बदलनी होगी जीवनशैली

Edited By Riya bawa,Updated: 31 May, 2020 05:33 PM

must change lifestyle

दुनिया भर में कोरोना का कहर जारी है। देश में लॉक डाउन 3.0 खत्म होने ही वाला है लेकिन रफ़्तार बढ़ती जा रही है। भारत में कोरोना के कुल 70,480 मामले हो चुके हैं | जब तक ये बीमारी खत्म नहीं होगी, लोगों को इसके साथ जीना सीखना होगा। साल 2014 में एक वायरस...

दुनिया भर में कोरोना का कहर जारी है।  देश में लॉक डाउन 3.0 खत्म होने ही वाला है |लेकिन रफ़्तार बढ़ती जा रही है।   भारत में कोरोना के कुल 70,480 मामले हो चुके हैं। जब तक ये बीमारी खत्म नहीं होगी, लोगों को इसके साथ जीना सीखना होगा। साल 2014 में एक वायरस आया था इबोला, जिसने अफ्रीका में काफी तबाही मचाई थी। आज कोरोना के काल में पुरी दुनिया सोशल डिस्टेंसिंग,आईसोलेशन की बार कर रहे हैं, फ्लू के समय भी यही किया जा रहा था, जो कोरोना के मामले बिना लक्षण के आ रहे हैं, वो सबसे बड़ी चुनौती है।  अब लोग थका हुआ महसूस कर रहे हैं कि लॉकडाउन कब तक रहेगा।  हमें जीवन जीने की शैली बदलनी होगी और उसके बाद ही आगे बढ़ा जा सकता है। हाथ ना मिलाना, पैर ना छूना, हाथ धोना ऐसी बातों को हमें अपने जीवन का हिस्सा बनाना होगा| अगर अचानक लॉकडाउन को हटा दिया तो अचानक मामले बढ़ सकते हैं। कोरोना से लड़ाई लंबी खिंचने वाली है और लॉक डाउन कोई
अंतिम समाधान भी नहीं है।  

लगभग 50 दिनों के लॉकडाउन के बावजूद हर राज्य में कोरोना पॉज़िटिव मामलों की संख्या बढ़ी है हालांकि लॉकडाउन ने पॉज़िटिव मामलों की संख्या की रफ्तार पर ब्रेक जरूर लगाया है| यदि लॉकडाउन को इतनी सख्ती से लागू नहीं कराया जाता तो देश की स्थिति और खराब हो जाती| कोरोना पॉजिटिव मामलों की संख्या को काबू करने में लॉक डाउन की बहुत बड़ी भूमिका रही है लेकिन अब सवाल है कि लॉक डाउन में मिलने वाली छूट के बाद कोरोना वायरस से जंग किस कदर जारी रहेगी| इसका अभी पूरी तरह से न तो उन्मूलन हो पाया है और ना ही इसकी रोकथाम के लिए कोई वैक्सीन भी डॉक्टरों के पास उपलब्ध है| जाहिर है इस लड़ाई को अब जनता के जीवन शैली में बदलाव से ही लड़ा जा सकता है।  
 
भारत सामाजिक सरोकारों वाला देश है।  सामाजिक और धार्मिक सरोकारों के कारण हमेशा कोई न कोई भीड़ इकट्ठे होते रही है| लोगों को अब अपनी जीवनशैली में बदलाव लाना होगा और इसी बदलाव के साथ कोरोना वायरस से लड़ाई को आगे भी जारी रखनी होगी।  भारत के अलावा दुनियाभर के यदि कोरोना प्रभावित देशों की स्थिति की समीक्षा की जाए तो सोशल डिस्टेंस ही  कोरोना वायरस से लड़ाई का कारगर हथियार है।  सुरक्षात्मक उपाय, जागरूकता तथा भीड़भाड़ वाली जगहों पर अनावश्यक जाने से बचने की आदत लोगों को अपने जीवन शैली में डालनी ही होगी।

