजा जनक के राज दरबार में पधारे। तब तुलसीदास जी भगवान परशुराम जी की पावन छवि का वर्णन करते हुए कहते हैं- बृषभ कंध उर बाहु बिसाला।  चारु जनेउ माल मृगछाला ॥ कटि मुनिबसन तून दुइ बांधें। धनु सर कर कुठारु कल कांधें॥

बृषभ के समान ऊंचे और पुष्ट कंधे हैं, छाती और भुजाएं विशाल हैं। सुंदर यज्ञोपवीत धारण किए, माला पहने और मृगचर्म लिए हैं। कमर में मुनियों का वस्त्र (वल्कल) और दो तरकश बांधे हैं। हाथ में धनुष-बाण और सुंदर कंधे पर फरसा धारण किए हैं। जब क्रोधित हुए भगवान परशुराम जी सभा में पधारे तो सभा में सभी उपस्थित राजा उनके क्रोधित रूप को देखकर भय से व्याकुल हो गए थे। 

भगवान परशुराम जी के महान पराक्रम से अधर्मी राजा थर-थर कांपते थे। भगवान शिव से उन्हें भगवान श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मंत्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए। शस्त्र विद्या के महान ज्ञाता भगवान परशुराम जी ने भीष्म, द्रोण तथा कर्ण को शस्त्र विद्या प्रदान की थी। 

ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार एक समय कैलाश में प्रवेश करते समय भगवान परशुराम जी को श्री गणेश जी द्वारा रोक लिए जाने पर, दोनों में युद्ध प्रारंभ हो गया। तब भगवान परशुराम जी के फरसे के प्रहार से गणेश जी का दांत टूट गया था जिससे भगवान श्री गणेश जी एकदंत कहलाए।

Parshuram caste- परशुराम जी भगवान विष्णु के आवेशावतार थे। इनके पिता जमदग्नि ऋषि भृगुवंशी ऋचीक ऋषि जी के पुत्र थे तथा उनकी गणना सप्तऋषियों में होती है। भगवान परशुराम जी ने ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर न केवल वेद शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया, अपितु क्षत्रिय स्वभाव को धारण करते हुए शस्त्रों को भी धारण किया तथा इससे वह समस्त सनातन जगत के आराध्य तथा समस्त शस्त्रों एवं शास्त्रों के ज्ञाता कहलाए। 

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Where is parshuram now- धर्म की स्थापना के लिए भगवान परशुराम जी ने प्रत्येक युग के किसी न किसी कालखंड में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। आज भी भगवान परशुराम जी महेन्द्र पर्वत पर समाधिस्थ हैं। अष्ट चिरंजीवियों में शामिल अजर-अमर अविनाशी भगवान परशुराम जी अपने भक्तों को दर्शन प्रदान करते हैं। कल्कि पुराण के अनुसार ये भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि के गुरु होंगे और उन्हें युद्ध की शिक्षा देंगे। वे ही भगवान कल्कि को भगवान शिव की तपस्या करके उनसे दिव्यास्त्र प्राप्त करने के लिए कहेंगे। 
भगवान परशुराम जी ने सामाजिक न्याय तथा समानता की स्थापना के उद्देश्य से तथा समाज के शोषित तथा पीड़ित वर्ग के अधिकारों की रक्षा के लिए शस्त्र उठाया। उनकी महान पितृ-मातृ भक्ति वन्दनीय है। उन्होंने समस्त पृथ्वी को दान स्वरूप कश्यप ऋषि जी को प्रदान किया। कमल लोचन जमदग्नि नन्दन भगवान् परशुराम आगामी मन्वन्तर में सप्तर्षियों के मंडल में रहकर वेदों का विस्तार करेंगे। 

इस प्रकार सर्वशक्तिमान विश्वात्मा भगवान् श्रीहरि ने इस प्रकार भृगुवंशियों में अवतार ग्रहण करके पृथ्वी के भारभूत राजाओं को दंडित कर पृथ्वी पर सत्य, दया तथा शांति युक्त कल्याणमय धर्म की स्थापना की।
ऋद्धि सिद्धिप्रदाता विधाता
भुवो ज्ञानविज्ञानदाता प्रदाता
सुखम् विश्वधाता सुत्राताऽखिलं विष्टपम्
तत्वज्ञाता सदा पातु माम् निर्बलम्
पूज्यमानं निशानाथभासं विभुम्
रेणुकानन्दनं जामदग्न्यं भजे॥


भगवान परशुराम जी की क्षमाशीलता, दानशीलता, सनातन मर्यादा, न्यायप्रियता, मातृ-पितृ भक्ति, समस्त मानवीय समाज के लिए अनुकरणीय एवं वंदनीय है। भगवान परशुराम जी की पावन र्कीत युगों-युगों तक अमर रहेगी।
नम: परशुहस्ताय नम: कोदंड धारिणे। नमस्ते रुद्ररुपाय विष्णवे वेदमूर्तये॥

हाथ में परशु धारण करने वाले भगवान परशुराम जी को नमस्कार है। हाथ में धनुष धारण करने वाले परशुराम जी को नमस्कार है। रुद्र रूप परशुराम जी को नमस्कार है। साक्षात वेदमूर्ति भगवान विष्णु रूप परशुराम जी को नमस्कार है।  

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