Edited By Tanuja,Updated: 04 Mar, 2019 04:00 PM
मंदिरों में लगी थी बेतहाशा भीड़...
मंदिरों में लगी थी बेतहाशा भीड़
शंकर बाबा को मनाने के लिए
शिव को रिझाने के लिए
बह रहा था दूध
शिवलिग से सीधे गटर में या फिर किसी पोखर में
फूल मालाएं, भांग, धतूरा भी हो रहा था अर्पित
फलों के लगे थे ढेर,
दही, शहद भी बह रहा था खूब
भक्त थे मस्त इस अर्पण में
सोच रहे थे खुश हो रहे हैं भगवान
लेकिन....
हर मंदिर के बाहर-भीतर खड़े थे नाथ
कहीं गुस्से में दिखे, तो कहीं उदास
कुछ देवालयों के आंगन में तो रोते भी दिखे
ना, ना कर हिला रहे थे सिर
समझ में नहीं आया
खुशी का पर्व और भोले उदास
क्यों निराश, मायूस और हताश
फिर समझ में आया
वो दुखी हैं
बिलखते बच्चों की भूख और
नालियों में बहते दूध को देखकर
मलिन मन, द्वेष, ईर्ष्या, क्रोध के बजाय
भांग, धतूरे, बेल का झूठा अर्पण देखकर
हैरान-परेशान हैं
लंगरों के बाद बिखरी जूठन और फैला कचरा देखकर
मायूस हैं
इंसानियत को दरिकनार कर
उमड़ती भक्ति का छलावा देखकर
निराश हैं
मन से मैले, दिखावा करने वाले भक्तों से
श्रद्धा के नाम पर, अपना इस्तेमाल देखकर..... तनुजा तनु