कोरोना वायरस हमारी इंसानियत का इम्तिहान ले रहा है| हम सामाजिक प्राणी हैं मगर इस बीमारी ने हमारी स्वाभाविक गतिविधियों को जानलेवा कमज़ोरी में बदल दिया है| हमें अपनी पुरानी दिनचर्या और आदतों को अब नई आदतों और तौर-तरीकों से बदलना होगा| हमें अपने आचरण को इस महामारी के हिसाब से ढालना होगा| तो हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए? आज जब कोरोना के कारण हाथ मिलाना और गले लगना असामाजिक माना जा रहा है, तब भी हम
कैसे सामाजिक रह सकते हैं?सामान्य दौर में जब कोई बेचैन होता था या परेशान होता था तो उसे छूकर, थपथपाकर दिलासा दिया जाता था| मगर अब सामान्य दौर नहीं है| छूना आज सबसे ख़तरनाक काम बन गया है|जिस किसी चीज़ के संपर्क में हम आ रहे हैं या कोई और आ रहा है, वह चीज़ वायरस की संवाहक हो सकती है| ऐसे में ज़रूरी है कि इस ख़तरनाक वायरस को फैलने का मौक़ा ही न दिया जाए।

कोरोना जैसी दहशत दुनिया ने हाल के दिनों में कभी नहीं झेली थी। समूची दुनिया में दहशत का पर्याय बना सूक्ष्म विषाणु कोविड-19 से निपटने में फिलहाल अनुशासित जीवनशैली अचूक अस्त्र साबित हो सकती है। दुनिया को कोरोना वायरस के खात्मे का इंतजार करने के बजाय उससे लड़ कर ही जीना सीखना होगा।  सोशल डिस्टेंसिंग का पालन ईमानदारी से करने की जरूरत है। मास्क के बगैर घर से बाहर निकलना सूक्ष्म विषाणु का निमंत्रण देने के समान होगा। विवाह या अन्य किसी समारोह से परहेज, हाथ मिलाने को फिलहाल अलविदा कह कर और स्कूलों को एक तिहाई छात्र संख्या के आधार पर कई शिफ्टों में चलाने जैसी चीजों को निजी जिंदगी में शामिल करना होगा। 

जब तक कोरोना वायरस का प्रभावी उपचार मिले या सफल टीका बन जाये और हमारे देश के हर नागरिक को मिल जाये तब तक तो मास्क के बगैर बाहर निकलना,विवाह समारोह जैसे सामाजिक कार्यक्रमों में शामिल होना लोगों को भूलना ही होगा।कोरोना जैसी दहशत के लिए हमें अपनी जीवन शैली बदलनी होगी उन्होंने कहा कि इस प्राकृतिक आपदा से निपटने में अभी कितने साल लगेंगे,कहा नहीं जासकता क्योंकि बेहद तेजी से संख्या वृद्धि होने के कारण ही वायरस का टीका बनने में समय लग रहा है। लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी सिर्फ अपनी जीवन शैली को फिलहाल बदल कर ही कोरोना को मात दी जा सकती है। शिक्षकों और छात्रों के लिये मास्क अनिवार्य करने के साथ ही एक तिहाई संख्या के आधार पर दो से तीन शिफ्टों में चलाये जाने की शर्त पर ही स्कूल खोलने की अनुमति दी जानी चाहिये। कोरोना रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने हेतु सात से आठ घंटे की नींद, विटामिन सी युक्त भोजन और योग भी जरुरी है। 

कोरोना की महामारी से भले ही अभी निपटने का तरीका नहीं समझ आ रहा है, लेकिन इसका मूल लॉजिक बेहद आसान है। लोग आपस में मिलजुल रहे हैं और संक्रमण फैला रहे हैं। ऐसा घरों में भी हो रहा है, दफ़्तरों में भी और यात्राओं में भी। यह मेलजोल, भीड़भाड़ अगर कम कर दी जाए तो एक शख्स से दूसरे शख्स को वायरस का ट्रांसमिशन रुकेगा और नए मामलों में गिरावट आएगी|लोगों के आपसी संपर्क कम होने से शायद से कई दूसरी कंट्रोल स्ट्रैटेजीज
(नियंत्रण रणनीतियों) में भी मदद मिलेगी। हर इंसान सोच रहा है कि मेरे भविष्य का क्या होगा, नौकरी का क्या होगा, दोस्तों और रिश्तेदारों का क्या होगा? भविष्य को लेकर कई अनुमान हैं। लेकिन, ये सभी इस बात पर निर्भर करते हैं कि सरकारें और समाज कोरोना वायरस को कैसे संभालते हैं और इस महामारी का अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा।  उम्मीद है कि हम इस संकट के दौर से एक ज़्यादा बेहतर, ज़्यादा मानवीय अर्थव्यवस्था बनकर उभरेंगे। लेकिन, अनुमान यह भी है कि हम कहीं अधिक बुरे हालात में भी जा सकते हैं।

(जीवन धीमान )

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