कुछ अनकही

Edited By Riya bawa,Updated: 12 Jul, 2020 01:55 PM

hindi poem kuchh anakahee

एक अरसे से अपने आप से सवाल करती हूँ मैं, कौन हूँ मैं, किसके लिए हूँ मैं, क्या हूँ मै ? जवाब मिले कुछ इस तरह से ...

एक अरसे से अपने आप से सवाल करती हूँ मैं,
कौन हूँ मैं, किसके लिए हूँ मैं, क्या हूँ मै ?
जवाब मिले कुछ इस तरह से :
जाने किस बात की सोच में ,
खोई रहती हूँ मैं , ख़ामोश रहने लगी,
और सब से अलग रहने लगी हूँ मैं ।

बेटी बन कर घर वालों का मान बड़ाया,
पर ख़ुद का मान कही छूट आया ।
बहू बन कर ससुराल की सेवा की,
और ख़ुद की देख -रेख करना भूल गई ।
मां बन कर परिवार के प्रति कर्तव्य  निभाया,
पर ख़ुद के प्रति देखना कभी याद ना आया। 

ख़ामोश से रहने लगी हूँ मै, 
बक-बक करना भूल गई ।
कौन अपना है कौन पराया ,
इसकी परख करना भूल गई  हूँ मैं ।

सहम सी गई हूं मैं अंदर से,
ना जाने क्यूँ एक अरसे से ,
खुल के हँसना और हँसाना,
सब भूल गई हूँ मैं ।

पहले की तरह जीना चाहती हूं मैं ,
ख़्वाब जो सजाए थे वो सजाना चाहती हूं मैं ।
यदी आज नहीं बदल पाई मैं , 
तो फिर ना कभी बदल पाउंगी मैं ।
एक अरसे से........

(भावना शाह)

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